कहते है की जिसने जीवन में सत्य को स्वीकार किया , आर्त्त रोद्र ध्यान का परिहार्य किया ,धर्म ध्यान को स्वीकार्य किया , हर कार्य ज्ञाता द्रष्टा बन किया , समता भाव सदा धार्य उसके रहता उसे कभी भी दुःख नहीं सताता और उन्माद ज्वर भी नहीं आता हैं ।
आज कथनी- करनी में सामंजस्य रखने वाले लोगों की भारी कमी है जिसका दुष्परिणाम समाज में बिखराव व दिग्भ्रमित होने की स्थिति के रूप में देखा जा सकता है। कुछ लोग भावना में ही दिल की बात कह देते है और कुछ लोग गीता पर हाथ रख कर भी सच नहीं बोलते हैं । गुरुदेव तुलसी कहा करते थे निज पर शासन -फिर अनुशासन ।
कथनी-करनी का एकमेक सफल जीवन का मेरुदंड है क्योंकि सफलता उसी को वरमाला पहनाती है जिसके चिंतन में उत्साह-आशा और विश्वास का ज्वर होता हैं । अपना ज्ञान और अपनी क्रिया का मेल होना चाहिए ।
आचार्य रुघनाथ जी के निर्देशानुसार राजनगर के श्रावकों को अपनी बुद्धिकुशलता के चातुर्य से समझाने की अपनी कार्यदक्षता से सम्पन्नता पर रात को दाह ज्वर की वेदना होने पर भीखण जी की आत्मा को झकजोड देने वाले चिंतन का मंथन से ही तेरापंथ का बीज बोने का नवनीतप्राप्त हुआ, जो आज वटवृक्ष बनकर तेरापंथ धर्मसंघ में जान फूंक रहा है।
हम सबके चिंतन में भी प्रत्येक पल उसी सत्य का साक्षात्कार कर अपनी आत्मा को उनके पदचिन्हों पर चलकर उज्ज्वल बनाने का लक्ष्य रखें तो हम उनके सच्चे प्रतिनिधि अपने को कहसकेंगे।
मर्यादाओं के जन्मदाता आचार्य भिक्षु को हम अनुशासित जीवनशैली अपनाकर अपने श्रद्धा-सुमन अर्पित करें और उन जैसे आचारवान बनने का लक्ष्य बनाकर उस पथ पर आगे बढ़ें ।
प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़)