पराली जलाना प्रदूषण के लिए समस्या बन गया है। सब जानते है इससे वायु प्रदूषण फैलता है। इन दिनों दिल्ली की हवाओं में पराली का सीधा प्रभाव देखने को मिल रहा है।
इन दिनों हरियाणा, पंजाब जैसे क्षेत्रों में पराली जलाई जाती है जिसका नतीजा दिल्ली की हवाओं पर पड़ रहा है। लेकिन हरियाणा के कैथल के रहने वाले एक किसान की कहानी इसमें बेहद प्रेरणादायक है।
उन्होंने पराली प्रबंधन के कारोबार को अपनाया और महज एक साल के अंदर उन्होंने दो करोड़ की कमाई कर ली है। इसी सीजन में मात्र 2 महीनों में उन्होंने 50 लाख रुपए कमाए हैं और अपने साथ-साथ उन्होंने 200 युवाओं को रोजगार भी दे रखा है।
पहले वह आस्ट्रेलिया में रहते थे लेकिन स्वदेश लौटकर उन्होंने खेती करना शुरू कर दिया, तब उनके सामने सबसे बड़ी समस्या पराली की थी।
किंतु उन्होंने इसे जलाने के बजाय एक समाधान खोजा और आज अपने क्षेत्र के किसानों के लिए एक मिसाल बन गए हैं। वह फसलों के अवशेष अवशेषों का प्रबंधन का कारोबार करने लगे हैं।
यह कहानी है Virendra Yadav की जिन्हें 32 साल की आयु में ऑस्ट्रेलिया की स्थाई नागरिकता भी मिल गई थी।
लेकिन उनका वहां पर मन नहीं लगा और वह अपनी पत्नी और बेटियों के साथ अपने देश वापस लौट आए और अपने पैतृक गांव में खेती करना शुरू कर दिये।
खेती के दौरान उनकी पहली समस्या फसलों के अवशेषों को लेकर थी। उन्हें पता था कि पराली जलाने से प्रदूषण फैलता है।
पराली जलाने से उठने वाले प्रदूषण की वजह से ही उनकी दोनों बेटियों के स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा तो उन्होंने कुछ करने की ठान ली। बता दें कि Virendra Yadav की दोनों बेटियों को प्रदूषण की वजह से एलर्जी की समस्या है।
जब उन्होंने अपनी बेटियों की सेहत के प्रति ध्यान दिया तब वह इसे गंभीरता से सोचने लगे और उन्होंने सोचा कि आखिर इस समस्या से कैसे निकला जाये।
फिर उन्हें पता चला कि पराली को बेचा जा सकता है। तब वह इस क्षेत्र में जुट गए और एग्रो एनर्जी प्लांट और पेपर मिल से संपर्क करने लगे।
उन्हें पराली का समुचित मूल्य मिलने का आश्वासन मिला। तब उन्होंने योजनाबद्ध तरीके से इसमें काम करने का फैसला किया।
अब वह न केवल अपने खेतों की पराली बल्कि दूसरे किसानों की पराली बेचने का काम करते हैं। पराली को दबाकर इससे गट्ठे बनाने वाले उपकरण का इंतजाम किये, ताकि परिवहन को आसान बनाया जा सके।
इसके लिए उन्हें कृषि एवं किसान कल्याण विभाग से 50% की अनुदान पर तीन स्ट्रॉ बेलन भी खरीद लिये।
बता दें कि एक रोलर की कीमत लगभग 15 लाख रुपए आती है। वह बेलन की मदद से पराली के आयताकार गट्ठे बनाने का काम करते हैं।
Virendra Yadav का कहना है कि उन्होंने मात्र 2 महीनों में धान के सीजन में 3 हजार एकड़ से 70 हजार क्विंटल पराली के गट्ठे बना लिए हैं।
इन्हें वह ₹135 प्रति क्विंटल के हिसाब से 50 हजार क्विंटल पराली गांव के सुखबीर एग्रो एनर्जी प्लांट में बेच देते हैं।
इसके अलावा 10 हजार क्विंटल पराली बेचने का कॉन्ट्रैक्ट उन्हें इसी पेपर मिल के लिए भी मिल चुका है। इस तरह से इस सीजन में अब तक उन्होंने 94,50,000 का कारोबार कर लिया है।
वह अपने खर्चो को निकालकर अगर शुद्ध मुनाफ़ा देखे तो यह लगभग 50 लाख रुपए बनता है। जनवरी तक इस कमाई में और भी ज्यादा इजाफा हो जाएगा।
Virendra Yadav बताते हैं कि उनके परिवार के पास सिर्फ 4 एकड़ जमीन है और उसमें से उनके हिस्से में सिर्फ 1 एकड़ जमीन ही आती है।
इनके पिता पशुपालन विभाग से सेवानिवृत्त हुए हैं इसलिए परिवार की आय का कोई अन्य दूसरा साधन नही था।
इसलिए साल 2008 में वह ऑस्ट्रेलिया चले गए और 2011 में शादी करने के बाद अपनी पत्नी को भी आस्ट्रेलिया लेकर चली गई।
वहां पर वह सब्जी और फलों का कारोबार करते थे जिससे उन्हें सालाना 35 लाख की कमाई हो जाती थी। इस दौरान उन्हें आस्ट्रेलिया की स्थाई नागरिकता भी मिल गई।
लेकिन साल 2017 में वह अपने देश वापस लौट आये और यहां पर उन्होंने खेती और पराली प्रबंधन पर काम करना शुरू किया।
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इसके लिए उन्हें कृषि विभाग के अधिकारी पुरुषोत्तम लाल तथा सहायक अधिकारी डॉ सज्जन सिंह के प्रोत्साहन से नवंबर 2019 में एक स्ट्रॉ बेलन लेने की सलाह मिली।
इसके बाद वह अब तक ऐसे 4 बेलन खरीद चुके हैं, इन चारों बेला की कीमत लगभग करोड़ों रुपए होती है। इन्हीं के जरिए वह पराली प्रबंधन का काम कर रहे हैं।
उन्हें उम्मीद है कि इस सीजन में उनका निवेश वापस मिल जाएगा। वीरेन यादव की कहानी लोगों के लिए प्रेरणादायक है।
वह सरकार के द्वारा मिलने वाली अनुदान का सही फायदा उठाते हैं। Virendra Yadav को देखकर दूसरे किसान भी इनसे प्रेरणा ले सकते हैं और पराली की समस्या से खुद को और दूसरों को भी निजात दिला सकते हैं और मुनाफा कमा सकते हैं।