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चिन्तन- सामाजिक समस्या व समाधान ध्रुव-1

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हमको अपने जीवन में बार-बार कहा जाता है कि कभी जीवन में मेला खुशियों का लग जाता है तो कभी झमेला समस्याओं का भी लगता है।

यह स्वाभाविक है कि जब खुशियॉं आती हैं तो मन खुश कर देती हैं पर समस्याएँ अवसाद से भी हमको भर देती हैं।

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हम देखते है कि हर तरह के किसी भी पारस्परिक सम्बन्धों में नब्बे प्रतिशत समस्याएँ हमारे बोलने के लहजे के तरीके से होती हैं न कि केवल शब्दों से होती है ।

इस बात को अंगेजी में और सटीक कहा है It Is Not What We Say, Rather It Is How We Say. हम देखे तो समस्याओं की अपनी कोई भी साईज नही होती है । वह तो सिर्फ और सिर्फ़ हमारी हल करने की क्षमता के आधार पर छोटी और बडी होती है ।

वह दूसरी बात जीवन की समाज की हर समस्या ट्रैफिक की लाल बत्ती की तरह होती है । हम यदि थोड़ी देर प्रतीक्षा कर ले वह उस दिशा में सही से सकारात्मक प्रयास करे तो वह हरी हो जाती है , इसलिए हम अपना धैर्य रखें, मज़बूत मनोबल से अड़े रहे , प्रमाणिक रहे , वह समय कम या ज़्यादा लगे सतत् प्रयास करें ।

तीसरी बात कोई भी तरह की समस्या हो हर समस्या हमें बनाने या हमें तोड़ने के लिए ही आती है। वह पसंद हमारी खुद की है चाहे हम उससे पीड़ित हों या विजयी हो । चौथी बात मानव के सामाजिक जीवन में ना तो समस्याएं कभी खत्म हो सकती हैं और ना ही संघर्ष।

समस्या में ही समाधान छिपा होता है। समस्या से भागना उसका सामना ना करना यह सबसे बड़ी समस्या है । स्वामी विवेकानंद जी कहा करते थे कि समस्याएँ बंदरों की तरह होती हैं जो पीठ दिखाने पर पीछा किया करती हैं और सामना करने पर भाग जाती हैं।

ये बात भी सही है की जीवन में कोई ना कोई गुरु द्रोण बनकर आता है जो हमारी अपार शक्तियाँ हमको बताता है ! हमको बस उनका सही से प्रयोग करने की जरुरत है।

वह हमारी सोई हुई शक्तियों को कोई जगाने वाला गुरु चाहिए। जैसे कृष्ण आकर अर्जुन को ना समझाते तो वह कभी भी ना जीत पाता।
क्रमशः आगे

प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़)

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