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America ka Gandhi : मार्टिन लूथर किंग जिनको सबसे कम उम्र में नोबेल पुरस्कार मिला था

अमेरिका का गाँधी मार्टिन लूथर किंग
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मार्टिन लूथर किंग को आज हर कोई जानता है, कई लोग तो उनसे प्रभावित होकर उन्हें अपना आदर्श मानते हैं। लेकिन मार्टिन लूथर भारत के अहिंसा के पुजारी महात्मा गांधी के विचारों से बेहद प्रभावित रहे हैं।

उन्होंने महात्मा गांधी से ही प्रेरणा लेकर अमेरिका में नस्लभेद के खिलाफ एक बहुत बड़ा आंदोलन चलाया था। उनका यह आंदोलन पूरी तरीके से अहिंसात्मक विरोध प्रदर्शन था। इसे मोंटगोमेरी  के नाम से जाना जाता है। इस आंदोलन के साथ ही वह पूरी दुनिया में तेजी से प्रसिद्ध हुए थे।

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दरअसल इसकी सबसे बड़ी वजह यह थी कि मार्टिन लूथर के नेतृत्व में अमेरिका में चलाया जाने वाला यह पहला सबसे बड़ा अहिंसात्मक जनआंदोलन था।

इस आंदोलन की वजह से ही मार्टिन लूथर मात्र 35 साल की उम्र में सबसे कम उम्र में नोबेल पुरस्कार पाने वाले व्यक्ति बने थे। मार्टिन लूथर को 35 साल की उम्र में 14 अक्टूबर 1965 में अमेरिकी समाज में रंगभेद के खिलाफ अहिंसात्मक आंदोलन चलाने के लिए सम्मानित किया गया था।

उन्होंने इस नोबेल पुरस्कार के तहत मिलने वाली धनराशि को नागरिक अधिकार आंदोलन में दान कर दिया गया था। इसी के बाद मार्टिन लूथर को America ka Gandhi भी कहा जाने लगा था।

 जीवन परिचय

मार्टिन लूथर किंग जूनियर का जन्म अटलांटा में 1929 में हुआ था। उन्होंने धर्मशास्त्र में अपनी पीएचडी की डिग्री हासिल की थी और भारत में महात्मा गांधी द्वारा चलाए गए जन आंदोलनों से प्रेरित होकर उन्होंने अमेरिका में भी रंगभेद के खिलाफ अहिंसात्मक सविनय अवज्ञा आंदोलन की वकालत की और चलाया था और अमेरिका के विभिन्न जगहों पर शांतिपूर्वक प्रदर्शन किया था।

लेकिन इस दौरान उन्हें हिंसा का भी सामना करना पड़ा था। हिंसा के बावजूद उनके समर्थक और वे मैदान पर डटे रहे। मार्टिन लूथर की पहचान समाज में गोरे और काले लोगों के बीच की खाई को पाटने वाले व्यक्ति के रूप में ही नहीं बल्कि जोशीली भाषण के लिए भी जाना जाता है।

मार्टिन लूथर ने अमेरिका में सभी ईसाइयों और प्रमुख अमेरिकी लोगों से अश्वेत लोगों के साथ भेदभाव करने के खिलाफ आंदोलन में जुड़ने के लिए लोगों से अपील की थी। इसकी सफलता का साफ असर भी देखने को मिला था कि उनकी मुहिम में कई सारे श्वेत लोग भी शामिल हुए थे।

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पहली बार उन्होंने एक बहुत बड़ी रैली का नेतृत्व वाशिंगटन में 1963 में किया था। यहां पर उन्होंने एक भाषण भी दिया था जो कि उन्हें इतिहास में अमर बना दिया। अपने इसी भाषण में उन्होंने कहा था कि मेरा एक सपना है, पूरी दुनिया मे अश्वेत लोगों के प्रति नजरिया बदलने के लिए।

एक बहुत बड़े जन आंदोलन की शुरुआत 1964 में की थी। इसी के बाद अमेरिका के कानूनों में सुधार देखा गया। टोल टैक्स और नागरिक अधिकार कानून में कई तरह के बदलाव किए गए और नस्ली भेदभाव को दूर करने के लिए एक बड़ा कदम उठाया गया था।

मार्टिन लूथर के नेतृत्व में नस्लभेद के खिलाफ चला आंदोलन 381 दिन तक चला था, जिसमें उन्हें सफलता मिली और इसी के साथ अमेरिका में चलने वाली बसों में काले और गोरे यात्रियों को दिए अलग-अलग सीट रखने के प्रावधान को भी जल्दी खत्म कर दिया गया।

धार्मिक नेताओं का भी उन्हें सहयोग मिला और जल्द ही समान नागरिक कानून आंदोलन अमेरिका के लगभग पूरे उत्तरी भाग में बहुत तेजी से फैल गया था। मार्टिन लूथर का कोरेटा से 1955 में विवाह हुआ था।

और अमेरिका के दक्षिणी प्रांत अलबामा के मोंटगोमरी शहर में डेक्सटर एवेन्यू चर्च में उन्हें प्रवचन देने के लिए बुलाया उसी साल बुलाया गया था। इसी साल उन्होंने बसों में श्वेत और अश्वेत के बीच भेदभाव के विरुद्ध पहली महिला ने अपनी गिरफ्तारी दी थी।

नोबल पुरस्कार से सम्मानित होने के नाद बाद में उन्हें कई अमेरिकी विश्वविद्यालयों से मानद की उपाधि भी सम्मान स्वरूप प्रदान की गई और कुछ धार्मिक और सामाजिक संस्थानों ने उन्हें मेडल से सम्मानित किया।

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“टाइम्स ऑफ द ईयर” के रूप में टाइम्स पत्रिका ने उन्हें 1963 में चुना था। मार्टिन लूथर ने 1968 में “स्ट्राइक टू फ्रीडम” और 1964 में “why we can not wait”  किताब भी लिखी थी। मार्टिन लूथर की 4 अप्रैल 1968 को अमेरिका में ही गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। उसके बाद अमेरिका के कई राज्यों में हिंसात्मक घटना हुई।

मार्टिन लूथर के समर्थकों का कहना था कि सरकार की इशारे पर ही मार्टिन लूथर की हत्या की गई है। बाद में मार्टिन लूथर को प्रेसिडेंट इन रेजिडेंशियल मेडल ऑफ फ्रीडम और कांग्रेसनल गोल्ड मेडल से सम्मानित किया गया था। 1986 में अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन के आदेश के बाद कई सड़कों के नाम में बदलाव किया गया था।

आज मार्टिन लूथर कई सारी युवाओं के लिए प्रेरणा है।

मार्टिन लूथर का कहना था कि “हम वह नहीं है जो हमें होना चाहिए और हम वह नहीं है जो होने वाले हैं, खुदा का शुक्र है कि हम वह भी नहीं है जो हम थे”

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