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संस्कार : Sanskar

Sanskar
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मेरे जीवन का एक घटना प्रसंग स्वः दादीसा , स्वः बाईमाँ आदि बचपन में नाश्ता सबका सामूहिक लेकर बैठते व सबको बचपन में एक ही बाल्टी में दूध और एक ही गिलास लेकर रसोई के पास बैठ जाते और नाश्ता देने से पहले मुझे व हम सब भाई – बहनों को रोज़ प्रातः कहते महाराज के दर्शन कीये माला फैंरी तो दूध नाश्ता है नहीं तो नहीं और चाय कीसी को नहीं पीनी हैं ।

झूठ कोई बोल नहीं सकता क्योंकि महाराज से सबकी जानकारी प्रायः प्रायः आती रहती थी इसलिये वो नित – नियम सबके था जिसके परिणामस्वरूप आज ये ही संस्कार जीवन विकास में योगभूत बन रहे है ।

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मुझे याद है जब तक 40 साल (लगभग ) हो गये होगे मुझे चाय पीये और कभी भी मेरे मन मैं भाव नहीं आते है कि मैं चाय पिऊँ क्या ? और मेरे मन में शुद्ध रूप से धर्म को समझ धर्म के प्रति अटूट आस्था है।

एक बार कुछ समय पहले मेरे जीवन में ऐसी परीक्षा की घड़ी आयी दोनो पाँव के ऑपरेशन के बाद मुझे डॉक्टर ने चाय पीने के लिये कहा तो मैंने तुरन्त मना कर दिया और उनको मैंने सौगंध धर्म का मर्म बताया ।

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तब डॉक्टर समझ गये और दूसरा मेरे लिये रास्ता निकाल दिये । कहते है शरीर में कोई सुन्दरता नहीं है|सुन्दर होते हैं व्यक्ति के कर्म, उसके विचार ,उसकी वाणी ,उसका व्यवहार, उसके संस्कार और उसका चरित्र |

जिसके जीवन में यह सब है वही इंसान दुनिया का सबसे सुंदर शख्स है। सही दृष्टिकोण संस्कारों से भरपूर होता है,गर्भस्थ शिशु को ही माता-पिता के , पारिवारिक-जनों के संस्कार मिलने शुरू हो जाते है।

उसके बाद घर के वातावरण का संस्कार सब को प्रभावित करता हैं,इस समय के संस्कार सारी जिंदगी काम आते है,आज 2 साल का बच्चा होने से पहले उसे विद्यालय में भेजने की जल्द बाजी बहुत गलत साबित हो रही है।

बच्चों का सर्वांगीण विकास के लिए उम्र का सही चुनाव भी बहुत जरूरी होता है, बच्चों के दिमाग पर कच्छिमर में पुस्तकों का बोझ और पढ़ाई करने का प्रेशर डालने से वो सही दृष्टिकोण को सीख पाने से वंचित रह जाते हैं।

इसमें हम अभिभावक ज्यादा जिम्मेदार हैं बच्चोँ का सर्वांगीण -विकास न होने में और उससे सही दृष्टिकोण की जीवन में कमीरह जाती है। आज बच्चों को म्यूजिक-क्लास, डांस-क्लास,आर्ट्स एंडक्राफ्ट्स आदि – आदि की शिक्षा तो दी जाती है परन्तु सही संस्कारों से युक्त जीवनोपयोगी व्यवहारिक -ज्ञान की कमी रह जाती है,जो जीवन का अहम हिस्सा है।

इसकी पूर्ति हम सही ज्ञान को समझकर आगे के लिये कर सकते है और हम कितना उसका उपयोग करके भावी पीढ़ी को समझाने में सफल हो पाते है यह महत्वपूर्ण होता है ।

इससे पहले सही दृष्टिकोण को समझने से हमको आत्मबल मिलता है । संस्कारों से हमारा तथा भावी पीढ़ी का जीवन बहुत ज्ञानवर्धक और जीवनोपयोगी बनता हैं।

प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़)

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