ADVERTISEMENT

आइए जानते हैं एक 68 साल के शख्स के बारे में जिन्होंने अपनी पुश्तैनी जमीन को जंगल में बदला लगाए हैं 5 करोड़ से अधिक पेड़

Dusharla Satyanarayana Jungle
ADVERTISEMENT

आज हम बात करने वाले हैं दुशरला सत्यनारायण ( Dusharla Satyanarayana ) के बारे में , जानकारी के लिए आप सभी को बता दें कि तेलंगाना के सूर्यपेट जिले के एक गांव में 70 एकड़ का एक जंगल है इस जंगल में 13 तालाब और  फलों से लदे हुए कई पेड़ है ।

इस पुश्तैनी जमीन के दुशरला सत्यनारायण एकमात्र संरक्षक है जो इस जंगल की देखरेख करके इकोसिस्टम को बनाए रखने की कोशिश कर रहे हैं।

ADVERTISEMENT

तेलंगाना के सूर्यपेट जिले के राघवपुर गांव  70 एकड़ में फैला हुआ है यह जंगल सभी के लिए एक आकर्षण का केंद्र बना हुआ है फलों से लदे हुए कई पेड़ और कई दशकों से पुराने पेड़ कई लोगों का आकर्षण खींच रहे हैं , इतना ही नहीं यह जंगल सैकड़ों पक्षियों और वन जीव प्रजातियों का जीवन स्थान है ।

जानकारी के लिए आप सभी को बता दें कि राघवपुर का यह 70 एकड़ में फैला हुआ जंगल देखने में अन्य दक्षिण भारत के जंगलों के जैसा ही नजर आता है परंतु अगर आप करीबी और गहराई से इस जंगल को देखें तो इसमें आपको कई अनोखी खुबियां नजर आएंगी ।

इतना ही नहीं इस जंगल की सुरक्षा के लिए किसी भी प्रकार का गार्ड नहीं है और ना ही यह सरकार के अंतर्गत आता है इस पूरी भूमि का अभिभावक या फिर देख रेख करने वाला दुशरला सत्यनारायण है।

जानकारी के लिए आप सभी को बता दें कि सत्यनारायण ना ही यह जमीन खरीदी है और ना ही लीज पर ली है , दरअसल सत्यनारायण ने एक बेहतरीन इकोसिस्टम को बनाने के लिए  अपनी पुश्तैनी जमीन का इस्तेमाल किया है और पूरा बचपन यही बिताया है ।

4 वर्ष की उम्र से लगा रहे हैं पेड़

प्रकृति के प्रति अपने जुनून को बताते हुए सत्यनारायण कहते हैं कि राघवपुर गांव में यह 70 एकड़ का जंगल वह तब से तैयार कर रहे हैं जब से वह मात्र 4 साल के थे , सत्यनारायण बताते हैं कि उस वक्त यह इलाका एक चारागाह  हुआ करता था जहां पर मवेशी अपने खाने की तलाश में आते थे।

इस दौरान वह आस-पास इमली के बीज फैला दिया करते थे सत्यनारायण कहते हैं कि उन्हें बचपन से ही प्राकृतिक से काफी अधिक प्रेम था यही कारण था कि वह अपने आसपास पेड़ ही पेड़ लगाना चाहते थे ।

सत्यनारायण बताते हैं कि उन्होंने अपना पूरा बचपन कई पक्षियों और जानवरों के बीच बताया है साथ ही साथ उन्होंने बायोडायवर्सिटी को काफी अधिक गहराई से देखा है ।

जानकारी के लिए आप सभी को बता दें कि सत्यनारायण पटवारी परिवार से हैं , जो अक्सर गांव के जमीन के जिम्मेदार होते हैं इस दौरान सत्यनारायण के परिवार के पास 300 एकड़ की जमीन थी ।

अपने परिवार के बारे में बताते हुए सत्यनारायण कहते हैं कि 1940 के दशक अंत में यह क्षेत्र निजामो शासन के अंतर्गत आता था , हमारे पूर्वज उनके लिए काम करते थे और जमीन का बड़ा हिस्सा हमारे नियंत्रण में था , साथ ही साथ इस जमीन का इस्तेमाल मुख्य रूप से खेती के लिए किया जाता था ।

रिश्तेदारों द्वारा हड़प ली गई थी जमीन

सत्यनारायण बताते हैं कि निजाम क्षेत्र का विलय होने के बाद और यह भारत का एक अभिन्न अंग बन गया और इस दौरान 1947 में यह सारी जमीन सत्यनारायण के परिवार की हो गई , बचपन से ही सत्यनारायण ने इस जमीन में काफी अधिक समय बिताया है जैसे-जैसे सत्यनारायण बड़े होते गए उनका प्राकृतिक के प्रति प्रेम बढ़ता ही गया ।

सत्यनारायण बताते हैं कि धीरे-धीरे इस जमीन का स्वामित्व कम होने लगा और यह कम होकर 70 एकड़ तक पहुंच गया , वह बताते हैं कि ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि मेरे परदादा और दादा ने जमीन खोदी थी और रिश्तेदारों ने भी जमीन के दस्तावेजों के साथ छेड़खानी की थी , इसी कारणवश काफी जमीन उनके हाथों से निकल गई और जो भी 70 एकड़ जमीन बची हुई है वह सत्यनारायण के पास है जिस पर अभी भी खतरा मंडरा रहा है ।

सत्यनारायण कहते हैं कि बची हुई 70 एकड़ जमीन पर उन्होंने बीज लगाने शुरू कर दिए और उनके प्राकृतिक प्रेम को देखते हुए भी उनके माता-पिता ने किसी प्रकार का उनका विद्रोह नहीं किया, सत्यनारायण बताते हैं कि हमेशा ऐसा होता था कि उनके सहपाठी गांव के मकानों में घुस जाते और पेड़ों के फलों को तोड़ते और साथ ही साथ पेड़ों की कटाई करने की कोशिश करते परंतु हमेशा ही सत्यनारायण उन्हें इस कार्य को करने से मना करते थे।

इस जंगल में है अब करोड़ों पेड़

सत्यनारायण अपने युवा दिनों में कई प्रकार के बीजों को इकट्ठा करने के लिए भारत देश के दूर-दूर जगहों में गए हैं साथ ही साथ उन्होंने रेन हार्वेस्टिंग के लिए नहर को भी तैयार किया और पौधों की सिंचाई के लिए उसे चैनेलाइज भी किया , सत्यनारायण ने काफी अधिक तलाब भी बनाया जहां पर आज कई मेंढक कछुए और मछलियां रहती हैं ।

सत्यनारायण ने 1980 में कृषि विज्ञान के विषय में ग्रेजुएशन में सफलता हासिल की और इसके बाद उन्होंने यूनियन बैंक के अंतर्गत एक फील्ड ऑफिसर के तहत काम करना शुरू कर दिया उन्होंने अपनी सारी बचत 70 एकड़ की जमीन को एक जंगल बनाने में लगा दि ।

आज इस 70 एकड़ की जमीन पर कई ऐसे पेड़ है जो फल देते हैं और कई ऐसे पेड़ है जो औषधियों के लिए काम आते हैं साथ ही साथ कई पेड़ काफी सदियों पुराने भी हैं ।

सत्यनारायण बताते हैं कि इस इस जंगल में उत्पादित होने वाला कोई भी फल या फिर किसी भी प्रकार का पेड़ औषधि के लिए कार्य में आता है कोई भी सरकार के अंतर्गत नहीं जाता है इस में उत्पादित होने वाला सभी फल और औषधि यहां रहने वाले वन्यजीवों के लिए है जो आने वाले समय में हमारी इकोसिस्टम को फिर से पुनर्जीवित करेंगे ।

एक अनुमान से सत्यनारायण बताते हैं कि आज इस 70 एकड़ की जमीन में उनके द्वारा लगाए गए पेड़ पौधों की संख्या 5 करोड़ से भी अधिक है ।

 

लेखिका : अमरजीत कौर

यह भी पढ़ें :

180 किस्मों के 650 से ज्यादा पौधे लगा कर इस मरीन इंजीनियर ने एक सरकारी पार्क का कायाकल्प कर दिया

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *