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जिन्दगी है अपनों के साथ ही : Zindagi hai Apno ke Sath hi

Zindagi hai Apno ke Sath hi
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कहते है कि अपने आखिर अपने होते है वो सुख – दुख में हमारे साथ खड़े रहते है । यदि शांति से जीना चाहते हो तो अपनों के साथ तकरार के भाव से दूर रहो, जहां रहते हो सामूहिक जीवन में तो मैत्री और स्नेह से भरपूर रहो।

अपनों की बात को सुनो मन के अनुकूल बात को भी सुनो और सहने की आदत डालो, बात को मन में घुटन न बनाकर सत्य को कहने की आदत डालो। यदि मिटानी है अपनो के साथ मानसिक दूरी तो तन से भी ज्यादा मन का परिमार्जन जरूरी है।

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यह तो निश्चित सत्य है जन्म के साथ मौत तो निश्चित है।मौत से क्या डरना तेरा मेरा करते एक दिन चले जाना है । जो भी कमाया यहीं रह जाना है ।कर ले कुछ अच्छे कर्म साथ तेरे यही जाना है । रोने से तो आंसू भी पराये हो जाते हैं लेकिन मुस्कुराने से प्यारे भी अपने हो जाते हैं। हर युग मे ऐसी संवेदनहीन कहानियां कमोबेश रूप मे, दुहराई जाती है।

इतिहास के रक्त रंजित पन्नों की चीखें चतुराई से छुपाई जाती है। अकेला वर्तमान ही दोषी नहीं है इन अमानवीय कृत्यो के लिए हमारी मानसिकता भी साथ में भटक जाती है जब बात अपने हितों की आती है। अपनों से अपनों का अटूट रिश्ता होता हैं जो अब विपरीत हो गया है बिल्कुल घनघोर घटा जैसा हो गया है।

हम देखते है कहीं दिखावे का प्यार बहता हैं तो कहीं अपना -अपनों से ही लड़ता हैं। रिश्तों की मधुमय मिठास में अब खटास आ गई है हर ओर एक अंधियारी धुन्ध छा गई है। खेल -खेल में सीखें हम जीवन के अनमोल गुर , स्वजनों के बग़ैर विजय के मधुर सुर नहीं बज सकते है।

अपनों के साथ से ही बाज़ी चलायमान होती है और आपसी ताल-मेल से ही हासिल होती है जो आगे जीत का आसमान होती है क्योंकि यही ज़िंदगी का फ़लसफ़ा है।

आत्मीयता अपनों के साथ बनी रहे तभी जीवन जीने का मज़ा हैं यानी प्रकृति ने स्पष्ट संकेत दिया हैं कि हम जिंदगी अकेले नहीं जी सकते हैं । अपनों के साथ हो तभी आनन्द का घूँट पी सकते हैं। अतः अपनों के साथ सदा रहो भूलो छोटी-मोटी आपस की भूलों को और अपनों के हाथ से हाथ मिलाये रखो।

प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़ )

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