हम अकसर बच्चों से कहते कि पढ़ लिखकर महान बनो जबकि उन्हें यह सही से प्रेरणा दी जाए की पढ़ लिखकर शालीन बनो , विद्वान बनो क्योंकि बिना शालीनता के विद्वता में अहं का संज्ञान हो जाती है।
ज्यों-ज्यों समय बीतता गया,शिक्षा का पैमाना बढ़ता गया। शिक्षा बढ़ी तो लोगों की आय बढ़ी। नये-नये अविष्कार होने लगे। जिस चंद्रमा को हम धरती से देखते थे और कल्पना भी नहीं की थी कि इंसान एक दिन चंद्रमा पर पहुँच जायेगा।
नित्य नये अविष्कार और शिक्षा ने आय के कई आयाम खोल दिये। इंसान ने आर्थिक विकास बहुत किया और कर रहा है पर अपने बचपन वाले ख़ुशियों के दिन के लिये तरस रहा है।
वो आचरण अप्रिय है जिसमें सह्रदयता का समर्पण नहीं , वैभव-संपन्नता का कोई मोल नहीं यदि हमारे व्यवहार में सदाशयता का मीठा घोल नहीं है । क्रोध, दंभ, लोभ, द्वेष- ये हमें अपने और औरों की नज़रों में गिराते हैं , ऐसे लोग किसी के भी स्नेहादर का पात्र नहीं बन पाते हैं ।
जबकि मधुर व्यवहार, स्नेह , शालीन , सहयोगपूर्ण स्वभाव आदि सबके दिल को लुभाते हैं व खुशियों से मालामाल कर देते हैं । बहुत आवश्यक है जीवन में महज़ उत्तम विचारों का ही नहीं उत्तम आचरण का व्याकरण हो उत्तुंग , वरना हमारे व्यक्तित्व का ग्राफ़ तंग हो जायेगा क्योंकि जिसका मन ग़लत विचारों के प्रदूषण से मैला है , वो भीड़ में भी अकेला है ।
व्यक्ति की नहीं, उसकी विशेषताओं की गरिमा है , सद्गुणों से पूर्ण व्यक्ति के व्यक्तित्व की महिमा है ।सुंदर स्वभाव हमें सबका प्रिय बनाता है जो अपने निश्छल-सरल आदि आचरण से हमें सबका बनाता हैं।तभी तो कहा है कि बच्चे शालीन के साथ विद्वान होंगे तो स्वतः महान हो जायेंगे ।
प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़ )
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