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लें हम इनसे सीख

लें हम इनसे सीखें
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प्रायः हमारे दैनिक जीवन में कितनी ही छोटी-मोटी घटनाएँ घटती ही रहती हैं जिसकी और हमारा ध्यान ही नहीं जाता हैं।

यदि हम उस और ध्यान दे तो वे हमें अच्छा-खासा जीवन का सन्देश दे जाती हैं। जैसे – वृद्ध आदमी को हम देखते है तो वह शरीर से जीर्ण – शीर्ण और कृष हो गये हैं और जीवन के अन्तिम दौर में हैं ठीक इसी तरह हमको भी आउखे की घड़ी आ जाये तब संसार से विदा होना है ।

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जन्म लिया हैं तो मृत्यु निश्चित हैं । हमारे जीवन में यहाँ पर जरुरी नहीं है कि वृद्धावस्था आये ही आये हम पहले भी यहाँ से विदा हो सकते है ।

हम इस संसार से कब, कहॉं विदा हो जायेंगे यह जैसे मैं नहीं जान पा रहा हूँ वैसे ही यहाँ पर कोई दूसरा नहीं जान पा रहा हैं ।।

इसलिए हमको आपसी सौहार्द विनम्रतापूर्वक व्यवहार सदैव सबसे करना चाहिए । विनय भाव बहुत बड़ा तप है निर्जरा का और हम सबमें सामंजस्यपूर्ण व्यवहार के लिए समर्पण भाव बहुत उपयोगी होता है।

अक्खड़पन से ,जबरदस्ती से कुछ काम शायद बन भी जाएं,लेकिन टिकाऊपन नहीं हो सकता उसमें।हम अपने विनयपूर्ण सदाचरण से झुककर सबसे शीर्ष स्थान ,सबके हृदय में अपनी जगह बना लेते हैं। जहां काम प्यार से होता है,वहां जबरदस्ती क्यों कि जाएं।

प्यार में बहुत बड़ी ताकत होती है और उसके मुल में विनम्रता होती है।विनम्रता स्नेह का सूक्ष्म पाश है,जिससे किसी को भी अपना बनाया जा सकता है।

इसलिए विनय पूर्वक व्यवहार को सदाचरण में हम लायें जिसे सही से अपनाकर हम अपना आत्मकल्याण में आगे बढ़ सकते है और साथ में व्यवहारिक जगत में भी अपना कार्य सही से कर सकते हैं ।

अतः हर दिन को हम अंतिम माने और उसी तरह कर्म करने की मन में ठाने ।

प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़ )

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