आज हम एक ऐसे शख्स की कहानी बताने जा रहे हैं जो इस समय आईआरएस (IRS) है। लेकिन कभी उन्हें जमीन पर गिरे आटे से पेट भरना पड़ता था।
हम बात कर रहे हैं औरंगाबाद के सहायक आयकर आयुक्त के रूप में नियुक्त आईआरएस Vishnu Auti (विष्णु औटी ) की।
वह बताते हैं उनके बचपन में जब एक दिन वह रेत और पत्थर से खेल रहे थे तो उनके पिता हरिभाउ आये और उनके छोटे-छोटे कंधों पर हाथ रखकर उन्हें समझाया “यदि आप ठीक से पढ़ाई नहीं करेंगे तो आप भी मेरी तरह धूप में काम करेंगे, आप ऐसे इंसान बने जो छाँव में बैठता है मजदूरी नही करता है”।
अहमदनगर जिले के कुम्हारी गांव के एक कंस्ट्रक्शन साइट पर काम करने के दौरान हरिभाऊ ने अपने बेटे से यूं ही यह बात कह दी थी। उन्हें भी नही पता था कि यह बात Vishnu Auti के जिंदगी बदल देने वाला साबित होगा।
Vishnu Auti जब 10 साल के हुए तब उन्हें एहसास हुआ कि गरीबी, पानी की किल्लत और इस तरह की तमाम मुश्किलों से को हराया जा सकता है।
टीवी के जरिए उन्हें एक नए तरह की जिंदगी के बारे में पता चला। अब Vishnu Auti कुछ पढ़ लिख कर कुछ हासिल करना चाहते थे। घर की आर्थिक हालात खराब होने के चलते यह काम आसान नहीं था। लेकिन उन्होंने हर मुश्किलों का सामना किया और कामयाब हुये।
हिम्मत से किया हर मुश्किल का सामना : –
Vishnu Auti की जिंदगी में उस वक्त परेशानी बढ़ गई जब उनके पिता हरीभाऊ काम के दौरान अपनी आंखों की रोशनी खो दी।
उनकी मां कैलाशीबाई सुन नहीं सकती थी। वे अपने बच्चों की परवरिश करने के लिए दिहाड़ी मजदूरी करते थे और कई बार भूखे पेट पूरा दिन गुजार देते थे। इस सब का असर उनकी सेहत पर पड़ा और उम्र ढलने के साथ काम करना भी मुश्किल होता गया।
गांव की स्थिति भी बहुत अच्छी नहीं थी। गांव में न तो कोई स्कूल था नही सूखे की वजह से खेती करने का कोई साधन। जिसका सीधा असर Vishnu Auti के माता पिता पर पड़ा रहा था।
खेती न हो पाने से मजदूरी का काम भी नहीं मिल पाता था। विष्णु के पिता हरिभाऊ सूखे की वजह से अपनी पहली पत्नी और बच्चों को खोल दिए थे।
उसके कुछ महीने बाद उन्होंने Vishnu Auti की मां कैलाशाबाई से दोबारा शादी की जिससे उन्हें 3 बच्चे हुए। दोनों के विकलांग होने के चलते कोई उन्हें काम पर नहीं रखना चाहता था।
एक घटना के बारे में Vishnu Auti बताते हैं “हमारी मां आटे को काफी गिला करके रोटी बनाती थी और हम उसे नमक से खाते थे,मेरे माता-पिता हर सुबह काम की तलाश में घर से निकलते थे।
अगर दोपहर तक वो लोग खाना लेकर नही आते थे तो उनकी बड़ी बहन भूख से उनका ध्यान हटाने के लिए उन्हें कहानियां सुनाती थी।
इसे संघर्ष में पिता ने मुझे शिक्षा के महत्व के बारे में बताया और उनकी सीखने हमारे पूरे जीवन को बदल दिया।
भले ही विष्णु का जीवन कई कठिनाइयों से गुजरा था लेकिन Vishnu Auti के माता-पिता ने कभी भी आंसू नही बहाये न ही कभी किसी बात के लिए न किसी काम के लिए।
पढ़ाई के साथ घर की मदद भी की :-
Vishnu Auti को यकीन था उनकी जिंदगी बदलेगी। चौथी कक्षा में पढ़ाई करने के लिए उन्हें घर से 4 किलोमीटर दूर जाना पड़ता था।
विष्णु के प्रारंभिक शिक्षा मराठी में हुई। वह अपने स्कूल के दिनों को याद करते हुए बताते हैं “पास की एक चक्की मिल में फ़र्ज़ पर आटे गिरते थे।
तब उन्होंने उस आटे को जमा करना शुरू कर दिया जिससे घर में थोड़ी मदद कर सके। वह कहते हैं घर के पास एक छोटा सा चक्की मील था। वे स्कूल से लौटते वक्त मालिक से अनुरोध कर के मिल के फर्श पर पड़े आटे को जमा करके घर लाते थे।
कई बार उसमें धूल और फंगस भी रहते थे। लेकिन इससे उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता था। यह पहली बार था जब Vishnu Auti की वजह से उनके घर में थोड़ा बदलाव आया था। जिससे विष्णु ने यह महसूस किया कि वह और भी चीजों को सही कर सकते हैं।
धीरे-धीरे Vishnu Auti कई कार्य में ग्रामीण लोगों की मदद करने लगे। जैसे – गाँव वालों लोगों का सामान ढो देते थे तो उन्हें दो – तीन रुपए मिल जाते थे।
अपने जूनियर बच्चों को पढ़ाते थे। इतना सब करते हुए भी Vishnu Auti का ध्यान कभी भी पढ़ाई से नहीं भटका। वह अपनी कड़ी मेहनत के दम पर दसवीं की परीक्षा में 79 फीसदी अंक लाये। यहीं से उनकी जिंदगी का रुख बदल गया।
एक टीचर से आयकर अधिकारी बनने का सफर :-
शिक्षा के महत्व को जानते हुए और अपने क्षेत्र में शिक्षा की स्थिति को देखते हुए विष्णु ने D.Ed (डिप्लोमा इन एजुकेशन) किया और 1999 में एक शिक्षक के रूप में नौकरी पा गए।
हालांकि उन्हें स्कूल से 150 किलोमीटर दूर जाना पड़ता था। जहां पर उनकी पत्नी और उनके माता-पिता रहते थे। इसी दौरान उन्हें अपने अन्य साथियों से महाराष्ट्र लोक सेवा आयोग द्वारा आयोजित होने वाली परीक्षा के बारे में पता चला।
तब उन्होंने अपने ज्ञान के दायरे को बढ़ाया और इसमें अपनी किस्मत आजमाने का फैसला किया। वह अध्यापन के साथ-साथ बिना किसी कोचिंग के महाराष्ट्र लोकसेवा आयोग द्वारा आयोजित परीक्षाओं की तैयारी करने लगे।
इसी कड़ी में उन्होंने यशवंतराव चौहान महाराष्ट्र ओपन यूनिवर्सिटी से BA भी कर लिया। साल 2010 में विष्णु अपने पहले ही प्रयास में महाराष्ट्र लोकसेवा आयोग के परीक्षा में सफलता हासिल की और उनकी पहली पोस्टिंग जलगांव में हुई।
वहां पर उनकी नियुक्ति बिक्री कर विभाग में सहायक आयुक्त के रूप में हुई थी। Vishnu Auti बताते हैं जब महाराष्ट्र लोकसेवा आयोग का रिजल्ट आया तब उनकी आंखों में खुशी के आंसू थे। उस दिन पूरे परिवार और गांव वालों ने जश्न मनाया।
वह कहते हैं “मुझे याद है मैंने अपने बेटों को वही सलाह दी है जो मेरे पिता ने मुझे दिया था”। Vishnu Auti का सफर यहीं खत्म नहीं हुआ। वह राष्ट्रीय सेवा परीक्षा में सफलता हासिल करना चाहते थे।
तब उन्होंने 2013 में यूपीएससी (UPSC) की तैयारी शुरू की। उन्होंने कोई कोचिंग नही ली और तमाम व्यस्तता के बावजूद अपनी पढ़ाई जारी रखी। नतीजे से उन्हें डर नहीं था क्योंकि असफल होने की स्थिति में उनके पास एक नौकरी थी।
अथक प्रयास के बाद 2016 में उनके तीसरे प्रयास में उन्हें 1064 रैंक मिली। सबसे खास बात यह है कि इसी साल उनके बेटे ने दसवीं परीक्षा पास किया था।
शुरुआती प्रयास में असफल होने के बावजूद Vishnu Auti ने हार नहीं मानी बल्कि इसे सीखने की प्रक्रिया माना। इस दौरान की गई गलतियों को उन्होंने पहचाना और अपने तीसरे प्रयास में उन्हें मजबूत कर सफलता प्राप्त की ।
प्रेरणा : –
Vishnu Auti कहते हैं मै उन बाधाओं को पार किया जो सबसे कठिन थी। मेरे माता-पिता ने मुझे हमेशा प्रोत्साहित करने का काम किया। आज मै जो भी कुछ हूं, उनकी बदौलत हूं।
पिछले 4 वर्षों में विष्णु अपनी मेहनत, लगन और दृढ़ संकल्प के चलते कई जिम्मेदारियों को संभाल रहे हैं।
Vishnu Auti की कहानी हर युवाओं के लिए एक प्रेरणा स्रोत है जो अपने जीवन की तमाम कठिनाइयों का सामना कर रहे हैं। विष्णु की कहानी हमें चुनौती का सामना करने, कुछ हासिल करने और कुछ बनने के लिए प्रेरित करती है।