हमारी आज की कहानी है नासिक की रहने वाली एक साहसी महिला किसान संगीता पिंगले की, इस महिला ने अपने पति की मौत के बाद खुद को खुद के बल पर खड़ा किया है और खेती को अपनी ताकत बना लिया है।
संगीता बताती है कि लोगों ने उनसे कहा था कि अकेली महिला खेती को नहीं संभाल सकती है और सफलता नहीं हासिल कर सकती है परंतु संगीता कहती है कि मैं उन सभी की इस सोच को गलत साबित करना चाहती थी। संगीता पिंगले का मूल निवास स्थान नासिक का मटोरी गांव है। और वहां संगीता अंगूर की खेती करती है।
संगीता बताती है कि जिंदगी ने मेरा बहुत ही कड़ा इम्तिहान लिया है पहले मेरे बच्चे की मौत हो गई मैं उस सदमे से अभी बाहर भी नहीं निकली थी कि कुछ वक्त बाद ही मेरे पति चल बसे, कुछ साल बाद ससुर जी भी चले गए।
परंतु संगीता कहती है कि मेरे दो छोटे छोटे बच्चों की परवरिश करने के लिए मैंने कभी हार नहीं मानी और खेतों की ओर अपने कदम को आगे बढ़ा लिया।
संगीता कहती है कि खेती करने की शुरुआत अभी मैंने की ही थी परंतु उस दौरान कई लोगों ने मेरे हौसले को तोड़ने की ठान ली थी कई लोग मुझे ताने देते थे और कई तो यह भी कहते थे कि महिला खेत कैसे संभालेगी किस प्रकार खेती करेगी परंतु मैंने उनकी कही बातों पर ध्यान नहीं दिया और हमेशा ही आगे बढ़ने की प्रेरणा रखी।
संगीता बताती है कि आज मैं अपने खेतों में अंगूर की खेती करती हूं ट्रैक्टर चलाती हूं मार्केट का भी सारा काम खुद ही संभालती हूं और आज मैं इस काम से लाखों रुपए कमा ले रही हूं और अपने दोनों बच्चों को अच्छी परवरिश भी दे पा रही हूं।
इस दौरान संगीता अपनी दुख भरी दासता को बताते हुए कैसी हैं आप मैंने वर्ष 2004 में अपना दूसरा बच्चा खो दिया था और कुछ वक्त बाद ही वर्ष 2007 में सड़क दुर्घटना में मेरे पति का एक्सीडेंट हो गया और उनकी मृत्यु हो गई और उस वक्त वे 9 महीने की गर्भवती थी और उनका सब कुछ बर्बाद हो गया था।
“मैं अकेली पड़ गई थी और जीने की इच्छा भी खत्म हो गई थी”
संगीता बताती है कि वे 10 साल तक तकरीबन अपने ससुर और रिश्तेदारों के साथ एक परिवार में रहती थी इस दौरान वह कहते हैं कि परिवार में झगड़े बढ़ने लगे और इस कारण वह अपने सास-ससुर के साथ अलग हो गई।
इस दौरान संगीता कहती है कि हम जैसे ही अलग होकर रहने लगे उस समय भी बदकिस्मती ने मेरा साथ नहीं छोड़ा समय बाद मेरे ससुर जी की तबीयत खराब हो गई और कुछ महीने में ही उनकी मृत्यु हो गई। इन दिनों को याद करते हुए संगीता कहती है कि जिन लोगों ने हमेशा मेरा साथ दिया भगवान ने मुझसे उनको ही छीन लिया।
इस दौरान वह कहती है कि मैं अकेली हो गई थी और मुझे जीने की बिल्कुल इच्छा नहीं थी। परंतु वह कहती है कि मुझे अब अपने ससुर द्वारा छोड़े गए 13 एकड़ खेत को अकेले ही संभालना था और सास और अपने बच्चों का पालन पोषण भी करना था।
संगीता कहती है कि हमारी आमदनी का एकमात्र स्रोत खेती ही बचा हुआ था परंतु जिन रिश्तेदारों से कुछ समय पहले हम अलग हुए थे उन्होंने दावा करना शुरू किया कि अकेली महिला घर नहीं संभाल सकती और खेती नहीं कर सकती उनका ऐसा मानना था कि खेती करना महिलाओं का काम नहीं है।
परंतु आज संगीता ने उन सभी की सोच को गलत साबित कर दिया है आज संगीता ससुर द्वारा छोड़े गए 13 एकड़ के खेत पर अंगूर और टमाटर की खेती करती है। संगीता कहती है कि टनो की उपज को निर्यात करके वह लाखों की कमाई आसानी से कर लेती है।
संगीता की समस्याएं खत्म ही नहीं हो रही थी
संगीता बताती है कि भले ही हमारे पास 13 एकड़ जमीन थी परंतु उस पर खेती करने के लिए हमारे पास पैसे नहीं थे इसलिए उन्होंने अपने गहनों को गिरवी रख कर उस से कर्ज लिया, और अपने चचेरे भाई से कुछ पैसों की मदद ली ।
संगीता कहती है कि खेती करने में मेरे भाई ने मेरा काफी साथ दिया भैइया ने ही मुझे अंगूर की खेती से पूरी तरह से रूबरू कराया किस तरह के रसायन कब इस्तेमाल करने हैं यह सभी की जानकारी मुझे मेरे भैइया से ही प्राप्त हुई।
संगीता कहती है कि मेरे भैइया ने मुझे यह तक सिखाया की पैदावार को बढ़ाने के लिए किस तकनीक का इस्तेमाल करना चाहिए और कई अन्य तथ्यों को समझाया है संगीता कहती है कि मुझे विज्ञान का थोड़ा-बहुत ज्ञान था इसलिए मुझे यह सब सिखने में ज्यादा वक्त नहीं लगा।
संगीता कहती है कि अंगूर की खेती करने पर उन्हें कई समस्याओं का सामना करना पड़ा वह कहती है कि कभी पानी का पंप खराब हो जाता तो कभी बेमौसम बारिश से फसलों का नुकसान हो जाता था और कभी कीड़ों से निपटना पड़ता था और मजदूरों की समस्या तो कभी खत्म ही नहीं होती थी।
संगीता कहती है कि मैं खेती का तो सारा काम संभाल लेती थी परंतु खेती के साथ-साथ कई ऐसे कार्य होते हैं जो महिलाओं के लिए काफी मुश्किल होते हैं जैसे कि ट्रैक्टर चलाना उपकरणों का देखभाल करना सामानों को बाजार से खरीदकर लाना।
संगीता कहती है इन सभी समस्याओं का हल मैंने कर लिया था मैंने ट्रैक्टर चलाना भी सीख लिया था और एक दिन तो ऐसा आया कि ट्रैक्टर की मरम्मत के लिए मैं पूरा दिन वर्कशॉप पर खड़ी रही थी।
इस प्रकार खेती से सीखा है लग्न और धैर्य
संगीता बताती है कि धीरे-धीरे ही पर खेत में फल आने शुरू हो गए थे। और हर साल उनके खेतों में 800 से 1000 टन अंगूर की उपज होती थी। और इससे वे आसानी से 25 से 30 लाख कमा लेती थी। इस दौरान वह कहती है कि नुकसान की भरपाई के लिए वह थोड़े छोटे से स्तर पर टमाटर की खेती भी करती।
संगीता बताती है कि आज उनकी बेटी ग्रेजुएशन कर रही है और बेटा प्राइवेट स्कूल में पढ़ाई कर रहा है इस दौरान संगीता कहती हैं कि अपनी आमदनी को बढ़ाने के लिए अंगूर की फसल को निर्यात करने के लिए एक नई योजना को तैयार कर रहे हैं।
संगीता कहती है की खेती ने उन्हें धैर्य और लगन सिखा दिया और संगीता ने उन लोगों को साबित कर दिया है कि महिलाएं सब कुछ कर सकती है व पुरुषों से पीछे नहीं है।
संगीता बहुत ही खुशी से कहती है कि मुझे ऐसा लगता है कि में अभी भी जिंदगी से सीख रही हूं वो कहती है कि आज मैंने सभी परिस्थितियों से लड़कर सफलता को हासिल करने में जीत हासिल की है और यह मेरी कड़ी मेहनत और दृढ़ संकल्प के कारण ही प्रबल हो पाया है।
लेखिका : अमरजीत कौर
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