कहा जाता है कि हमारी सोच ही हमारी सफलता का रास्ता बनाती है। जीवन में कुछ भी असंभव नही होता है।
आज की हमारी यह कहानी दृढ़ निश्चय रखने वाली एक लड़की की है, जिसने अभाव में रहकर भी अपनी मेहनत पर पूरा विश्वास किया और कठिन से कठिन रास्तों में भी अपनी सकारात्मक सोच को बनाए रखा और अपने सपने को सच किया।
जी हां हम बात कर रहे हैं आईएएस (IAS) ऑफिसर Surabhi Gautam की, जिन्होंने अपने दृढ़ संकल्प के दम पर अपनी जिंदगी के सारे आभाव को दरकिनार करते हुए अपने सपनों को पूरा किया है और हिंदी भाषा भी कभी उनकी सफलता में रोड़ा नहीं बन पाई।
वह इंजीनियरिंग में यूनिवर्सिटी के टॉपर रही और गोल्ड मेडलिस्ट भी रही। Surabhi Gautam ने साल 2016 की सिविल सर्विस परीक्षा में 50 वीं रैंक हासिल की थी।
बता दें कि सुरभि 12 वीं तक की पढ़ाई गांव में रहकर हिंदी मीडियम से की थी। Surabhi Gautam उन लोगों के लिए एक करारा जवाब है जो हिंदी भाषा बोलने में शर्म अनुभव करते हैं और हिंदी भाषा को अंग्रेजी भाषा की तुलना में निम्न समझते हैं।
Surabhi Gautam मध्य प्रदेश के सतना जिले में 1000 आबादी वाले गांव अमदारा की रहने वाली हैं। उनका जन्म एक संयुक्त परिवार में हुआ था।
Surabhi Gautam के पिता सिविल कोर्ट में वकील और मां शिक्षिका है। सुरभि बचपन से ही पढ़ाई में बहुत अच्छी थी। वह हमेशा कोशिश करती थी कि कक्षा में प्रथम आये।
दसवीं की परीक्षा पास करने के बाद सुरभि ने आईएएस बनने का सपना देखना और इसे अपना लक्ष्य बना लिया कि वह प्रशासनिक सेवा में ही जाएंगी।
12वीं तक की शिक्षा Surabhi Gautam ने गांव में ही की, जहां पर मूलभूत सुविधाओ का प्रबंध भी सही प्रकार से नहीं हो पाता था। गांव में बिजली की उचित व्यवस्था न होने की वजह से उन्हें लैंप में पढ़ाई करनी पड़ती थी।
12वीं की कक्षा के दौरान ही Surabhi Gautam को रिमेटिक फीवर हो गया और इसके चलते हर 15 दिन में गांव से दूर जबलपुर जाकर डॉक्टर को दिखाना पड़ता था।
12 वीं करने के बाद Surabhi Gautam ने स्टेट इंजीनियरिंग एंट्रेंस का एग्जाम दिया और उन्हें सरकारी कॉलेज में एडमिशन मिल गया। सुरभि ने इलेक्ट्रॉनिक्स एंड कम्युनिकेशन इंजीनियरिंग में अपना ग्रेजुएशन किया।
गांव से निकलकर इंजीनियरिंग की पढ़ाई Surabhi Gautam के लिए आसान नहीं थी। साथ ही गांव और शहर दोनों के माहौल में भी बहुत अंतर था और सबसे बड़ी समस्या थी कि सुरभि की अंग्रेजी बहुत कमजोर थी ।
Surabhi Gautam और उनके कॉलेज के अधिकतर बच्चे इंग्लिश मीडियम के ही थे और सुरभि हिंदी मीडियम से पढ़ाई की थी।
Surabhi Gautam इस बारे में बताती हैं कि वह गांव में पहले बेंच पर बैठा करती थी, लेकिन जब वह शहर गई तब इंग्लिश न आने की वजह से उन्हें आखिरी बेंच पर बैठना पड़ता था और उन्हें बहुत अजीब और बुरा लगता था।
फिर धीरे-धीरे सुरभि ने अन्य विषयों के साथ ही अंग्रेजी पर पकड़ बनाना शुरू कर दिया और पहले सेमेस्टर में ही वह यूनिवर्सिटी टॉप कर गई और उन्हें वाइस चांसलर द्वारा अवार्ड मिला।
अपनी अंग्रेजी को सुधारने के लिए सुरभि रोजाना अपनी किताबों में से स्पेलिंग ढूंढ कर 10 से 15 शब्द दीवारों पर लिख कर चिपका देती थी और उन्हें बार-बार पढ़कर अभ्यास करती थी।
इस तरह से Surabhi Gautam ने अंग्रेजी सीख ली और इंजीनियरिंग में गोल्ड मेडलिस्ट रही। इंजीनियरिंग में ग्रेजुएशन करने के बाद सुरभि ने भारतीय एटॉमिक रिसर्च सेंटर में बतौर न्यूक्लियर साइंटिस्ट के रूप में काम किया।
इस परीक्षा में Surabhi Gautam ने ऑल इंडिया दूसरी रैंक पाई थी। इसके बाद साल 2013 में सुरभि ने इंडियन इंजीनियरिंग सर्विस (IES) में टॉप किया और साल 2016 में सिविल सर्विसेज परीक्षा में 50 वीं रैंक लाई।
Surabhi Gautam कहती हैं कि वह शुरू से ही अपना लक्ष्य प्रशासनिक सेवा में जाने का बना ली थी, इस लिए जब वह ग्रेजुएशन कर रही थी तभी से तैयारी करना शुरू कर दी साथ ही उनके माता-पिता ने भी उन्हें हर संभव सहयोग दिया और आत्मविश्वास बढ़ाया।
Surabhi Gautam पढ़ाई के साथ-साथ पेंटिंग भी बहुत अच्छी बना लेती हैं और उन्हें कविताओं का भी शौक है। स्केचिंग, कढ़ाई, बुनाई और रंगोली में भी सुरभि को महारत हासिल है।
Surabhi Gautam कहानी से हमें यह प्रेरणा मिलती है कि सुविधाओं के अभाव में संघर्ष करते हुए फर्श से अर्श तक का सफर तय किया जा सकता है, बशर्ते कि अपने आप पर विश्वास करके एक संकल्प के साथ आगे बढ़ा जाये। हमेशा अपने आप पर और अपनी मेहनत पर विश्वास करके बड़े से बड़ा सपना पूरा किया जा सकता है।