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जिन्दगी की परिभाषा : Zindagi ki Paribhasha

Zindagi ki Paribhasha
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कहते है कि चाहे हो आम आदमी या चाहे हो कोई खास आदि सभी की प्रायः ढर्रे में ही जिन्दगी बीतती है। वह ध्येय के आसपास नहीं पहुँचता है क्योंकि कुछेक त्यागी तपस्वी साधु – सन्त आदि जो जानते हैं जीवन का ध्येय क्या है।

वो ही थोड़ा- बहुत सही दिशा में प्रयास करते हैं और बाकी सभी का जीवन सुख – दुःख आदि में ही बितता चला जाता है। सुख और दुःख धूप-छाया की तरह सदा इंसान के साथ रहते हैं, लंबी जिन्दगी में खट्ठे-मीठे पदार्थों के समान दोनों का स्वाद चखना होता है, सुख-दुःख के सह-अस्तित्व को आज तक कोई मिटा नहीं सका है।

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जीवन की प्रतिमा को सुन्दर और सुसज्जित बनाने में सुख और दुःख आभूषण के समान है, इस स्थिति में सुख से प्यार और दुःख से घृणा की मनोवृत्ति ही अनेक समस्याओं का कारण बनती है और इसी से जीवन उलझनभरा प्रतीत होता है, जरूरत है।

इनदोनों स्थितियों के बीच संतुलन स्थापित करने की, सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाने की, एक दुखी आदमी दूसरे दुखी आदमी की तलाश में रहता है उसके बाद ही वह खुश होता है, यही संकीर्ण दृष्टिकोण इंसान को वास्तविक सुख तक नहीं पहुंचने देता।

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अतः जबकि हमें अपने अनंत शक्तिमय और आनन्दमय स्वरूप को पहचानना चाहिए तथा आत्मविश्वास और उल्लास की ज्योति प्रज्ज्वलित करनी चाहिए, इसी से वास्तविक सुख का साक्षात्कार संभव है। इसलिये हमे जीवन में हर परिस्थिति में नकारात्मकता सें दूर रहकर, सकारात्मकता से जीवन जीने की कोशिश करनी चाहिये ।

प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़ )

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