दिवंगत शासन श्री मुनि श्री पृथ्वीराजजी स्वामी ( श्रीडुंगरगढ़ ) मुझे बात के प्रसंग में बोलते थे कि प्रदीप हमारे जीवन की जड़ हमारी सोच ही है जैसे नींव मजबूत होती है तो मकान की मजबूती बनी रहती है उसी तरह सोच हमारी अच्छी सही होती है तो हमारे जीवन की यात्रा आनन्द से चलती हैं।
सोच का प्रभाव पड़ता है मन पर , मन का प्रभाव पड़ता है तन पर , मन और तन दोनो का प्रभाव पड़ता है जीवन पर। इसलिये सोच हमारी महत्वपूर्ण है।
जिस मनुष्य के हृदय में सही दृष्टिकोण हो उसकी सोच हमेशा यही होगी कि मुझे मिला हुआ दुःख किसी को नही मिले और मुझे मिला हुआ सुख सबको मिले।
मन की सुंदर सोच है तो सारा संसार सुंदर नज़र आएगा और जैसे विचार वैसे शब्दों के चयन में विनम्रता-श्रद्धा-आदर-समर्पण-निष्ठा के भाव हो क्योंकि विचार एक भावनात्मक उपचार हैं,
और आचार यह हमारे आत्मसम्मान के गुण को बढ़ाता हैं।
हम जब भी अपना पथ प्रशस्त कर लक्ष्य बनाते हैं तो उसे प्राप्त करने के सही तरीक़े सोचते हैं और सदाचार की राह श्रद्धा-निष्ठा से सफलता प्राप्त करते हैं। तालाब एक ही है उसी तालाब मे हंस मोती चुनता है और बगुला मछली सोच -सोच का फर्क होता है।
आपकी सोच ही आपको बडा बनाती है। जैसी सोच होगी वैसी ही वाणी होगी | अग्नि चाहे दीपक की हो, चिराग की हो अथवा मोमबत्ती की लौ से हो इसके दो ही कार्य है जलना और प्रकाश करना।
यह हमारे विवेक के ऊपर निर्भर करता है कि हम इसका कहाँ उपयोग करें, यही लौ मनुष्य के शरीर को शांत भी कर देती है,यही लौ अन्धकार को दूर कर सम्पूर्ण जगत को प्रकाशमय कर देती है।
अतः चिन्तन की बात यह है कि उपयोग करने के ऊपर निर्भर है वो उसी वस्तु से पुण्यार्जन कर सकता है तो थोड़ी चुक होने पर पापार्जन भी कर सकता है।
अतः हम सदा अच्छा सोचें, अहर्निश खुश रहें। हँसते मुस्कुराते रहें। जीवन की यात्रा में आदत ही ऐसी बना लें कि गीत खुशी के गाते रहें।
प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़ )
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