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सोचें जरा

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हम बहुत सी गलतियाँ करके भी प्रायः स्वयं से कभी घृणा नहीं करते हैं ।अपितु स्वयं से प्यार ही करते रहते हैं तो सोचे जरा –

हम दूसरे किसी के द्वारा हमारे प्रति एक ही भूल होने पर भी कभी घृणा कैसे कर सकते हैं ।इस सन्दर्भ में दो बाते उपुक्त होगी कि मानव का स्वभाव हैं भूल होना और दूसरा क्षमा माँगना और देना आत्मा को हल्का करना हैं ।

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हम देखते है कि सभी रिश्ते अब शीशे की तरह ही हो गए हैं । आजकल छोटी-छोटी बातों पर हर कोई तत्काल रूठ जाता हैं । आपसी गलतफहमिओं से रिश्ते टूट जाते हैं और गलती हो जाए तो क्षमा मांगने से रिश्ते सुधर जाते हैं ।

जाने अनजाने क्रोध में आकर हम किसी को कुछ बोल देते हैं, परंतु फिर जब हमें अपनी गलती का एहसास हो तो तुरंत माफी मांग लेनी चाहिए।

गलती स्वीकार करने से सामने वाले का गुस्सा काफी हद तक ठंडा हो जाता है। क्षमा मांगना और देना हमारे व्यक्तित्व की अच्छी पहचान है।क्षमा को शीलवान का शस्त्र, प्रेम का परिधान और नफरत का निदान कहा गया है ।

मानव जीवन बहुमूल्य एवं दुर्लभ है, ऐसे अच्छे जीवन को हमें व्यर्थ नष्ट नहीं करना चाहिए। सतत ऐसे कर्म करने चाहिए ,जिससे मानव जीवन की सार्थकता हो।

उद्देश्यहीन जीवन धरती पर बोझ है। जीवन की सार्थकता– आध्यात्मिकता, नम्रता एवं प्रामाणिकता आदि से सिद्ध होती है। सहायता की जिसको जरूरत हो उसकी मदद करनी चाहिए, आशा किसी से ना रखें।

किसी भी प्राणी को दुख ना दें।सभी से नम्रतापूर्वक एवं विनीत होकर बात करें , जिससे आपकी मीठी वाणी, सच्चाई, सरलता एवं मानवता आदि को मरणोपरांत भी हमेशा याद किया जाऐ।

प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़)

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