हम लोग ऐसे सोचते हैं कि जो लोग बड़े उद्योगपति होते हैं उन्हें भगवान किसी खास मिट्टी से बना कर भेजते हैं, परंतु जब हम उनकी पिछली जिंदगी और उनकी सफलता के बारे में जाने की कोशिश करते हैं तो हमें इस बात का पता चलता है उनकी पिछली जिंदगी किस प्रकार संघर्ष और हमारी यादों की गुल्लक की तरह गुजरी हुई है ।
आज हम आपको एक बड़े कारोबारी की एक ऐसी ही रोमांचक और सफलता की कहानी बताने जा रहे हैं जिनको पटना की गलियों में अपने दोस्तों के साथ कंचे खेलने का रोमांचक अनुभव है और दोस्तों के साथ झगड़ा होने पर चाय की चुस्की में उस झगड़े को भुला देने का यादें भी है ।
दरअसल हमारी आज की कहानी है वेदांता समूह के प्रमुख अनिल अग्रवाल की है , हाल ही में अनिल अग्रवाल ने अपनी फेसबुक प्रोफाइल पर चाय की चुस्की लेते हुए एक तस्वीर को अपलोड किया और साथ ही साथ लिखा कि चाय की चुस्कीयों से जुड़ी हुई खूबसूरत यादें ।
घर की चाय लाजवाब
अनिल अग्रवाल कहते हैं भले ही आज मैं बड़े मुकाम पर पहुंच गया हूं परंतु बचपन में मैं भी पटना की गलियों में अपने दोस्तों के साथ कंचे खेला करता था उस वक्त कभी महसूस ही नहीं होता था कि मैं इतने बड़े कारोबार का मालिक बन जाऊंगा ।
अनिल कहते हैं कि मैं जब भी काम के बीच में ब्रेक लेता हूं एक बार चाय की चुसकी तो अवश्य लेता हूं, आज तक में कई जगहों पर गया हूं परंतु घर की चाय में जो स्वाद है वह तो कहीं पर भी नहीं , वह बताते हैं कि उनका घर उनके लिए ना केवल एक घर है बल्कि घर के साथ उनकी काफी भावनाएं जुड़ी हुई है ।
कंचे खेलते समय हुए झगड़े को भुला देती थी चाय
अपने बचपन से जुड़ा हुआ एक और किस्से को साझा करते हुए अनिल अग्रवाल कहते हैं कि जब मैं पटना की गलियों में अपने दोस्तों के साथ कंचा खेला करता था उस वक्त कई बार हमारे बीच झगड़ा हो जाया करता था उस वक्त हम सभी दोस्त चाय की चुस्की लेकर एक सुकून भरी सांस लेकर शांत हो जाते थे ।
वह कहते हैं कि भले ही आज इतना बड़ा कारोबार चला रहा हूं परंतु घर और दोस्तों की कमी हमेशा रही है, कुल्हड़ वाली चाय और दोस्तों के साथ मिलने का अंदाज आज भी मेरी यादों से नहीं मिट पाया है ।
बचपन से ही था कुछ बड़े बनने की आश
अनिल अग्रवाल कहते हैं कि बचपन की यादों में तो यह भी शामिल है कि भले ही हम अपने बचपन में कितनी भी मस्ती खेलने कूदने भी गेम्स खेलते हो परंतु मां की ममता और बाबूजी नमी भरी आवाज आज भी मेरे जेहन में है ।
बचपन में कभी पता ही नहीं चला कब कंधों पर जिम्मेदारी का बोझ आ गया , वह बताते हैं कि आज मैं पीछे देखता हूं तो पता चलता है कि कब स्ट्रीट गेम्स खेलते खेलते , स्कूल की पढ़ाई करते-करते कब फैमिली का बोझ आ गया ।
आज इतने बड़े कारोबार के मालिक हैं अनिल अग्रवाल
जानकारी के लिए आप सभी को बता दें कि अनिल अग्रवाल की मां केवल 400 रुपए में अपने चार बच्चों का पालन पोषण करती थी, काफी कम लोगों को इस बात की जानकारी होगी कि अनिल अग्रवाल 20 साल की उम्र में ही पटना को छोड़कर मुंबई आ गए थे।
पटना आने के बाद अनिल अग्रवाल ने कुछ समय तक यहां वहां काम की तलाश की उसके बाद इन्होंने कबाड़ से पुरानी तार खरीदने का काम शुरू किया काफी समय तक उन्होंने यह काम किया परंतु धीरे-धीरे उनकी तरक्की इतनी अधिक बढ़ गई कि आज पटना की सड़कों पर कंचे खेलने वाले अनिल अग्रवाल वेदांता ग्रुप के मालिक हैं।
जानकारी के लिए आप सभी को बता दें कि वेदांत ग्रुप ( Vedanta Group ) खनन यानी कि पेट्रोलियम अल्मुनियम जैसे कई क्षेत्रों में कार्य करता है इसका कुल मार्केट कैपिटलाइजेशन 1.58 लाख करोड़ है ।
आज अनिल अग्रवाल की कहानी हमें यह सीख दे रही है कि भले ही हम किसी भी परिस्थितियों से गुजरे हमारा बचपन चाहे कैसा भी हो परंतु परिवार की जिम्मेवारी हमेशा ही हमारे कंधों पर होती है जो हमें आगे बढ़ने में और कुछ बड़ा करने के लिए प्रेरित करती है ।
लेखिका : अमरजीत कौर
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