24 वर्षीय युवती का पराली से जलने वाला “धुआँ रहित चूल्हा” बदल सकता है देश की तस्वीर

24 वर्षीय युवती का पराली से जलने वाला "धुआँ रहित चूल्हा" बदल सकता है देश की तस्वीर

पराली का निपटारा किसानों की एक बड़ी समस्या है। इसको जलाने की वजह से प्रदूषण बढ़ जाता है। ठंड के शुरुआत के मौसम में पंजाब और हरियाणा के किसानों द्वारा पराली जलाने से दिल्ली में प्रदूषण का असर देखने को मिलता है।

घरों में भी पराली जलाने से निकलने वाली धुंए की वजह से प्रदूषण होता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार वह घर के भीतर का प्रदूषण वायु प्रदूषण की तुलना में ज्यादा खतरनाक होता है।

एक रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनिया में होने वाली मौतों में हर दूसरी मौत का प्रमुख कारण प्रदूषण है। हर साल लगभग 38 लाख लोग Indoor Pollution की वजह से होने वाली बीमारियों से अपनी जान गवा रहे हैं।

एक रिपोर्ट के अनुमान के अनुसार वैश्विक स्तर पर आज भी 300 करोड़ से भी अधिक बायो-मास, केरोसिन को खाना पकाने के लिए ईंधन के रूप में इस्तेमाल किया जाता है।

घरों के Indoor Pollution के दुष्परिणाम से चिंतित होकर भुनेश्वर की एक इंजीनियर Debashree Padhi

ने इस समस्या का समाधान निकाला है। इससे बायो मास ईंधन और पराली जलाना जैसी समस्याओं का समाधान हो जाएगा।

देबश्री पाढ़ी ने किचन के धुएं के लिए निकाला समाधान

( Debashree Padhi Extracts Solution For Kitchen Smoke ) :-

Debashree Padhi को बचपन में धुंए की वजह से किचन में नही जाने दिया जाता था। उनके परिवार के लगभग सभी सदस्य को किचन में जाने की अनुमति नही थी, सिवाय उन महिलाओं के जो खाना बनाती हैं।

जिन लोगो के घरों में एलपीजी गैस कनेक्शन नहीं थे, वहां पर पारंपरिक चूल्हे जलाए जाते थे। जिससे निकालने वाली धुए से आंखों में जलन के साथ-साथ फेफड़ों की समस्या भी हो जाती थी। वह बताती हैं कि उनके रिश्तेदार का फेफड़ा रसोई से निकलने वाले धुएं से प्रभावित हो गया था।

Debashree Padhi ने बनाया धुआं रहित चूल्हा

( Debashree Padhi Makes Smokeless Stove ) : –

24 वर्षीय Debashree Padhi ने ‘अग्निस’ नाम का खाना बनाने का एक Stove  बनाया है जिससे किसी भी प्रकार का कोई प्रदूषक तत्व नहीं निकलता है। इससे 0.15 पीपीएम से कम कार्बन मोनोऑक्साइड गैस का उत्सर्जन होता है।

Debashree Padhi ने बनाया धुआं रहित चूल्हा
Debashree Padhi ने बनाया धुआं रहित चूल्हा

इस अग्निस stove का एक लाभ यह है कि इसको जलाने के लिए जंगल से लकड़ी लाने की जरूरत नहीं होती है और End to End कुकिंग तकनीक से खाना पकाने से सामान्य की तुलना में आधा समय बच जाता है।

इस तरह मिली प्रेरणा (How She Got Inspired ) :  –

Debashree Padhi अपनी छुट्टियां को उड़ीसा के भद्रक स्थित अपने पुश्तैनी गांव में बिताया करती थी। जहां पर खाना बनाने के दौरान होने वाली परेशानियों को उन्होंने बहुत करीब से देखा था।

क्योंकि वहां पर खाना बनाने के लिए पारंपरिक चूल्हे का प्रयोग किया जाता था। तब उन्होंने इस समस्या को हल करने के लिए इस समस्या को एक प्रोजेक्ट के तौर पर लिया।

दरअसल इंजीनियरिंग की पढ़ाई के तीसरे वर्ष में उनके विभाग द्वारा किसी एक ऐसी समस्या का समाधान खोजने को कहा गया था जैसे बड़े पैमाने पर जनसंख्या प्रभावित होती हो।

Indoor Pollution एक ऐसी चीज है जिसके बारे में वह बहुत अच्छे से जानती थी। इसलिए उन्होंने धुआं रहित चूल्हा बनाने का फैसला किया।

Debashree Padhi सेंट्रल इंस्टीट्यूट आफ प्लास्टिक्स इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी मैसूर का नाम कर्नाटक से अपनी इंजीनियरिंग की डिग्री पूरी की है।

अनुसंधान विकास और कई परीक्षणों से होकर उन्होंने एक धुआँ रहित चूल्हा प्रोटोटाइप बना लिया। उनके प्रयासों से प्रभावित होकर उनके कालेज के शिक्षकों ने उन्हें भुनेश्वर के केंद्र सरकार के सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम इंटरप्राइजेज Exhibition प्रोग्राम में भी Participate करने के लिए प्रोत्साहित किया।

इस Exhibition में उनका प्रोटोटाइप बहुत पसंद किया गया और साल 2015 में उसे अपने प्रोटो टाइप को संशोधित करने के लिए ट्रेनिंग भी दी गई। इस Innovation वाले प्रोडक्ट को मार्केटिंग के लिए 6.25 लाख की धनराशि मिली थी।

एजुकेशन के दौरान Fund और परिवार की आर्थिक मदद से उन्होंने अपनी कंपनी DD BioSolutions Technology Pvt. Ltd ( “डीडी बायोसॉल्यूशन टेक्नोलॉजी”) को रजिस्टर किया और अपनी तकनीक को develop किया।

एक साथ दो समस्याओं को किया हल ( Solved two problems simultaneously ):-

संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा है कि इनडोर pollution का पूरे प्रदूषण में लगभग 22-52% तक हिस्सेदारी रहती है।

इसमें सुधार लाने के लिए खाना पकाने के लिए Alternative Fuel के प्रयोग का सुझाव दिया गया है।बता दें कि उत्तरी भारत के राज्यों पराली की समस्या सर्दियों में वायु प्रदूषण को बढ़ा देती है जिसका सर देश की राजधानी दिल्ली पर देखने को मिलता है।

घरेलू जरूरतों और कचरे के निपटारे को ध्यान में रखकर Debashree Padhi ने एक सामान्य Stove के आकार का 3-burner बनाया। आज यह स्टेनलेस स्टील से बने तीनों स्टोव नैनो, सिंगल बना डबल burner अलग अलग कीमत में उपलब्ध है।

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सिंगल और Double Burner को घरेलू उपयोग को ध्यान में रखकर डिजाइन किया गया है। वही नैनो burner पोर्टेबल है और इसे आसानी से बैग में रखकर ट्रैवल्स किया जा सकता है।

तीनों Stove गोलियों के आकार वाले पैटल द्वारा जलते हैं। पैटल को बनाने की मशीन DD BioSolutions Technology Pvt. Ltd का पेटेंट है। इसे गन्ने की पराली, भूसी और मिट्टी का मिश्रण मिलाकर बनाया जाता है।

300 किलो पैटल को तैयार करने में मशीन आधा घंटा का समय लेती है। Debashree Padhi को इंस्टिट्यूट ऑफ मिनरल एंड मैटेरियल टेक्नोलॉजी भुवनेश्वर इस तकनीक के लिए प्रमाण पत्र मिल गया है। उन्होंने अपने अनोखे स्टोप को साल 2019 में Launch किया था।

Debashree Padhi ने अपने गांव में सबसे पहले अपने इस अनोखे stove की बिक्री की। किसानों को पैटल बनाने वाली मशीन भी किराए पर दिया, जिससे ज्यादा से ज्यादा लोग इसका फायदा ले सके।

1 किलो पैटल की कीमत ₹6 होती है जो लगभग 50 मिनट तक जलता हैं। पैटल बनाकर बेचने से भी मुनाफा हो रहा है। ग्रामीणों को इस स्टोप पर खाने बनाने के लिए पैटल पर हर महीने लगभग 120 से ₹150 खर्च करने पड़ते हैं।

गांव से मिलती सकारात्मक प्रतिक्रिया को देखते हुए इस तकनीक को देबश्री शहरी क्षेत्र में भी ले जाना चाहती हैं।

वह कहती हैं कि यह स्टोप सामुदायिक रसोई, सड़क किनारे के विक्रेताओं, स्कूल और छोटे पैमाने पर चलने वाले Restaurants के लिए काफी अच्छा विकल्प हो सकता है। वह अपने इस स्टोप को भुनेश्वर के कई ढाबों में भी बेंच चुकी है।

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