समयानुसार ही चलना उचित है। वह दूसरी बात समय के साथ परिवर्तन आवश्यक है पर हमारा प्रकृति के साथ सामंजस्य में भरसक प्रयत्न हो ।
हमारे जीवन में बहुत सारे रोगों का कारण ही प्रकृति से दूर हो जाना है । जीवन में अप्राकृतिक रूप से गर्मी को शीतल करना अथवा शीत को तापमय करना काफी हद तक स्वास्थ्यप्रद नहीं है ।
इनमें कहीं न कहीं हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता का ह्रास होता है। हमारी जिन्दगी कोई घुड़दौड़ नहीं है हम अपनी प्रकृति अनुसार ही चलें अपने स्वाभाविक लय में ही बढ़ें ।
हमारा जीवन अनावश्यक भागदौड़ व तनाव आदि में नहीं है यह जीने का आनन्द जीवन्त रखने में है । डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णनन महान दार्शनिक व शिक्षक और हमारे पूर्व राष्ट्रपति कहते हैं कि प्रसन्नता, खुशी, आनन्द हैं ।
यह हमारे मानव होने की स्वाभाविक वृत्ति है । हम इसी आधार पर यह कह सकते हैं कि खुश न रहना हमारे स्वभाव की विकृति है । एक अन्य विद्वान की उक्ति है मुस्कान(Smile) आन्तरिक प्रसन्नता की बाह्य अभिव्यक्ति है।
एक और विद्वान ज़ोर देकर कहते हैं कि पर सेवा खुशी पाने का महान जरिया है । वे आगे कहते हैं कि पर सेवा आत्मा की प्रसन्नता है इसीलिए तो लोग दिल से पर सेवा करके आन्तरिक धन्यता महसूस करते हैं जिससे वह तनाव से दूर रहे ।
यह एक बात जो बारम्बार, हजारों बार, कही जाती है कि प्रसन्नता या खुशी का गणित खुशी जब बांटी जाती है तो द्विगुणित हो जाती है। अतः हम सब अपने स्वभाव से, अपने व्यवहार से आदि सदा प्रसन्न रहें वह सबको सदा प्रसन्न रखने का प्रयत्न करें।
हम किसी से भी कोई गिला, जिन्होंने कभी हमको दर्द आदि दिया है आदि – आदि सारे तनाव भूल जायें । हम कभी, किसी से भी, किसी भी तरह की ईर्ष्या आदि नहीं करे क्योंकि दुनिया में भगवान ने अटूट मात्रा में अपने-अपने
( क्रमशः आगे)
प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़)
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