कहते है कि भर जाए पेट दिल नही भरता ,स्वाद लोलुप हो और चरता , स्वास्थ्य को ये नही जमता फिर चाहेजीभ भी हो उसकी या धन,तनभी मन भी उसका पर परिमाण नही मन चाहता। वैभव का अटूट अंबार मिला था ।सिकन्दर को दुनिया पर हुकूमत करने का चांस मिला था ।
चाह फिर भी बाकी है गरीबी की निशानी क्योंकि वो तो पानी से भरा प्यासा ऐसा कुआँ है । ठीक इसी तरह लगता है मुझे ऐसा कि सचमुच मनुष्य सारा छल-कपट और झूठ का जाल उस भविष्य के लिए बुनता है जिस भविष्य को वह खुद लेश मात्र भी नहीं जानता हैं ।
वर्तमान में जीना जीवन की एक बड़ी कला है , समय प्रबंधन का यह एक अति उत्तम सिलसिला है । अतीत की स्मृतियों में भटकते रहने से बताओ क्या मिलेगा ? वर्तमान यदि अच्छा होगा तो भविष्य भी अच्छे से परिणाम देगा ।
जो वर्तमान के हर पल हर क्षण का सही उपयोग करता है, उसका वर्तमान तो आनंदप्रद बनता ही है और भविष्य भी अनेकानेक नई निष्पतियों के भंडार भरता है । हममें सिर्फ संग्रह की प्रवृति भी न पनपें अति मात्रा में।
अति हर चीज की बुरी होती है। हम हर परिस्थिति को पचाना सीखें। हमें परिस्थिति का सामना करना आना चाहिए। जीवन में परिस्थिति कैसी भी हों, हमें उत्थान की राह ही चुननी होगी।
कहते भी हैं कि परिस्थितियों का दास नहीं बनना चाहिए, बल्कि उन्हें अपने अनुकूल ढालना चाहिए। इसलिए भोजन हो या भजन, निंदा हो या प्रशंसा, हर बात अर्जन के साथ विसर्जन की जुड़ी होनी चाहिए ।
प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़ )
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