तमिलनाडु में रहने वाले P. Sivakumar पी शिवकुमार IFS OFFICER नीलगिरी की पहाड़ियों के बीच पले बढ़े हैं। वह अपने बचपन में जंगलों मे जाकर रंगीन बीज जमा करते थे और उन्हें मिट्टी में लगाते थे और जब उसमें से पौधा निकालकर बड़ा होता था तो इसे देखकर वह बेहद खुश होते थे।
वे जंगलों की नियमित यात्रा करते थे, जिसकी वजह से वहां पर तैनात वन अधिकारी भी उन्हें पहचानने लगे थे। आज पी शिवकुमार Kaziranga National Park (काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान ) के फील्ड डायरेक्टर के तौर पर तैनात हैं।
वह बताते है कि वह अपने बचपन में वनों की रक्षा करने वाले अधिकारियों को सलाम किया करते थे, क्योंकि वे उन्हे अक्सर चॉकलेट बांटते थे और जंगल के बारे में जानकारी इकट्ठा करने के लिए प्रेरित करते थे।
P. Sivakumar बताते हैं बात 1993 की है, जब पश्चिम बंगाल कैडर के मनोज कुमार को डीएफओ अधिकारी के रूप में तैनात किया गया था। वह इनके जंगलों के प्रति प्यार को पहचा करके उन्हें वन सेवा में शामिल होने की सलाह देते हैं।
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शिव जब आठवीं कक्षा में थे, तब घर की आर्थिक स्थिति अच्छी न होने के कारण वह अपने आगे की पढ़ाई छोड़ना चाहते थे। वह बताते हैं उनके माता-पिता वन विभाग में मजदूरी करते थे।
उससे जो भी कमाई होती थी उससे बहुत मुश्किल से घर का खर्चा चलता था। लेकिन एक अधिकारी ने उन्हें हिम्मत दी, आगे पढ़ने के लिए प्रेरित करने वाले वह अधिकारी थे मनोज कुमार।
मनोज कुमार की सलाह के बाद P. Sivakumar ने फोन बूथ पर नौकरी करनी शुरू कर दी, जिससे वह खुद अपना खर्चा उठा सके और अपनी पढ़ाई को जारी रख सके। वह वन विभाग के फोन बूथ और प्रिंटिंग प्रेस में काम करना शुरू कर देते हैं, साथ ही बच्चों को ट्यूशन भी पढ़ाते थे।
वन महाविद्यालय और अनुसंधान संस्थान पालम से मास्टर करने के बाद उन्होंने साल 2000 में सिविल सेवा परीक्षा दी और सफल होकर भारतीय वन सेवा से जुड़ गये।
असम कैडर में P. Sivakumar ने 2 साल तक बतौर प्रोबेशनरी ऑफिसर के रूप में काम करना पड़ा, उसके बाद साल 2002 में उनकी तेजपुर में एक सहायक संरक्षण के रूप में नियुक्ति मिल गई।
तब से ही वह समुदाय उन्मुख कार्यक्रम की अगुवाई कर रहे हैं और भारत में कई स्थानीय प्रजातियों और वनों के संरक्षण के काम में लगे हुए हैं। बता दे उनके उल्लेखनीय योगदान के लिए विश्व बैंक द्वारा साल 2009 में उन्हें राष्ट्रीय वनकी पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है।
मालूम हो कि P. Sivakumar ने 250 किस्म के पौधे की पहचान करके उनके संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। वह 165 किस्म के पौधों के साथ एक नर्सरी बनाने में सफल रहे थे।
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जिससे वनों के संरक्षण में बहुत मदद मिली और स्थानीय जातियों को पुनर्जीवित करने के लिए स्थानीय क्षेत्र में कम से कम उस समय 100 पौधे लगाने की जरूरत थी, तब उन्होंने उन्हें पुनर्जीवित करने के लिए नर्सरी में पौधे लगाकर उन्हें जंगल में लगाया।
P. Sivakumar ने एक सिंग वाले गैंडे के संरक्षण में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। वह बताते हैं गेंडे की अवैध शिकार के कई मामले आ रहे थे। लवोखोवा क्षेत्र में कई जानवर दिन-ब-दिन गायब हो रहे थे।
तब उन्होंने कांजीरंगा के गाने को स्थानांतरित कर दिया और गैंडे की मौजूदा आबादी को बचाने के लिए अवैध गतिविधियों पर लगाम लगाई।
साल 2019 में उन्हें Kaziranga National Park के चीफ कंजरवेटर ऑफ फॉरेस्ट और फील्ड डायरेक्टर के रूप में तैनाती मिल गई है और पिछले दो साल से वह वन्यजीवों, जिसमें हाथियों, गैंडो और जंगली भैंसों के लिए वह छ: वेटलैंड बना चुके हैं और उनके संरक्षण की दिशा में प्रयासरत हैं।
स्थानीय लोगों द्वारा साल 2020 में शिव कुमार को Mr. Kaziranga की उपाधि मिल गई है। ऐसा उन्हें इसलिए कहा गया क्योंकि हैबिटेट को 430 वर्ग किलोमीटर से बढ़ाकर 900 वर्ग किलोमीटर के दायरे में फैलाने मे महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
P. Sivakumar बताते हैं कि कांजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान में गैंडे के अवैध शिकार का खतरा लगातार बना हुआ है। लेकिन अब जब से शिव वहां पर आए हैं ये जानवर अपेक्षाकृत सुरक्षित हो गए हैं और हैबिटेशन के दायरे को बढ़ाने और सुधारने की दिशा में भी लगातार काम किया जा रहा है।
भविष्य की योजना के बारे में P. Sivakumar बताते हैं कि वह जानवरों के स्वतंत्र आगमन के लिए 35 किलोमीटर के दायरे में तीन खंडों में एलिवेटेड रोड बनाएंगे, जिससे वन्यजीवों को कम परेशानी का सामना करना पड़े और वाहनों की आवाजाही पर लगाम लगाने की कोशिश करेंगे।
पार्क के अंदर वाहनों को चेक करने के लिए सेंसर लगाने पर भी विचार किया जा रहा है। वर्तमान समय में पर्यटकों को लुभाने के लिए नए पर्यटन स्थल बनाने पर ज्यादा जोर दिया जा रहा है और सीमांत क्षेत्र में वोटिंग, ट्रैकिंग, साइकिलिंग की अनुमति देने की भी योजना चल रही है ।
अन्य लोग भी ऐसे सोचने लगेगे तो वन्य जीवो के प्रति लोग सजग हो जाएंगे और उनका संरक्षण संभव हो सकेगा, साथ ही लुप्त प्राप्त पौधों का भी संरक्षण के लिए अगर सब लोग मिलकर काम करेंगे तो उन्हें लुप्त होने से बचाया जा सकेगा।