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गरीब बच्चों की शिक्षा के लिए बस कंडक्टर कर रहा आर्थिक मदद

गरीब बच्चों की शिक्षा के लिए बस कंडक्टर कर रहा आर्थिक मदद
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समाज के लिए कुछ करने वाले लोगों के लिए सामाजिक संगठन शुरू करने की जरूरत नही होती है। हर व्यक्ति अपने स्तर पर छोटा छोटा काम करके समाज के लोगों की भलाई कर सकता है।

जरूरी नहीं है कि जरूरतमंदों को खाना खिला कर ही सामाजिक कार्य किया जाए। ऐसे कामों में सहयोग करके भी इस तरह के काम किए जा सकते हैं।

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इसी तरह गरीब बच्चों की शिक्षा के लिए जो लोग कुछ करना चाहते हैं तो किसी बच्चे की शिक्षा की जिम्मेदारी ले सकते है या फिर किसी सरकारी या ट्रस्ट द्वारा संचालित स्कूल की आर्थिक मदद कर सकते है।

आज की कहानी आंध्र प्रदेश के एक बस कंडक्टर की है जो गरीब बच्चों की शिक्षा के लिए आर्थिक मदद करते हैं।

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हम बात कर रहे हैं आंध्र प्रदेश के कदिरी आरटीसी बस डिपो में बस कंडक्टर थोटा श्रीधर की। वह हर साल अपने आय का एक छोटा हिस्सा गरीब बच्चों की शिक्षा के लिए दान करते हैं।

थोटा श्रीधर आंध्र प्रदेश के कदिरी आरटीसी बस डिपो पर बतौर बस कंडक्टर नियुक्त है। वह मूल रूप से चित्तूर जिले के मुलकलचेरुवु से संबंध रखते हैं। उनका बचपन वही बीता।

वही से उन्होंने अपनी हाई स्कूल तक की पढ़ाई की। उनके पिता खेती बाड़ी का काम करके परिवार का पालन पोषण करते थे। उन्होंने अपने जीवन में आर्थिक तंगी झेली है।

दसवीं तक की पढ़ाई करने के बाद वह अनंतपुर के तनकल्लू में आ गए और यहां से उन्होंने अपनी आगे की पढ़ाई शुरू की।

1991 में उन्हें आंध्र प्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम में बस कंडक्टर के तौर पर नौकरी मिल गई। इस नौकरी से उनकी आर्थिक दशा में काफी सुधार हुआ और वह अपने परिवार के साथ कदिरी में रहने लगे।

हालांकि वह अपने मूल जन्म स्थान और वहां के लोगों से जुड़े रहे। वह अपने समुदाय के लोगों की मदद के लिए हमेशा तैयार रहते हैं।

मुलकलचेरुवु के जिला परिषद हाई स्कूल में वह हर साल जाते हैं और गणतंत्र दिवस के अवसर पर वहां छात्रों की मदद करने के लिए 20 से 25 हजार आर्थिक मदद करते हैं।

उनके द्वारा की गई इस आर्थिक मदद से स्कूल के मेधावी छात्रों को किताब, कापी, स्कूल बैग और जूते खरीदने की आर्थिक मदद की जाती है।

विशेष रूप से उन छात्रों को जो आर्थिक रूप से कमजोर परिवार से संबंध रखते हैं। वह साल 2015 से ही यह नेक काम कर रहे हैं। अब तक उन्होंने 100 से भी अधिक छात्रों की मदद की है।

इस स्कूल के एक शिक्षक प्रभाकर रेड्डी बताते हैं कि वह इस स्कूल में साल 2017 से पढ़ाना शुरू किए है। उसके 2 साल पहले 2015 से ही श्रीधर छात्रों की आर्थिक मदद कर रहे हैं।

वह खुद इस स्कूल के छात्र रहे हैं। दरअसल श्रीधर की मां का देहांत साल 2014 में हुआ। इसके बाद अपनी मां के नाम पर उन्होंने 2015 से इस पहल की शुरुआत की। वह खुद स्कूल आकर बच्चों को पुरस्कृत राशि देते हैं।

इसी स्कूल के एक और शिक्षक रघुनाथ कहते हैं कि उनके स्कूल में लगभग 700 छात्र हैं। ज्यादातर छात्र आर्थिक रूप से कमजोर परिवार से आते हैं।

उनके माता-पिता किसान है या फिर दूसरों के खेतों में मजदूरी करते हैं। कई सारे ऐसे छात्र भी इस स्कूल में पढ़ते हैं जो अनाथ हैं। इन छात्रों के लिए श्रीधर द्वारा दी गई आर्थिक मदद उनकी पढ़ाई में बहुत मददगार होती है।

वह बताते हैं कि श्रीधर हर साल 26 जनवरी के अवसर पर आते हैं और छात्रों को प्रोत्साहित करते हैं और दसवीं कक्षा के बच्चों को किताबें बांटते हैं। श्रीधर जैसे लोगों की मदद के कारण ही बहुत सारे बच्चे आज अपनी पढ़ाई जारी रख पा रहे हैं।

शिक्षक से मिली प्रेरणा :-

श्रीधर को इस नेक काम को शुरू करने की प्रेरणा अपने स्कूल के एक शिक्षक से मिली थी। वह बताते हैं कि जब वह स्कूल में थे तब एक शिक्षक अक्सर अखबारों में छपी अपराधों से जुड़ी खबर दिखाते थे और कहा करते थे कि अगर अच्छे से नही पढ़ोगे लिखोगे तो गलत आदतों में पड़ जाओगे और इसी तरह अपराधियों की तरह अखबार में नाम छपेगा।

उनकी बातों से श्रीधर बहुत प्रभावित हुए थे और उसी दौरान उन्होंने ठान लिया था कि वह कुछ ऐसा करेंगे जिससे उनका नाम अखबार में छपे, लेकिन वह कोई आपराधिक काम की वजह से नही बल्कि नेक काम करने की वजह से।

स्कूल के दिनों से ही श्रीधर के अंदर नेक काम करने और समाज के कल्याण में अपनी जिम्मेदारी निभाने की भावना जन्म लेने लगी थी।

लेकिन इस नेक सोच पर काम करने का मौका उन्हें कई साल बाद मिला। वह बताते हैं कि वह पहले भी लोगों की आर्थिक मदद करते थे।लेकिन साल 2014 में जब उनकी मां का स्वर्गवास हुआ तब उनकी याद में उन्होंने इस पहल को शुरू किया।

वह अपनी मां के नाम लक्ष्मी देवम्मा के नाम पर स्कूल में आर्थिक मदद करते हैं और वह यह आर्थिक मदद अपने आखरी सांस तक करना चाहते हैं। इसमें उनका परिवार भी उनका साथ देता है।

इस नेक काम को करने के लिए वह हर महीने ₹2000 की बचत करते हैं। इसके लिए वह कई बार अपने खर्चों में कमी भी करते हैं।

जिससे दूसरे लोगों की मदद कर सके। श्रीधर कहते हैं कि हम दूसरों की मदद करेंगे तभी जाकर वे लोग किसी और की मदद कर पाएंगे। यह सिलसिला कभी भी रुकना नहीं चाहिए। तभी सही मायने में हम आगे बढ़ पाएंगे।

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