कहते है जिस घर की छत में से पानी टपकता है उस घर की दीवार कमजोर हो जाती है। किस्मत वाले होते हैं वे लोग जिनके सिर पर बुजुर्गों का हाथ होता है।
कहने को सभी से यही सुनते आ रहे हैं, पर फिर भी समाज में बुजुर्ग आज के समय में एकांकी रहने को विवश है क्योंकि आज बच्चे अलग अलग शहरों में जीविका के कारण रह रहे हैं और दुनिया देख चुके अपने बड़े बुजुर्गों को दरकिनार कर आजकल के युवा अपने नए सोच से अपनी जिंदगी को सॅंवारना चाहते हैं।
परंतु उन्हें यह सोचना होगा कि वे भी इस अवस्था में जरूर आएंगे, तब उनके बच्चे भी आजादी चाहेंगे, वे भी उन्हें अपने परिवार में देखना पसंद नहीं करेंगे, क्योंकि वह बचपन से ही यही देखते आ रहे हैं।
युवाओं को अपना थोड़ा समय निकालना होगा और अपने बुजुर्गों को सम्मान देना होगा आखिर वे आज जो कुछ भी है अपने बुजुर्गों के कारण ही है।
साथ ही बुजुर्गों को भी आज के समय आज का समय और परिस्थितियों को देखते हुए बच्चों के विषय में सकारात्मक रुख अपनाना होगा।
हमें अपने एक स्वस्थ और मजबूत समाज की रचना के लिए अपने बुजुर्गों के के मार्गदर्शन की आवश्यकता हमेशा रहेगी इसलिये कहते है कि अपने माता-पिता की आँखें कभी नम न होने देना।
दूध , दही, छाछ, मक्खन, घी आदि सब एक ही कुल के होकर भी अलग-अलग सबकी कीमत है इसी तरह वंश एक होने पर भी कर्म और गुण पर ही आदमी की कीमत निर्भर होती है।
जैसे अपने हाथ से कमाये धन को खर्च करने का आनंद ही कुछ अलग होता है ठीक वैसे ही जिस इंसान ने जीवन में संघर्ष करके उचित मुक़ाम हासिल किया हो उसकी ख़ुशियाँ भी अलग होती है।
आप एक नज़र उठा कर देखिये कि संसार में जितने भी वैज्ञानिक हुए हैं,या बड़े उद्योगपति हुए हैं,या बड़े कलाकार और चाहे राजनेता आदि – आदि उन सभी ने अपने जीवन में अथाह संघर्ष किये तब जाके उनको अपने जीवन में ऊँचाइयाँ हासिल हो पायी।
बिना संघर्ष के जीवन एक विराट रेगिस्तान की तरह होता है। उसमें पेड़-पौधे तो होंगे पर ज़मीन सुनसान और वीरान जैसी होगी। ठीक इसके विपरीत जिसका जीवन संघर्षों के बाद निखरा है उनका जीवन एक बग़िया की तरह होगा।
जंहा विभिन्न तरह के ख़ुशबूदार फूल, ठंडी छाँव देने वाले पौधे और चलने के लिये मुलायम दूब। इसलिये कहा है की एक ही वंश में होने के बावजूद जन्म के बाद सबके कर्म व गुण अलग-अलग होते हैं ।
प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़ )
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