हमारे जीवन के दो खरे पाठ यह है कि हमारे जीवन में सीखने की सदैव चाह रहनी चाहिये और दूसरा दृढ़ संकल्प के साथ मनोबल रखते हुए हम आगे बढ़ते जाये तो हमको सफल होने को कोई नहीं रोक सकता है ।
हम अक्सर दूसरों में कमिया देखते हैं, लेकिन जिस के काम में कुछ गलत लगें तों हमें बिना प्रचारित किये स्वंय उन्हें जताना चाहिये और हमें अगर सभी में दोष लगें तो हमें दूसरों को गलत साबित करने की अपेक्षा अपने स्वयं में बदलाव लाने का प्रयत्न करें, सबसे अधिक ज्ञानी वही है जो अपनी कमियों को समझकर उनका सुधार कर सकता हो ।
अतः बदलाव ही जीवन का सार है, जहाँ बदलाव नहीं वहां जीवन नहीं । यदि किसी के मन में सीखने की लगन ना हो तो कोई भी उसे नहीं सिखा सकता क्योंकि फूंक मारकर आप उस ढेर को तो जला सकते है जिसमें चिंगारी हो पर राख के ढेर मे फूंक मारकर आप रोशनी की आशा नहीं कर सकते। जीवन में कुछ कर गुजरने का जज्बा होना जरूरी होता है ।
दृढ़ मनोबल संकल्प हो वहां उम्र बाधक नही बन सकती । आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी 9वां दशक पूरा होने को थे और कितने सक्षम थे अंतिम क्षणों वे इसका एक साक्षात उदाहरण थे ।
आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी की जो संकल्प शक्ति इच्छा शक्ति थी वह हम सबको आगे बढ़ने को प्रेरित कर रही है कुछ कर गुजरने कीप्रेरणा दे रही है ।
हमें अपनी काबिलियत पर विश्वास होना चाहिए कि हम क्या किसी से कम है ।हम चाहे तोसब कुछ कर सकते हैं आत्मविश्वास को बरकरार रखने से।
निरन्तर प्रयास और अभ्यास से सफलता हमको जरूर मिलती है, हमारी निष्ठा मजबूत होनी चाहिए,श्रद्धा डगमगाये नहीं हमारी,ये हमारे लिए काम्य है।
निरन्तरता सफलता का बहुत बड़ा सोपान है आत्मविश्वास के साथ। सचमुच जीवन के यह दो विराट पाठ हमारे जीवन का अमृत है |
प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़ )
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