ADVERTISEMENT

धर्म और आधुनिकता : Dharm aur Aadhunikta

Dharm aur Aadhunikta
ADVERTISEMENT

हमारा बाह्य दृष्टि तक ही चिंतन न चले ,हम अंतर्दृष्टि और बाह्य दृष्टि दोनों का सन्तुलन का जीवन जीयें तो सब समस्याओं से रहित शांत जीवन जी सकते है।

अनेकांत की भगवान महावीर की शैली हमें प्राप्त है । गुरुदेव तुलसी जी ने भी श्रावक संबोध में हमें बार-बार जैन जीवन शैली के सूत्रों में यही सब सामंजस्य बैठाकर शान्ति के साथ सहज -सरल जीवन जीने की प्रेरणा दी है ।

ADVERTISEMENT

भारतवर्ष एक अध्यात्मप्रधान देश है अध्यात्म एवं धर्म के संस्कार यहाँ लोगों की नस-नस में प्रवाहित रहे है। आदमी का नैतिक स्तर भी बहुत ऊँचा था यहाँ तक कहा जाता है की -व्यापारी दुकानों के ताले नही लगाते थे।

बाहर जानेवाला अपना घर खुला छोड़कर चला जाता और वापस आने पर सारा सामान ज्यों का त्यों पड़ा मिलता। कोई किसी को लूटने की भावना नही रखता था संतोषी जीवन जीने के प्रवृति थी सादगी ,स्वावलम्बन आदि से जीवन शृंगारीत था । धर्म क्या है ?

आत्म शुद्धि के सभी साधन धर्म है । आधुनिकता क्या है ? आज के भौतिक युग में समय के साथ – साथ हुए परिवर्तन को अपनाते हुए जीवन में चलना ।

एक और न मात्र आध्यात्म से अपना पेट भर पाता है , दूसरी ओर बिना आध्यात्म के, न आदमी शांति से अपना जीवन यापन कर पाता है।

ऐसे में आधुनिक युग में जीवन में धन के अर्जन के साथ – साथ आध्यात्म के सृजन का योग बहुत जरूरी होता है, बिना धन और धर्म के समन्वय के वह बाहर से हंसकर भी भीतर भी भीतर रोता है ।

इसलिए धन भी रहे और उसके साथ धर्म भी रहे, और गृहस्थ जीवन की यह सरिता सदा सुख और शान्ति के साथ बहे। पहले लोग संतोषी थे जितना प्राप्त था उसी में खुश थे, तृष्णा केवल जीवन की बुनियादी आवश्यकताओं तक सीमित थी।

पर आज के कलियुग में लोगों की भावनाओं में काम, क्रोध, मोह, लोभ, माया,अहंकार आदि प्रवेश हो चुका है । आधुनिकता और दिखावे के चक्कर में असंतोष का वातावरण बढ़ता जा रहा है। आज मानवीय रिश्ते सिर्फ और सिर्फ जरूरतों पर आधारित हो गये हैं।

आधुनिक समय में जीवन में चमत्कार सही जीवन शैली व आध्यात्मिकता में जब होगा तब अपनी खुशी किसी इंसान या वस्तु में ढूंढने के बजाय हम अपने अंदर महसूस करेंगे ।

कुछ समय योग, ध्यान, एक्सरसाइज तथा परिवार आदि के साथ समय बिताने से तथा सोच पॉजिटिव रखने आदि से आत्मविश्वास भी बढ़ेगा और आंतरिक खुशी भी मिलेगी। खुश रहने का मूल मंत्र संतुष्टि और आध्यात्मिक जीवन जीना है।

संसार में हर क्षेत्र में बहुत ही हस्तियों का जन्म हुआ और आगे भी होता रहेगा।क्षेत्र सभी के अलग-अलग होते हैं। पर विडम्बना यह है कि कोई वादा करके उसको पूरा नहीं कर पाता तो कोई लक्ष्मी का अक़ूट ख़जना भर कर भी मानसिक सुख नहीं पाता।

कारण एक ही है कि संसार ने आर्थिक प्रगति तो खुब कर ली,नये-नये अविष्कार खुब कर लिये।पर जो भीतर का सुख होता है उसकी तरफ़ ध्यान नहीं देते। इसलिये हमेशा उनका मन ख़ाली रहता है।

जब हम अतित का अवलोकन करते हैं तो हम्हें ऐसी जानकारीयां मिलती है कि संसार का कितना भी बड़ा आदमी क्यों ना हुवा हो, उनका जीवन धार्मिकता और आध्यात्मिक क्रियाओं से जुड़ा होता था।

हर घर में नित्य कुछ ना कुछ धार्मिक ग्रंथों का पठन होता था।उनके जीवन में असीम शांति साफ़ झलकती थी। इसलिये जीवन में अगर मानसिक शांति प्राप्त करनी है तो आर्थिक उन्नति के साथ आध्यात्मिक उन्नति भी बहुत जरूरी है।

मर्यादित जीवन का जब अंत होगा, तब इस लोक की कोई भी वस्तु साथ नही जाएगी ! यह बात भी हम जानते हैं की उम्र की दहलीज पर जब सांझ की आहट होती हैं तब ख्वाहिशें थमने लगती हैं और सुकून की तलाश बढ़ जाती हैं ।

वह सुकून हमें भौतिक धन के साथ-साथ आध्यात्मिक संपती ही देगा। भारत एक अध्यात्म प्रधान देश है जो भौतिक संसाधनों के साथ – साथ आत्म हित के सामंजस्य की शिक्षा भी देता हैं । सम्यक दर्शन,ज्ञान, चारित्र मोक्ष मार्ग हैं ।

धर्म की अन्तिम मंजिल और उसका सार हैं । मोक्ष अनंत सुख,आनन्द व शान्ति हैं । सभी जीव अपने जीवन मे अपनी समझ व युक्ति से इन सुखो की प्राप्ति चाहते है , लेकिन इसके लिये प्रथम श्रेणी सम्यक दर्शन जरुरी है गृहस्थ जीवन मे धर्म के साथ धन भी जरुरी होता है ।

यानि आध्यात्मिकता के साथ भौतिकता भी जीवन निर्वाह के लिये मजबुरी बन जाती है । एक सम्यकदर्शी भेदरेखा खींचनी जानता है। यही आध्यात्मिकता और भौतिकता मे सामन्जस्य की नीति है जो आचार्य श्री तुलसी ने श्रावक सम्बोध मे ये नीति से हमको समझाई है ।

हम जीवन मे सही से इसको उतारे व आध्यात्मिकता और भौतिकता में सामन्जस्य अपनाये।यही हमारे लिये काम्य हैं।

प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़)

यह भी पढ़ें :-

आत्मसम्मान का भाव : Atmasamman ka Bhav

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *