राजस्थान में महिला किसानों की एक अलग पहचान है। कहीं कोई छत पर सब्जियों उगा रही हैं तो कभी सिंदूरी अनार की खेती करके नया रिकॉर्ड बना रही हैं।
कुछ महिलाएं जैविक खेती अपनों के सफलता की नई दास्तान लिख रही हैं। लेकिन फिर भी हमेशा जब किसान का जिक्र आता है तो जुड़तर सबके दिमाग खेत में हल जोतते हुए किसान की तस्बीर बनती है।
लेकिन धान की रोपाई करनी हो, फसल की कटाई करनी हो, हर जगह महिलाएं ही काम करते देखी जाती हैं।
लेकिन इसके बावजूद आज भी हमारे समाज में महिला किसानों को पुरुषों के परिवेश में उतना तवज्जो नहीं मिल पाता है। हालांकि वक्त बदलने के साथ यह मिथक भी टूट रहा है।
राजस्थान की एक महिला किसान अपने अनोखे तरीके से दीमक से खेतों की फसल को बचाती हैं और इसके लिए उन्हें कृषि वैज्ञानिक सम्मान के तहत ₹50000 नगद पुरस्कार दिया जा चुका है और भारत के अलावा विदेशी पाठ्यक्रम में भी उनका नाम आ चुका है।
जी हां हम बात कर रहे हैं राजस्थान के सीकर के दांतारामगढ़ की Bhagwati Devi की, जिन्हें कृषि वैज्ञानिक सम्मान और कृषि प्रेरणा सम्मान के तहत ₹50000 से सम्मानित किया गया है।
Bhagwati Devi के अनोखे तरीके के लिए उन्हें इस सम्मान से सम्मानित किया गया है। दरअसल भगवती देवी अपने अद्भुत अनुसंधान के जरिए फसलों को दीमक से बचाने का एक अनोखा तरीका इजाद किया है।
Bhagwati Devi बताती हैं कि उनके खेत में अरडू,वेल, खेजड़ी, नीम, सफेदा, बबूल, शीशम आदि के पेड़ पौधे लगे हुए हैं। खेत की मेड़ों पर पड़ी लकड़ियों पर अक्सर दीमक लग जाया करते हैं।
ये दीमक फसलों को भी बर्बाद कर देते हैं। बात 2004 की है एक दिन उन्होंने देखा कि सफेदा (यूकेलिप्टस) की लकड़ी पर खूब सारे दीमक लगे हुए हैं।
तब Bhagwati Devi के मन में एक सवाल आया कि यह दिमाग सफेदे की लकड़ी को ही इतनी चाव से क्यों खा रहे हैं। तब उन्हें एक आइडिया आया।
उन्होंने सोचा कि क्यों न फसलों के बीच में सफेदे की लकड़ियों को रख कर देखा जाये। जब उन्होंने फसलों के बीच बीच में सफेदे के लकड़ियाँ रख दी तो देखा कि दीमक फसलों को छोड़कर सफेदे की लकड़ियां खाने लगे हैं और इस तरह फसल दीमक से बर्बाद होने से बच गई।
अक्सर होता है कि बाद में बोई गई फसल पर दीमक ज्यादा असर करते हैं और उन्हें चट कर जाते हैं। इसलिए उन्होंने अपने खेत में गेहूं की फसल उस साल देर में बोई और फसल के बीच में सफेदे की लकड़ियाँ रख दी और फिर देखा दीमक फसलों को छोड़कर सफेदे की ही लकड़ी को खंगालने में जुटे हुए थे।
तब Bhagwati Devi के दिमाग में एक और सवाल आया कि कही केचुए की तरह ही दिमाग भी तो मिट्टी को उर्वरक बनाने का काम तो नही करते और उनकी यह बात सच निकली और उन्हें अपनी समझदारी पर गर्व के साथ हैरानी भी हुई।
बाद में Bhagwati Devi ने अपनी अन्य फसलों के साथ भी इस तरह के अनुसंधान करने लगी और फसलों को दिमाग से बचाने लगी।
Bhagwati Devi द्वारा इजाद किए गए इस अनोखे तरीकों की हर जगह चर्चा होने लगी। इसकी सच्चाई जानने के लिए राजस्थान कृषि विश्वविद्यालय (बीकानेर) के कृषि अनुसंधान निदेशक डॉ एमपी साहू भगवती देवी के खेत में पहुंचे।
उस समय Bhagwati Devi के खेत में मिर्ची लगी हुई थी और फसल के बीच में सफेदे की लकड़ियां रखी गई थी। बाद में डॉ साहू ने भगवती देवी के इस अनोखे तरीके को कृषि अनुसंधान केंद्र पर भी आजमाया और उनका प्रयोग सफल रहा।
इसके बाद उन्होंने इस बात की जानकारी प्रदेश के कृषि विभाग के उच्च अधिकारियों को भी दी। इसके बाद फिर से अजमेर के एडवोकेट ट्रायल सेंटर में इसका परीक्षण किया गया नतीजा वही रहा और Bhagwati Devi द्वारा इजाद किए गए इस अनोखे तरीके को पैकेज ऑफ प्रैक्टिस में शामिल कर लिया गया।
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अक्सर होता है कि किसान फसलों को दिमाग से बचाने के लिए कीटनाशक का प्रयोग करते हैं। कीटनाशक के प्रयोग से किसानों का पैसा तो जाता ही है साथ ही इससे मिट्टी की उर्वरा पर भी विपरीत असर पड़ता है।
ऐसे में कुछ सौ रुपए की सफेदे की लकड़ी से किसान अपने खेतों को दीमक से बचा सकते हैं और कीटनाशक पर खर्च होने वाले हजारों रुपए भी बच सकते हैं। इससे प्रदूषण का भी झंझट नही रहता है और मिट्टी की उर्वरकता भी कोई नकारात्मक प्रभाव नही पड़ता है।
इस बारे में Bhagwati Devi का कहना है सफेदा की लकड़ी भी खरीदने की जरूरत नही है। इसके लिए अपने खेतों में ही एक दो पेड़ सफेदा लगा के दीमक से छुट्टी पाई जा सकती है।
आज के समय में राजस्थान के कृषि विभाग द्वारा Bhagwati Devi के इस नए अनोखी तकनीक को देश के सभी किसानों तक पहुंचाने की कोशिश की जा रही है।
Bhagwati Devi के इस प्रयोग को प्रदेश सरकार तथा केंद्र सरकार के द्वारा सम्मानित किया जा चुका है, साथ ही इसे देश और विदेश के पाठ्यक्रम में शामिल कर लिया गया है।