कहते है की आपस में मिलने जुलने से सभी तरह के गिले – शिकवे दूर हो जाते है और आपस में प्रेम बना रहता है । एक से जब हम दो होते है तो कोई किसी से कुछ तो कहता रहता है पर जब यदि प्यार व तर्क शक्ति से कोई किसी को ठीक सही से समझाता है तो वह बात भी समझ लेता है व किसी प्रकार का गुस्सा भी नहीं आता है ।
ऐसी होती है प्रेम, स्नेह तथा सभी तरह की पारस्परिकता की करामात जिससे सच बात भी किसी पर किसी प्रकार का आघात नहीं कर पाती है। कहते है कि किसी की मदद करने में कभी अपना फायदा न देखो। मिलना जुलना सभी से सदा प्रेम से करो। उसमें कभी अपना मतलब मत देखो।
जिन्दगी जियो सादगी से दिखावे के बगैर।कभी आमद से बेसी खर्चा मत करो यानी जितनी चादर उतने पैर फैलाओ। आगे बढ़ने के लिए किसी को बाधा पहुँचा कर हाय मत लो।
क्योंकि बाधा पहुँचाने की मानसिकता धक्का खुद ही को देती है। इसके अलावा सबसे कीमती सीख कि आपस में किसी दूसरे व्यक्ति से यदि भूल हो भी जाए तो उसे सहन कर लो और भूल जाओ। क्योंकि आपस में कोई भी जान बूझ कर ग़लत नहीं करता है।
स्तर चाहे समाज का हो या फिर अपने परिवार का हमें सदा सभी रिश्ता निभाना है । प्यार और संस्कार का विपदा ख़ुशी में सदैव सही से सहयोग करना और कर्म धर्म दोनों का पालन है ।
जिससे सबके मध्य सदैव मिलने जुलने की सही से पारस्परिकता का संचालन चलता रहें । क्योंकि मिलने जुलने की पारस्परिकता जितनी ज्यादा रहेगी दोनों के मन खुश रहेंगे और उम्र भी बढ़ेगी।
प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़)