ADVERTISEMENT

जीवन की त्रासदी : Jeevan ki Trasadi

Jeevan ki Trasadi
ADVERTISEMENT

जन्म से मृत्यु तक का समय जीवन होता है । हम सब इस जीवन को अपने – अपने ढंग से जीते है । अधिकाधिक पाने का संघर्ष करते रहते है कोई इसमें सफल होता है तो कोई इसमें असफल होता है ।

परन्तु अन्त में सब यही रह जाता है । खाली हाथ आये है खाली हाथ ही जाना है इस सोच के कुछ बिरले ही होते हैं यही जीवन की त्रासदी है । कुछ विरले ही इस त्रासदी में सफल होते है ।

ADVERTISEMENT

आदमी का स्वभाव अच्छा या बुरा होता है वह उसी के अनुसार अपनी समस्त शक्तियों को लगा देता है और उसमें सफल होता है । जैसा उसका स्वभाव है, वह वैसा ही बनता जाता है ।

कवि, लेखक, वक्ता, वकील, डॉक्टर, इंजीनियर आदि बनने की ओर अपनी क्रियाओं को अपने स्वभाव को उसी दिशा में मोड़ देता है और अपनी सारी शक्तियों को एकाग्र करके उसमें लगा देता है, परिणाम स्वरूप वह वही बन जाता है ।

ADVERTISEMENT

जैसे—अग्नि चाहे दीपक की हो, चिराग की हो अथवा मोमबत्ती की लौ हो, इसके दो ही कार्य है जलना और प्रकाश करना। यही लौ मनुष्य के शरीर को शांत भी कर देती है, यही लौ अन्धकार को दूर कर सम्पूर्ण जगत को प्रकाशमय कर देती है।

चिन्तन की बात यह है कि उपयोग करने के ऊपर निर्भर है वो उसी वस्तु से पुण्यार्जन कर सकता है तो थोड़ी चुक होने पर पापार्जन भी कर सकता है।

हम सही से विवेकपूर्वक हमारे चिंतन के तौर तरीकों में कदाग्रह और दुराग्रह को स्थान न दें,ये सब समस्याएं पैदा करता है।

हम समय की धारा को न मोड़ने की सोचते हुए विवेकपूर्वक समय की मांग के अनुसार अपने आपको ढालें।

हम अपनी मान्यताओं और परम्पराओं को अज्ञानतावश कदाग्रह में न ले जाएं, सोच समझकर जो उचित लगे, उसको अपनाएंऔर जो अनुचित लगे, उसके लिए हमारी जिद न हो न छोड़ने की।

इस तरह हमारा जीवन भी विवेक, चिन्तन और शुभ आचरण से सुंदर हो सकता है और हम इस जीवन की त्रासदी पर शान्त चित्त से चिन्तन कर जीवन को सार्थक मोड़ दे सकते हैं।

प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़)

यह भी पढ़ें :-

मननीय बिन्दु : Mananīya Bindu

ADVERTISEMENT

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *