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पारिवारिक विकास कैसे हो ?

family development
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जीवन पथ पर बढ़ने के लिए जरूरी है झुकना ।ठीक इसी प्रकार परिवार को जोड़े रखना है तो झुकना अर्थात नम्रता, करुणा , विनयशीलता , सहनशीलता समर्पणता जरूरी है।

जिस तरह पहाड़ों पर चढ़ने के लिए लकड़ी या झुककर चलने की जरूरत होती है उसी तरह जीवन में विनय ,समर्पण सद्भाव की जरूरत होती है जिससे जीवन सुखमय ,शांति पूर्वक व तनाव रहित कट जाता है।

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वर्तमान युग में पारिवारिक ताने-बाने का बिखरना चिंता का विषय है। परिवार की ख़ुशी, सुख, चैन किस प्रकार बना रहे, परिवार की एकता-अखंडता बनी रहे इसपर हमको यथेष्ट सही से प्रकाश डालने का प्रयास करना चाहिए।

परिवार तो वटवृक्ष है जिसकी हर डाली उस वृक्ष के अस्तित्व हेतु अपना महत्व रखती है। किसी डाली की अपेक्षा करने से सारा वृक्ष प्रभावित हो सकता है।

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सुखी एवं समृद्ध परिवार रूपी वटवृक्ष का संरक्षण और संवर्धन सामंजस्य से ही होगा। रिश्तों की अमुल्य धरोहर को जीवन में सम्भालना हैं ।

इसलिए बंधन रिश्तों का नही भीतर में एहसास का होता है तो सेतु को जोड़के रखता हैं । जब विकसित होती है आपस में पारिवारिक सदस्यों के बीच स्नेह, सम्मान ओर समर्पण की भावना, तब सहज ही उजागर हो जाती है पारस्परिक सौहार्द की संभावना ।

परिवार का सुख ही असली समृद्धि है । सुख, सौहार्द, स्नेह व सम्मान के अभाव में न रिद्धि है, न वृद्धि है । दूसरों की खुशी के लिए अपनी सुख सुविधा को कुर्बान कर परिवारिक शांति के लिए इस उपवन को समर्पण की सौरभ से भरना चाहिए।

पारिवारिक जीवन की सफलता का एक सशक्त महान् सूत्र है सामंजस्य। स्नेह-प्यार का अचूक अमोघ महा मंत्र है सामंजस्य।

इसके अभाव मे तो मुश्किल है चार कदम भी चलना मजबूत रिश्ते भी बिखर जाते हैं जब नहीं रहता है सामंजस्य। पारस्परिक सौहार्द हमारे जीने की कला और हर संगठन का प्राण है ।

इसी से प्राप्त होता है व्यक्तिगत जीवन में आनंद और संगठन को त्राण है । तेल और बाती दोनों के सही सामंजस्य से दीपक जलता है ठीक उसी तरह पारिवारिक जीवन में एक -दूसरे का आदर करने से जीवन चलता है।

परिवार में जिसको झुकना आ गया उसका जीवन ही बदल गया। झुकने का दूसरा अर्थ है अपने अहंकार को समाप्त करना। झुकने का मतलब वादविवाद को तूल देने से बचना।

झुकता वही है जिसमें ज्ञान होता हैं । झुकने का एक और अर्थ है कि जो झुकता है वो जीवन में सफलता पाता है।

जैसे-एक बाल्टी कुँए में उतरती है और उसमें पानी तभी भरता है जब वो झुकती है।जब हम पहाड़ों पर या व्यापार में तभी शिखर पर पहुँचते हैं जब झुककर आगे बढ़ते हैं।

एक झुका हुआ पैड़ कितने लोगों को ठंडी छाँव देता है,जैसे पीपल और बरगद।वंहि दूसरी और नारियल और खजूर के पेड़ लम्बे ज़रूर होते हैं पर वो छाँव किसी को नहीं देते।

अकड़ने वाला जल्दी गिरता है और झुका हुआ पेड़ तेज हवाओं का झोंका भी सहन कर लेता है। और अंत में जंहा बिना बात के वाद विवाद होता है वंहा दोनो में से एक व्यक्ति विनम्र होकर झुक जाता है वहाँ रिश्ते ख़राब होने से बच जाते हैं। सकारात्मक सोच सरळ व आसान उपाय है।

प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़ )

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