जिस तरह पतझड़ का मौसम आने पर पेड़ो से सारे फल फूल पत्ते झड़ जाते हैं पर वह टूटता नही , बिना हिम्मत हारे मजबूती के साथ खड़ा रहता हैं यह सोच कर की फिर से बसंत का मौसम आयेगा और फिर से वह फल फूल पत्तो से लद जायेगा, हरा भरा हो जायेगा।
ठीक इसी तरह विपत्ति के किसी भी समय मुझे विचलित नही होना हैं और इस बात से हमें यह सीख मिलती है की जीवन की हर अनुकूल प्रतिकूल परिस्थिति मे हम सम रहने का प्रयास करे।
आधुनिक जीवन की व्यस्त शैली में आनंदमय जीवन जीने का हम सिद्धांत भूल रहे हैं आनंद महसूस करने की अदभ्य शक्ति हमारे भीतर ही है । जीवन का वास्तविक आनंद स्वयं को जानने से ही मिलता है ।
जिस तरह अपने शरीर को स्वस्थ और तंदुरुस्त रखने के लिए भोजन, शयन और जागरण के नियमों के साथ-साथ व्यायाम भी करना जरूरी है।
उसी तरह आध्यात्मिक पथ पर बढ़ते हुए यथासंभव दूसरों की निस्वार्थ मदद करना, बदले की भावना की जगह माफ करने का गुण विकसित करना, एक सीमा तक धन अवश्य रखना परंतु फिजूल खर्च ना करना, पाप -धर्म का बोध होना, समता, करूणा, प्रेम , विश्वास और आदर रखना तथा प्रतिकूल परिस्थिति में भी सम भाव में रहना आनंदमय जीवन के लिए जरूरी है ।
परिस्थिति तो अपने आप मे एक ही होती है,सबके अलग- अलग नजरिये होते है कि वो उसको किस रूप में लेता है। वैसे काफी हद तक इसमें हमारे कर्म-संस्कार के कारण हमारे भावों से वो प्रभावित होती है, हम अपने होश में रहते हुए हर परिस्थिति के अनुकूल अपने आपको ढालने की कोशिश करें तो हम शान्तचित्त होकर उसके मनोनुकूल परिणाम पाने में काफी हद तक सक्षम हो पाते हैं।
हम कभी परिस्थिति को दोष देंकर ,उसके सामने घुटने न टेकें, सम्यक् पुरुषार्थ के द्वारा परिस्थिति के अनुसार अपने आपको सम्यक् नियोजन करें तो सफलता मिलेगी,अगर न भी पा पाएं तो निराश न होयें,बल्कि अपने सम्यक् पुरुषार्थ से संतुष्ट होकर शान्तचित्त रहने का प्रयास करें।
उसे नियति समझकर।हालांकि कई बार अपने को समझाना बहुत कठिन होता है, उस परिस्थिति में शरीर और आत्मा के भेदविज्ञान को समझते हुए शरीर की नश्वरता को समझकर उस समय शांत रह पाता है, लेकिन बहुत जल्दी सम्भल जाना ही ,ऐसी परिस्थिति से ,हमारे लिए ,बहुत जरूरी है।हम भावों को प्रतिदिन ज्यादा से ज्यादा शुद्धतम बनाते जाएं सर्वदा। भावों में बहुत ज्यादा शक्ति होती है,इसका हर समय हमें स्मरण रहें,हम उसे कभी भी कम समझने की भूल न करें।
प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़)
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