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10 हजार की लागत से शुरू किया था अचार का बिजनेस, आज लाखो हो रही कमाई

10 हजार की लागत से शुरू किया था अचार का बिजनेस, आज लाखो हो रही कमाई
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असम की रहने वाली दीपाली भट्टाचार्य की जिंदगी भी एक सामान्य औरतों की तरह हुआ करती थी। लेकिन उनके सामने कुछ ऐसी परिस्थितियां बनी कि वह साधारण से असाधारण बन गई और आज लोगों के लिए मिसाल हैं।

वह एज उद्यमी और “प्रकृति” की संस्थापक हैं। दरअसल प्रकृति एक जाना माना ब्रांड है जो कि आचार और नमकीन बेचता है। दीपावली की जिंदगी बेहद सरल है। वह सुबह सूरज की रोशनी के साथ उठ जाती हैं और रोजाना सुबह टेस्टी पीटा बनाती हैं, यह असम का एक पारंपरिक व्यंजन है।

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इसे चावल के आटे गुण और नारियल के तेल से बनाया जाता है। स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए दीपाली इसमें तेल नही मिलाती हैं बल्कि इसको बेक करती हैं और रोजाना करीब 50 पीटा अपने पड़ोस की मिठाई की दुकान में भेज देती है।

दीपावली अपने व्यंजनों के साथ तरह-तरह के प्रयोग करती रहती हैं और करीब 25 प्रकार के उन्होंने अचार अब तक बनाए हैं। दीपाली हल्दी-नारियल का अचार और मशरूम का अचार भी बनाती हैं। उनके बनाए उत्पाद हाथ से ही बनाए जाते हैं और इस बिजनेस को चलाने में उनकी बेटी उनका साथ देती है।

एक महीने में दीपाली अचार के करीब 200 डिब्बे बेंच लेती है। दीपाली द्वारा बनाए गए अचार असम के गुवाहाटी समेत देश के विभिन्न हिस्सों में बेचा जाता है। दीपाली इस तरह से करीब ₹500000 साल भर में कमा लेती हैं।

बात साल 2003 की है जब दीपावली के पति का निधन हुआ था। दीपाली बताती हैं कि हम उन दिनों होम बिजनेस के बारे में बात करते थे। तब उनके पति ने ही उन्हें “प्रकृति” नाम सुझाया था।

दीपावली कहती है कि उनके पति हमेशा से उनके प्रयासों का समर्थन करते थे और उनकी स्मृतियों को जिंदा रखने के लिए दीपाली ने अपने ब्रांड को प्रकृति नाम दिया।

दीपाली का अचार हमेशा से उनके परिवार और दोस्तों के बीच लोकप्रिय रहा है। साल 2015 में उन्होंने अपने फर्म को रजिस्टर करवाया और यही से मजबूती के साथ अपने बिजनेस में आगे बढ़ा सकी।

दीपाली की बेटी जब मात्र 9 साल की थी तभी उनके पति का दिल का दौरा पड़ने से साल 2003 में निधन हो गया था। उस समय उनकी उम्र मात्र 40 साल की थी। पति के गुजरने के बाद घर की जिम्मेदारी दीपाली पर आ गई।

दीपाली ने ₹10,000 के निवेश के साथ अपना ब्रांड “प्रकृति” शुरू किया और इसके तहत हाथ से बने अचार का स्टार्टअप इस तरह से शुरू हो गया, जिसमें वह लहसुन, मेथी के बीज, इमली, आम, मिर्च, चिकन, मछली आदि के अचार बनाया करती हैं।

जल्दी ही रेडी टू ईट यानी कि पहले से तैयार नाश्ता जिसमें चावल पाउडर, केला पाउडर, बड़ा, दूध पाउडर और चीनी का मिश्रण से बना नाश्ते के विकल्प भी शामिल कर लिया गया। दीपाली अपने हाथों से दही बड़े और अन्य भिन्न भिन्न प्रकार के पीटा बनाने के लिए काफी लोकप्रिय हैं।

दीपाली अपनी बेटी के साथ गुवाहाटी में है लेकिन इनका जन्म और पालन-पोषण असम के जोरहाट में हुआ था। दीपावली के पिता का मसालों का कारोबार था। उसके बाद उनके कारोबार को उनकी मां और उनके भाई ने संभाला।

लेकिन भाई के निधन के बाद व्यवसाय बंद हो गया। दीपाली कहती हैं कि उन्होंने अपने घर में ही देखा था कि अनोखे मसालों का इस्तेमाल करके घर पर ही कैसे स्वादिष्ट अचार बनाते हैं। जब अचार बनाया जाता था तब वह उस प्रक्रिया को बारीकी से देखती थी और यहीं से उन्होंने अचार बनाना सीख लिया।

दीपावली की सास भी बेहतरीन कुक थी और खाना पकाने की कुछ महत्वपूर्ण तकनीक ज्ञान उन्हें आज भी देती हैं, जैसे कि अचार में मसालों कितनी मात्रा में डालने है।

1998 में दीपावली में घर से फूड डिलीवरी का एक छोटा सा बिजनेस शुरू किया था। उन्होंने एक स्कूटर खरीदा और एक व्यक्ति को ऑर्डर पहुंचाने के लिए नियुक्त कर दिया था।

दीपावली ने देखा था कि उनके द्वारा बनाए गए दही बड़े, सांभर बड़े, इडली, आलू चॉप लोग काफी पसंद करते थे। पति के निधन के बाद दीपाली अचार बनाने का काम शुरू की और लोग दीपावली के घर से आचार खरीदने लगे। इसके अलावा वह पास की दुकानों में भी अचार बेचती थी।

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दीपाली हमेशा छोटी मोटी कुकिंग प्रतियोगिता में भाग लिया करती थी। वह नारियल विकास बोर्ड गुवाहाटी के एक कार्यक्रम में नारियल के उत्पादों पर आधारित इस प्रतियोगिता में शामिल की गई थी यहां पर उन्हें प्रशिक्षण कार्यक्रम के लिए चुना गया और वह ट्रेनिंग के लिए केरल गई।

वहां 10 दिनों तक रही और वहीं पर उन्होंने नारियल की मिठाई, टॉफी, केक, आइसक्रीम, अचार बनाना सीखा और यहीं पर वह हल्दी नारियल का अचार बनाना भी सीख गई। वापस आने के बाद वह अपने अनुभव को कई महिलाओं से साझा की जो एक तरह से होम मेकर थी।

इसके अलावा दीपाली साल 2012 तक नंदनी, सखी जैसी पत्रिकाओं में लेख भी लिखती थी, जिसमें वह सीमित बजट में बढ़िया खाना बनाने के टिप्स के बारे में लिखा कर दी थी जो कि उनके ब्रांड प्रकृति को विकसित करने की दिशा में काम कर रहे थे, जिसका उन्होंने साल 2015 में पंजीकरण करवाया। उनके उत्पादन FSSAI द्वारा प्रमाणित है।

दीपाली अचार के लिए सभी गतिविधियां अपने घर पर ही करती हैं। वह अचार बनाने से लेकर पैकिंग तक घर पर ही करती हैं और लेवल छुपावाती हैं। उनके पास सीलिंग मशीन भी है और सोशल मीडिया पर प्रकृति ब्रांड को बढ़ाने में उनके बेटी उनकी मदद करती है।

इसके अलावा वह प्रदर्शनी में भी भाग लेती हैं ताकि ज्यादा लोगों तक पहुंच बना सकेम अब तो उनके कुछ नियमित ग्राहक भी बन गए हैं।

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दीपाली की बेटी भी अपनी मां की मदद करती है और मां बेटी की यह जोड़ी दुनिया के हर बड़े नुकसान का सामना करने में सक्षम है।

दीपाली की बेटी इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग में ग्रेजुएट है और वह अपनी मां के साथ काम करने के अलावा फ्रीलांस डिजिटल कंटेंट राइटर भी है और तकनीकी रूप से अपनी मां की मदद करती है, जिससे कि उनकी कारोबार को ऑनलाइन बढ़ावा मिल सके।

दीपाली की बिजनेस की यात्रा आसान नहीरही लेकिन उन्होंने अपने रास्ते में आई हर बाधा और चुनौतियों का सामना किया।

दीपावली की कहानी से हमें यह प्रेरणा मिलती है कि जिंदगी में चाहे जिस तरह की चुनौतियां आये, अगर हम ईमानदारी के साथ अपना काम करते रहेंगे तब हमें कोई न कोई रास्ता मिल ही जाएगा और कामयाबी मिल जाएगी।

दीपाली अपने ब्रांड को आचार का एक पसंदीदा घरेलू ब्रांड बनाना चाहती हैं। इसके लिए वह सोशल मीडिया का भी खूब इस्तेमाल कर रही हैं जिसमें उनकी बेटी उनकी मदद करती है।

 

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