हर समझदार अपनी दृष्टि से श्रेष्ठ जीवन जीना चाहता है और सब दृष्टि से स्वस्थ रहकर सदा आरोग्य का अमृत पीना चाहता हैं। प्रश्न उठता है श्रेष्ठ जीवन क्या है? आरोग्य का संजीवन क्या है?
श्रेष्ठ जीवन शारीरिक और मानसिक संतुलन श्रेष्ठ जीवन है। जिन्दगी क्या है? सबसे महत्वपूर्ण है जिन्दगी के सभी आयामों पर चिंतन करना। मैं कौन हूँ? कहाँ से आया हूँ? कहाँ जाना है?
इस पर गहन मंथन करना। समय किसी का भी इन्तजार नहीं करता, इस शाश्वत सच्चाई को समझ कर सही दिशा मे अपनी सम्पूर्ण शक्ति को, पूरे सामर्थ्य के साथ नियोजित करना। जिंदगी में सबसे महत्वपूर्ण ज्ञाता-द्रष्टा भावों में रहना, आत्मचिंतन में आया।
अनासक्ति की चेतना के विकास के द्वारा हर किर्या को करते हुए हम जीवन में उससे राग-द्वेष के भावों से न जुड़े, सिर्फ प्रवृति करें काया से आवश्यक हो, वहीं आत्मा की पवित्रता के लिए अपने दोषों को देखते हुए उनको छोड़ते हुए हम सही से आत्मविशुद्धि करते हुए प्रमाद और कषायों से मुक्त होकर कर्म मुक्त बनें।
यहीं जिंदगी का सार है। इन सबके लिए ज्ञाता-द्रष्टा भावों में रहना अति अपेक्षित है। इसलिए हमारे लिए यह चिन्तनीय है कि अगर हम केवल काम ही काम कर रहे हैं और स्वास्थ्य को गौण कर रहे हैं तो कोई बहादुरी का काम नहीं कर रहे हैं इसलिये आवश्यकता है सचेत होने की और स्वास्थ्य परक पैटर्न अपनाकर शांति और आनंद का श्रेष्ठ जीवन जीने की।
प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़ )
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