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बढे वजन तो क्या करें : एक आध्यात्मिक दृष्टिकोण

badhe wajan to kya kare
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कहते है कि शरीर का वजन बढ़े तो व्यायाम करे और मन का वजन बढ़े तो ध्यान प्राणायाम आदि करे । हमारे जीवन रूपी तुला में दोनों तराजू बराबर होने चाहिये ।

एक भी कम हुआ तो नुकसान देता है। गुरुत्वाकर्षण का सिद्धांत कहता है कि भार में वजन होता है। भार हटा दो तो हल्का महसूस होता है पर यह सिद्धांत दिल पर विपरीत काम करता है।जब कोई दिल में बसता है तो बड़ा ही आनंद आता है।

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दिल हल्का महसूस करता है। वहीं जब किसी का वियोग हो जाता है तो दिल भारी हो जाता है। जब धन बढ़े तो खुले हाथ से जरूरतमंद की सेवा करे। आज का इंसान धन तो ख़ूब कमा रहा है पर बदले में खो रहा है पारिवारिक प्रेम और मन की शांति।

एक ही परिवार में चार सदस्यों को आपस में एक साथ बैठ कर कुछ पल बिताने का समय नहीं हैं । इंसान अपनी लाइफ़ को भी एक मशीन की तरह बना लेता है।

जो चौबीस घंटे या तो कुछ क़ार्य करता है या सोते समय भी व्यापार की ही सोचता है। जब फुर्सत में कभी सोचता है कि मैंने धन तो बहुत कमाया पर अपने जीवन की सुख-शांति खो दी।

यह हमारे मन का असंतोष ही तो है, हम को लोहा मिलता है किन्तु हम सोने के पीछे भागने लगते हैं, पारस की खोज करते हैं, ताकि लोहे को सोना बना सकें और असंतोष रूपी लोभ से ग्रसित होकर पारस रूपी संतोष को भूल जाते हैं जिसके लिए हमें कहीं जाना नहीं पड़ता बल्कि वह तो हमारे पास ही रहता है बस आवश्यकता है तो उसे पहचानने की।

हमारें पास जो कुछ प्राप्त है उसी में संतोष करना चाहिए क्योंकि जो प्राप्त होने वाला नहीं है उसके लिए श्रम करना व्यर्थ ही है ।

सरस्वती के भंडार (धन) को जितना खर्च करेगे उतना ही वह बढेगा अतः हम संतोष रूपी धन के साथ ज्ञान के साग़र में गोते लगाते हुए बढे हुए किसी भी वजन में और भौतिकवाद से दुर होकर श्रेष्ठ धन संतोष,ज्ञान (विद्या) आदि को अर्जित करें।

प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़ )

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