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चाहते तो बहुत हैं पर : Chahte to Bahut Hai Par

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मैंने मेरे जीवन में देखा है कि पैसा है वो भी दुःखी है नहीं है वो भी दुःखी है । इस तरह हम में से प्रायः सभी दौड़ तो बहुत रहे हैं लेकिन किसलिए दौड़ रहे हैं, गंतव्य क्या है?

इसका कोई सही से संज्ञान ही नहीं ले पा रहे हैं। इसलिए चलते तो बहुत हैं पर पहुँचते कहीं नहीं है । जिंदगी गुजर तो गई पर आज भी वहीं के वहीं हम खड़े है। ज़िंदगी एक अनुभव हैं , एहसास है ,ह्रदय का भाव है ।

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शब्दों से बयां नहीं होने वाले अल्फाज़ हैं ।आँधी भी है तो कहीं शीतल पवन का झोंका हैं , ख़ुशबूदार गुलाब के फूलों के साथ काँटों की चुभन भी है , पर्वतों से बहती नदी का उफान कही तेज़ तो कहीं शांत भी है बस ज़िंदगी भी कुछ यूँ ही है ।

प्रक्रति के भाँति ज़िंदगी के भी अनेक रंग और रूप होते हैं ।जिस प्रकार प्रक्रति भी प्रभावित होती है अनेक तत्वों से ठीक उसी प्रकार ज़िंदगी भी प्रभावित होती मन , वचन और काया से ।सुख-दुख,लाभ-अलाभ , यश – अपयश ये तो ज़िंदगी के पैमाने है ।

इन पैमानों को मापने का शक्तिशाली तरीक़ा केवल मन रूपी यंत्र है । मन ही तो ज़िंदगी में मनचाहा रंग भरता है क्योंकि हमारा जीवन हमेशा एक जैसा नहीं रहता है, सुख और दुख का आना-जाना लगा ही रहता है।

जिस प्रकार रात के बाद सुबह होती है, उसी प्रकार दुख के बदल छट जाते है और खुशी के दिन आते हैं, रात दुख का प्रतीक है और दिन सुख का, जिस तरह पानी दो किनारों के बीच बहते हुए आगे बढ़ता है, उसी तरह जीवन में सुख और दुख के दो किनारे हैं जीवन इन्ही के बीच चलता है ।

अतः हमें विपदाओं से कठिनाईयो से हार से हताश हुवें बिना, बिना रुके दुगुने उत्साह से अपनी मंजिल की तरफ कदम बढ़ाते रहना चाहिए, फिर देखें मंजिल (विजय) जीत,सफलता हमारें क़दमो में होगी।

प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़ )

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