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21 बर्ष की ये लड़की हर महीने 6 लाख कमाती है अपने पारिवारिक डेरी फार्म को आगे बढ़ा के

21 बर्ष की ये लड़की हर महीने 6 लाख कमाती है अपने पारिवारिक डेरी फार्म को आगे बढ़ा के
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बड़ी उम्र में सफलता हासिल कर लेना बड़ी बात नही है लेकिन छोटी सी उम्र में सफलता प्राप्त कर देना बड़ी बात मानी जाती है। आज हम एक ऐसी लड़की की कहानी बताने जा रहे हैं जो बेहद कम उम्र में सफलता प्राप्त की।

हम बात कर रहे हैं महाराष्ट्र के अहमदनगर से लगभग 60 किलोमीटर दूर स्थित निघोज गांव के 21 वर्षीय Shraddha Dhawan की। वह अपने पिता के डेरी फॉर्म को चला रही हैं और हर महीने 6 लाख कमाती हैं।

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वह बताती हैं कि उनके घर में कभी भी छह से ज्यादा भैंस नही थी। एक वक्त ऐसा था जब उनके घर केवल एक भैंस थी। यह बात 1998 की है। उन दिनों उनके पिता सत्यवान भैंसों का कारोबार किया करते थे।

दूध बांटना उनके लिए काफी मुश्किल था क्योंकि वह एक दिव्यांग थे। उन्हें शारीरिक और मानसिक रूप से कई सारी चुनौतियों से जूझना पड़ता था। धीरे-धीरे चीजें बदलने लगी। 2011 में Shraddha Dhawan ने भैंस को दुहने और बेचने की जिम्मेदारी उठाई।

Shraddha Dhawan बताती हैं कि उनके पिता बाइक नहीं चला सकते थे। उनका भाई उस समय किसी भी जिम्मेदारी को उठाने के लिए बेहद छोटा था। इसलिए श्रद्धा ने ही मात्र 11 साल की उम्र में यह जिम्मेदारी उठाई।

उस वक्त उन्हें यह काफी अजीब और अनोखा भी लगा था। क्योंकि इसके पहले उनके गांव की कोई भी लड़की इस तरह की कोई जिम्मेदारी नहीं उठाई थी।

Shraddha Dhawan बताती हैं कि जब उनके क्लास के बच्चे स्कूल जाने की तैयारी करते थे तो वह अपने बाइक से गांव के आसपास के डेयरी में दूध बांटने जाया करती थी।

हालांकि पढ़ाई के साथ-साथ या जिम्मेदारी उठाना काफी चुनौतीपूर्ण होता था। लेकिन उन्होंने हार नही मानी। आज Shraddha Dhawan अपने पिता के बिजनेस को आगे बढ़ा रही हैं।

उनके दो मंजिला सेड में 80 से अधिक भैंस है और उनका डेरी फार्म उनके जिले का पहला सबसे बड़ा डेयरी फार्म है, जिसे एक महिला चलाती है।

Shraddha Dhawan की मेहनत का नतीजा यह रहा कि उनके परिवार पहले की तुलना में आर्थिक स्थिति में काफी बेहतर हो गया। वह हर महीने दूध बेच कर 6 लाख कमा रही है।

Shraddha Dhawan बताती है कि जब उनके पिता ने उन्हें डेयरी फार्म की जिम्मेदारी सौंपी थी तब से ही उनका बिजनेस बढ़ने लगा था। धीरे-धीरे यह बढ़ता गया और उनके बारे में अधिक भैंस आती गई।

2013 तक बिजनेस बढ़ने की वजह से दूध बांटने के लिए बड़े कंटेनर का इस्तेमाल किया जाने लगा और उन्हें ढोने के लिए उन्हें कैन और मोटरसाइकिल की जरूरत महसूस हुई।

उन दिनों उनके पास 1 दर्जन से अधिक भैंस थी। उस समय उन्होंने एक और सेड का निर्माण करवाया और भैंसों को वहां पर रखा।

लड़की होकर बाइक चलाना शुरु किया –

Shraddha Dhawan बताती हैं कि 2015 में वह अपने दसवीं की परीक्षा दे रही थी, साथ ही 1 दिन में 150 लीटर दूध भी बेचती थी। उन्होंने बताया कि साल 2016 तक उनके पास लगभग 45 पैसे हो गई थी जिससे वे हर महीने 30 हजार की कमाई हो रही थी।

वह बताती हैं कि शुरुआत में वह काफी शर्मिंदा होती थी और उन्हें काफी अजीब लगता था। क्योंकि उन्होंने पहले अपने गांव में किसी लड़की को बाइक चलाते और दूध बेचते नही देखा था।

लेकिन आज उनके गांव वालों को उन पर नाज है और भी उन्हें प्रोत्साहित करते हैं। उनकी बातों को सुनकर आज Shraddha Dhawan का आत्मविश्वास बढ़ता है। और धीरे-धीरे उनके इस काम में रुचि भी बढ़ गई है।

जैसे-जैसे मवेशियों की संख्या बढ़ी चारे से जुड़ी मुश्किलें आने लगी। पहले मवेशी कम थे तो चारे की आवश्यकता भी कम होती थी और खेत से ही वह मुफ्त में ले लेती थी।

दूसरों से चारा खरीदना उनके मुनासिब पर भारी पड़ने लगा। गर्मियों के दौरान कीमती काफी अधिक हो जाती थी और आपूर्ति कम हो जाती थी। मंदी के दिनों में उनके पास मासिक खर्च के लिए 10 से 15 हजार ही बचा करते थे।

Shraddha Dhawan बताती है कि वह अपने मवेशियों को जैविक चारा खिलाते हैं जो वह आस-पास के खेतों से खरीदते हैं। सेड को दिन में दो बार साफ किया जाता है और सभी मवेशियों के स्वास्थ्य की जांच कराई जाती है।

उनके शरीर में कैल्शियम की कमी न हो और अन्य स्वास्थ्य से जुड़ी कोई परेशानी न हो इसके लिए चिकित्सक उनकी देखरेख करते हैं और उनके दिशानिर्देश के अनुसार मवेशियों को सप्लीमेंट्स चारे में डाले जाते हैं।

श्रद्धा बताती हैं कि उन्होंने शुरू में सीखा की भैंसों को दूध कैसे निकाला जाता है। पहले उनके पिता दूध दुहा करते थे। तब उनके पास इस काम के लिए काफी लोग थे। एक बार जब सभी कर्मचारी छुट्टी पर चले गए तो जिम्मेदारी श्रद्धा पर आ गई।

उनका भाई कार्तिक भैसों की साफ-सफाई और भोजन का ध्यान रखता था और वह मवेशियों को दुहने और उत्पादों को बेचने की जिम्मेदारी उठा ली थी। वह अब भी हर दिन में बीस भैसों को दुहती है।

फिलहाल उनके पास 85 भैस हो गई हैं जिसके प्रति 450 लीटर दूध बेचा जा रहा है। Shraddha Dhawan ने अपनी पढ़ाई को जारी करते हुए धीरे-धीरे बिजनेस की बारीकियों को समझा और उपलब्ध संसाधन में अपने बिजनेस में आने वाली उतार-चढ़ाव को भरने के तरीकों को सीखा।

हार मानने का विकल्प नही था –

Shraddha Dhawan बताती है कि एक युवा के तौर पर काम की जिम्मेदारियां को संभालने के चलते इसका असर उनकी पढ़ाई पर भी पड़ा। लेकिन वह गांव में रहकर ही फिजिक्स में ग्रेजुएशन की।

वह बताती हैं कि उन्हें नही लगता है कि गांव में रह कर पढ़ाई करने के फैसले से उनमें और बड़े शहरों में पढ़ने वाले छात्रों में किसी भी तरह के कौशल की कमी आई है।

वह अब इस तरह की बातों से घबराती नहीं है। साल 2017 में गुजरात का एक व्यापारी उनके पास मवेशियों को बेचने आया था। वह भी अपने पिता के साथ वहां गई थी।

घर वापस आने के बाद उनके पिता ने उनसे पूछा कि किस मवेशी को प्राथमिकता मिलनी चाहिए तो संयोग से श्रद्धा ने जिस भैंस का चुनाव किया उनके पिता ने भी वही चुना था।

उस वक्त पहली बार Shraddha Dhawan को इस बात का एहसास हुआ कि इस क्षेत्र में काम करते-करते वह काफी कुछ सीख गई है।

Shraddha Dhawan कहती है कि अगर उन्होंने जिम्मेदारियों से किनारा कर लिया होता तो वह सफल न हो पाती जो कि उनके लिए शर्मिंदगी की बात होती है।

उनके पिता के पास शर्म के मारे हार मान लेने का कोई विकल्प नहीं था। अपनी बड़ी बहन के काम और मेहनत से प्रेरित होकर कार्तिक भी डेयरी और पशुपालन में डिग्री कर रहे हैं।

2020 में Shraddha Dhawan ने ग्रेजुएशन किया और वह अब फिजिक्स में मास्टर्स कर रही हैं। इस विषय पर वह छात्रों को ऑनलाइन गेस्ट लेक्चर भी दिया करती हैं।

Shraddha Dhawan अपनी सफलता का श्रेय अपने परिवार को देती हैं। वह कहती हैं कि उनकी मां, भाई ने उनके इस प्रयास में तहे दिल से समर्थन किया। वह बताती हैं कि अगर उनके पिता उन्हें बाइक पर दूध देने की जिम्मेदारी न देते तो शायद यह सफलता उन्हें न मिलती।

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