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आइए जानते हैं जेल पेन लिंक (Linc) की सफलता की कहानी

आइए जानते हैं जेल पेन लिंक (Linc) की सफलता की कहानी
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Linc pen & Plastics :-

आज के डिजिटल युग में पेन की क्या जरूरत है? यह सवाल दीपक जलान से पूछा जाता है तो उनका यही जवाब होता है कि दुनिया चाहे कितनी भी डिजिटल हो जाए कलम और कागज हमेशा फैशन में बने रहेंगे।

दीपक 1976 से बॉलपॉइंट पेन बनाने वाली कोलकाता की कंपनी लिंक पेन एंड प्लास्टिक (Linc pen & plastics) के मैनेजिंग डायरेक्टर हैं।

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यह कंपनी मार्कर, जमेट्री बॉक्स, पेंसिल, रबड़, जैसे कई स्टेशनरी वस्तुओं को बना रही है। कंपनी की स्थापना दीपक के पिता सूरजमल जलान ने की थी।

दीपक 1960 में कॉलेज की डिग्री हासिल करने के लिए राजस्थान से कोलकाता गए थे। सूरजमल एक महत्वाकांक्षी व्यक्ति थे और वे नये आईडी की तलाश में थे। एक कॉलेज के छात्र के रूप में पेन उनकी जिंदगी का एक महत्वपूर्ण हिस्सा था।

लेकिन फाउन्टेन पेन को छोड़कर ज्यादा विकल्प मौजूद नहीं थे। फाउंटेन पेन काफी महंगा होता था और उसकी इंक लीक होने की समस्या भी अधिक रहती थी। वही अच्छे बॉल पॉइंट ₹10 में आते थे। सूरज सस्ती कलम बनाना चाहते थे।

दीपक बताते हैं कि जब उनके पिता ने पेन का व्यवसाय शुरू करने का फैसला किया तो विल्सन  (फाउंटेन पेन बनाने वाले व्यक्ति का नाम) एक ब्रांड था जिसकी लोगों को लालसा होती थी।

लेकिन उसके पेन काफी महंगे होते थे। इसलिए उन्हें हर कोई खरीद नहीं सकता था। ऐसे में उनके पिता ने बॉल पॉइंट पेन की कंपनी शुरू करने का फैसला किया।

लिंक ने जब अपने 45 वें साल में कदम रखा तो वित्त वर्ष 2020 में 400 करोड़ रुपए का कारोबार किया और शेयर मार्केट में वह एक लिस्टेड कंपनी बन गई है।

पूरे भारत में लगभग डेढ़ लाख रिटेल स्टोर इसके हैं। वही लिंक पेन का निर्यात 40 देशों में होता है।  कंपनी के अन्य सहायक कंपनियां बेनसिया, डेली, पेंटोनिक, मार्क, लाइन भी बाजार में है।

पेन की खासियत क्या हो?

दीपक जलान कहते हैं कि कलम की क्वालिटी उसके मेटल टिप और स्याही पर ज्यादा डिपेंड करती है। भारत में 1960-70 के दशक में इन दोनों ही वस्तुओं का अभाव था। क्वालिटी मटेरियल की कमी थी और कई कंपनियां अच्छे टिप नही बनाना चाहती थी।

उस समय उनके पिता और उनके दो दोस्तों ने भागीदारी करके कलम का बिजनेस शुरू किया। उन्होंने स्विट्जरलैंड से मेटल टिप और जर्मनी से स्याही आयात की और बॉल पेन बनाना शुरू किया।

सूरजमल ने अपनी बचत के कुछ हजार रुपये निवेश कर दिए और कोलकाता में एक छोटी मैन्युफैक्चरिंग यूनिट लगाई और पहली लिंक बॉल पेन ₹2 में लॉन्च की। धीरे-धीरे लिंक की रेंज अधिक हो गई और पश्चिम बंगाल में उपलब्ध होने लगी।

बाजार के साथ तालमेल –

दीपक जलान ने 1980 के दशक की शुरुआत में बिजनेस की दुनिया में आए थे। तब उनकी उम्र महज 18 वर्ष की थी। 1986 में उन्होंने एक फूल मैन्युफैक्चरिंग यूनिट लगाई।

1995 में लिंक ने अपनी इनिशियल पब्लिक IPO को और अधिक वित्तीय संसाधन के साथ लांच कर दिया। इस तरह से उन्होंने अधिक रिस्क लिया।

दीपक जलान बताते हैं कि आईपीओ लांच करने के तुरंत बाद बॉल पेन का निर्यात शुरू कर दिया और दक्षिण कोरिया में पहली बार निर्यात किया। यह वह समय था जब भारत में धीरे-धीरे जेल पेन लोगों के बीच लोकप्रिय होना शुरू हो गया था।

आमतौर पर छात्र बॉल पेन के बजाय फाउंटेन आधारित इंक पेन लिखने के लिए प्रोत्साहित रहते थे, जो तेल आधारित स्याही के उपयोग से बनी होती थी।

क्योंकि फाउंटेन पेन का उपयोग गड़बड़ी से भरा था। ऐसे में सूरजमल और उनके बेटे ने जेल पेन बनाने का फैसला किया और पानी आधारित स्याही का भी उन्होंने इसमें इस्तेमाल किया।

2002 में लिंक ने अपनी जेल पेन हाई स्कूल पर लांच की थी। दीपक बताते हैं कि उस समय उनके प्रतिद्वंद्वियों के जेल पेन की कीमत करीब ₹20 या इससे अधिक थी।

जापान से आयातित स्याही के साथ लिंक की कीमत मात्र ₹10 थी। इसके बाद भारत के उत्तरी, पूर्वी और पश्चिमी हिस्सों में लिंक पेन ने अपनी व्यापक पहुंच बना ली।

तब से पिता-पुत्र की जोड़ी ने आज ग्रामीण और शहरी क्षेत्र में अपने पेन को उपलब्ध कराने के लिए काफी कोशिश की। उन्होंने ₹5 में लिंक ओसियन को लांच किया।

दीपक जलान के अनुसार यह सबसे कम दाम में बेचे जाने वाली लिंक जेल पेन थी। इसके अप्रत्याशित लाभांश प्राप्त हुए दीपक बताते हैं। बाजार की गहराई तक जाने के लिए लिंक ओसियन को लांच किया गया था और यह उनके लिए एक बड़ा हिट हुआ।

सर्वेक्षण से पता चलता है कि 3 छात्रों में से एक ग्रामीण और अर्ध ग्रामीण, और शहरी छात्र लिंक पेन का इस्तेमाल कर रहा था।  जेल पेन लांच होने के बाद लिंक एक बड़ा ब्रांड बन कर उभरा।

आज यह कंपनी गुजरात के उमरगांव और कोलकाता में अपनी यूनिट में 50 प्रोडक्ट बनाती है। इसके 250 से भी अधिक स्टॉक कीपिंग यूनिट है।

इनोवेशन रहा आधार –

दीपक जलान कहते हैं कि प्रतिस्पर्धी कीमतों पर बेहतरीन क्वालिटी की पेशकश करना सबसे बड़ी चुनौती होती है। लेकिन हाई क्वालिटी वाले प्रोडक्ट बनाने के बावजूद के बड़े बाजार का ब्रांड बन गया है।

कंपनी हमेशा ऐसे प्रोडक्ट को डिवेलप करने की कोशिश करती है जो बहुलक मॉल क्षेत्र से अपने मार्जिन को कम करने और टॉप लाइन और बॉटम लाइन में रहे लेकिन यह एक कठिन काम होता है।

दीपक जलान आगे बताते हैं कि पेन इंडस्ट्री में एंट्री बैरियर बहुत ही कम है। इससे असंगठित लोगों को बढ़ावा मिलता है और प्रतिस्पर्धा बढ़ जाती है। उन्होंने अपने लिए एक रेखा खींची है।

वह ₹5 से कम कीमत में पेन नही उपलब्ध कराएंगे। क्योंकि ऐसा करना किसी भी संगठित कंपनी के लिए संभव नहीं है। दीपक के अनुसार भारतीय लेखन उपकरण में लिंक की हिस्सेदारी लगभग 10% है बिजनेस एंड इकोनॉमिक्स जनरल में 2014 में एक लेख छपा था जिसके मुताबिक सेलो, लैक्सी, रेनॉल्ट इस बाजार में बड़ा हिस्सा था।

वहीं अलवर टू मैक्स, प्लेयर मैक्स जैसे ब्रांड भी उपलब्ध है। दीपक के अनुसार इंडस्ट्री में एक दूसरे से अलग बनने के लिए इनोवेशन करते रहने की जरूरत होती है।

हाल में ही LINC ने अपना एक नया ब्रांड पेंटोनिक लांच किया। इसकी डिजाइन को थोड़ा लंबा बनाया गया है और इसकी बॉडी को काले रंग के साथ अन्य पेन से अलग आकार देने की कोशिश की गई है। यह सेगमेंट अपने टारगेट ऑडियंस के अलावा स्कूली छात्रों में काफी लोकप्रिय हुआ।

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