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अकेले पड़ते बुजुर्गों की बढ़ती मुश्किलें

अकेले पड़ते बुजुर्गों की बढ़ती मुश्किलें
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बुजुर्ग आबादी को न केवल आर्थिक असुरक्षा बल्कि सामाजिक अलगाव का भी समाधान चाहिए।भारत में पहले से कहीं ज़्यादा बुज़ुर्ग लोग हैं।

उनमें से ज़्यादातर के पास सामाजिक सुरक्षा बहुत कम है और वे स्वास्थ्य सेवा का ख़र्च नहीं उठा सकते। जबकि सरकार उन्हें देखभाल प्रदान करने के लिए तैयार नहीं दिखती।

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इन चुनौतियों का सामना करने के लिए शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य, भोजन और आश्रय की बुनियादी ज़रूरतें, आय सुरक्षा और सामाजिक देखभाल की आवश्यकता है।

बुज़ुर्ग जनसंख्या से जुड़ी अनेक योजनाएँ भी हैं, लेकिन लोग इनसे अनजान हैं या इनसे जुडना उन्हें बोझिल लगता है।

देश के वरिष्ठ नागरिकों को विभिन्न समस्याओं और चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। बहुत से वरिष्ठ नागरिक गंभीर आर्थिक समस्याओं से जूझ रहे हैं।

उनकी कोई नियमित आय नहीं है, पेंशन या सामाजिक सुरक्षा की योजनाओं तक उनकी पहुँच सुलभ नहीं है। बुजुर्गों की सामाजिक ज़रूरतें क्या हैं?

ये ज़रूरतें सेहत के लिए ज़रूरी हैं, जिनमें परिवार और दोस्तों के साथ सम्बंध, सार्थक गतिविधियों में भागीदारी और स्वायत्तता और गरिमा का संरक्षण शामिल है। इन ज़रूरतों को सम्बोधित करना सिर्फ़ फ़ायदेमंद ही नहीं है; यह हमारी वृद्ध आबादी के स्वास्थ्य और ख़ुशी के लिए भी ज़रूरी है।

वृद्धों की सामाजिक ज़रूरतों को पूरा करना एक नाज़ुक पौधे की देखभाल करने जैसा है। उन्हें खिलने के लिए सावधानीपूर्वक ध्यान, निरंतर देखभाल और पोषण देने वाले वातावरण की आवश्यकता होती है।

आखिरकार, सामाजिक ज़रूरतें सिर्फ़ मानवीय संपर्क की बुनियादी ज़रूरतों से कहीं ज़्यादा हैं। वे किसी व्यक्ति के समग्र स्वास्थ्य का आधार बनती हैं, जो शारीरिक स्वास्थ्य और भावनात्मक स्थिरता दोनों को प्रभावित करती हैं।

बुजुर्गों (60 वर्ष से अधिक आयु के व्यक्ति) की संख्या 2011 में 100 मिलियन से बढ़कर 2036 में 230 मिलियन हो जाएगी। 2050 तक, बुजुर्गों की आबादी कुल आबादी का लगभग पाँचवाँ हिस्सा होने की उम्मीद है।

इससे भारत में बुजुर्गों की आबादी का कल्याण एक आसन्न आवश्यकता बन जाती है। बुजुर्गों की आर्थिक कमज़ोरी जैसे कि अनौपचारिक क्षेत्र के बड़े कार्यबल में पेंशन कवरेज का अभाव है।

(भारत में 80% से अधिक कार्यबल अनौपचारिक है) स्वास्थ्य सेवा की बढ़ती लागत और सीमित बचत वित्तीय चुनौतियों को बढ़ाती है। प्रवास और बदलती संरचनाओं के कारण परिवार की सहायता प्रणाली कमज़ोर हो रही है।

पेंशन कवरेज का विस्तार करें, किफायती स्वास्थ्य बीमा शुरू करें (आयुष्मान भारत योजना का विस्तार सभी बुजुर्गों के लिए एक अच्छा क़दम है), वरिष्ठ नागरिकों के लिए निवेश विकल्प बनाएँ और रिवर्स मॉर्गेज को बढ़ावा दें।

वरिष्ठ नागरिक समाज में अलगाव की स्थिति से भी त्रस्त हैं। उनमें सामाजिक संपर्कों की कमी के कारण अकेलापन बना रहता है। उनको अपनी संपत्ति की सुरक्षा और अपने साथ होने वाले अपराधों से बचाव की भी ज़रूरत होती है।

वरिष्ठ नागरिकों, खासकर अकेले रहने वाले व्यक्तियों, के साथ उनकी संपत्ति से जुड़े और उनके साथ होने वाले अपराधों के समाचार आते रहते हैं।

संयुक्त परिवारों और प्रवास में कमी के कारण कई बुज़ुर्ग अकेले रह जाते हैं, जिससे अवसाद और चिंता होती है। सांस्कृतिक बदलावों ने अंतर-पीढ़ीगत सम्बंधों को भी प्रभावित किया है।

बुजुर्गों के प्रति पारंपरिक सम्मान और श्रद्धा, जो कभी भारतीय समाज की आधारशिला हुआ करती थी, अब सूक्ष्म बदलावों से गुज़र रही है।

बुज़ुर्ग महिलाएँ, ख़ास तौर पर विधवाएँ, अक्सर सामाजिक अलगाव के ज़्यादा गंभीर रूपों का सामना करती हैं। प्रौद्योगिकी के साथ चुनौतियाँ डिजिटल विभाजन बुजुर्गों को और अलग-थलग कर देता है। सामुदायिक जुड़ाव कार्यक्रम, वरिष्ठ क्लब, अंतर-पीढ़ी कार्यक्रम और स्वयंसेवा के अवसर हैं।

बुज़ुर्गों के कल्याण के लिए उपाय जैसे कि बुनियादी ढाँचा विकास, आयु-अनुकूल स्थान, सुलभ परिवहन और वृद्धावस्था स्वास्थ्य सुविधाएँ प्रदान करेगा, जिससे गतिशीलता, स्वतंत्रता और सामाजिक संपर्क में सुधार होगा।

ऑनलाइन सेवाओं तक पहुँचने के लिए बुज़ुर्गों के लिए डिजिटल साक्षरता कार्यक्रम। मानवीय संपर्क बनाए रखने के लिए टेलीमेडिसिन और आपातकालीन प्रतिक्रिया प्रणाली।

सरकार, गैर सरकारी संगठनों (एजवेल फ़ाउंडेशन), निजी क्षेत्र और स्थानीय समुदायों के बीच सहयोग ज़रूरी है। धार्मिक संस्थाएँ सामाजिक और आध्यात्मिक सहायता प्रदान कर सकती हैं। अवसाद और चिंता से निपटने के लिए सुलभ परामर्श, सहायता समूह और गतिविधियाँ।

पारिवारिक सहायता को मज़बूत करना और परामर्श और अंतर-पीढ़ी कार्यक्रमों के माध्यम से पारिवारिक बंधन को बढ़ावा देना। बहु-पीढ़ी के परिवारों के लिए प्रोत्साहन जैसे कि स्विट्जरलैंड की टाइम बैंक पहल की नकल।

इस पहल के तहत, युवा पीढ़ी वरिष्ठ नागरिकों की देखभाल करके ‘समय’ बचाना शुरू करती है। बाद में, वे बचाए गए ‘समय’ का उपयोग तब कर सकते हैं जब वे बूढ़े हो जाते हैं, बीमार हो जाते हैं या उन्हें किसी की ज़रूरत होती है जो उनकी देखभाल करे।

इस पहल को भारतीय व्यवस्था में लागू किया जाना चाहिए। भारत को भविष्य में सेवानिवृत्ति की आयु को चरणबद्ध तरीके से बढ़ाना चाहिए ताकि युवा पीढ़ी के अवसरों को जोखिम में न डाला जा सके।

बुजुर्ग आबादी के लिए सरकारी योजनाएँ जैसे वृद्ध व्यक्तियों के लिए राष्ट्रीय नीति 2011, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय वृद्धावस्था पेंशन योजना, राष्ट्रीय वयोश्री योजना, प्रधानमंत्री वय वंदना योजना, वरिष्ठ देखभाल एजिंग ग्रोथ इंजन पहल और पोर्टल इसे सुचारू और मज़बूत बनाएंगे।

बुजुर्ग भारत अपने बुजुर्गों के लिए एक देखभाल करने वाला भारत भी हो सकता है। दोनों पहलुओं ( वित्तीय और साथ ही सामाजिक कमजोरियों ) को सम्बोधित करने वाली समावेशी, सुलभ और व्यापक कल्याण योजनाएँ बनाकर, भारत यह सुनिश्चित कर सकता है कि उसकी बुज़ुर्ग आबादी सम्मान, सुरक्षा और सामाजिक जुड़ाव के साथ आगे बढ़े।

वृद्धों की सामाजिक ज़रूरतों को सम्बोधित करना उनके समग्र कल्याण के लिए महत्त्वपूर्ण है। चाहे वह सार्थक सम्बंधों को बढ़ावा देना हो, नियमित सामाजिक संपर्कों को प्रोत्साहित करना हो, स्वतंत्रता को बढ़ावा देना हो, या पेशेवर सहायता और सेवाएँ प्रदान करना हो, प्रत्येक तत्व सफल बुढ़ापे को सुनिश्चित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

जबकि सामाजिक अलगाव और सामाजिक भागीदारी में बाधाओं जैसी चुनौतियाँ मौजूद हैं, उन्हें व्यक्तिगत, पारिवारिक, सामुदायिक और पेशेवर सहायता से दूर किया जा सकता है।

जैसा कि हम अपनी वृद्ध आबादी की सेवा करना जारी रखते हैं, आइए याद रखें कि उनकी सामाजिक ज़रूरतें उनकी शारीरिक ज़रूरतों जितनी ही महत्त्वपूर्ण हैं। आखिरकार, एक अच्छी तरह से जीया गया जीवन एक अच्छी तरह से जुड़ा हुआ जीवन है।

डॉo सत्यवान सौरभ

कवि,स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार, आकाशवाणी एवं टीवी पेनालिस्ट,
333, परी वाटिका, कौशल्या भवन, बड़वा (सिवानी) भिवानी,
हरियाणा

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