विशेष आदर्श-सन्मान, अपनापन, यथावश्यक परिचर्या का मान आदि थके हुए के लिए विश्राम हैं, उदास के लिए दिन का प्रकाश हैं और कष्ट के लिए प्रकृति का सर्वोत्तम उपहार हैं । हम किसी भी सामाजिक और पारिवारिक में यथावसर समय-समय पर उपहार देते रहते है जो की सामाजिकता है व स्नेह-प्यार का इजहार हैं ।
लेकिन इन सबसे ऊपर भी उपहार होते है वह यह है कि हम ऐसे ही कुछ समय निकालकर मान सम्मान परिचर्चा के लिये सबके साथ में बैठकर सही से प्यार अपनापन की सुख – दुख की आपस में बैठकर बाते करे ।
यह ऐसा बिना मूल्य का सर्वोत्तम उपहार है जो सभी मौद्रिक बेशकीमती से ऊपर का उपहार है । हमारी भावकिर्या शुद्ध हो तो मन मे सकारात्मक विचार आते हैं, जब हम शंकाशील होते है कि कभी गलत न हो जाये तो ये नकारात्मक विचार ही हमारे कोई भी गलत होने का कारण बनते है।
शुद्ध भाव हो तो मन, वाणी और शरीर की किर्याएँ भी सही होती है। जहां हमारे चिंतन में निषेधात्मक भाव आये, वहीं गड़बड़ी होने को मौका मिलता है। हमारा सम्यक पुरुषार्थ के द्वारा हम अपने भाग्य को भी बदल सकते है काफी हद तक।
हां, निकाचित कर्म कोई बीच में आ भी जाये तो हम उसको सहर्ष स्वीकार करने की मानसिकता बना पाते हैं और ज्यादा दुःखी नहीं बनते। शुद्ध भावकिर्यापूर्वक किया गया हमारा सम्यक पुरुषार्थ हमारे लिए सर्वोत्तम उपहार होता है।
जीवन क्षणभंगूर हैं असंस्कृत हैं। डोर छूट गयी तो फिर हाथ में नही आएगी। रज्जु टूट गयी तो फिर संधान नही होगा। हवा निकल गयी तो वापिस आने की नही। समय कितना जल्दी बीत जाता है, पता नहीं चलता।
जीवन का और एक महत्वपूर्ण वर्ष हमसे विदा हो गया। सत्य है समय को कोई नहीं रोक पाया। हम इसका सदुपयोग करें या करे दुरूपयोग, यह किसी का इन्तज़ार नहीं करता। इसलिये समय पर हुआ कार्य सर्वोत्तम उपहार है ।
प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़)