आज हम बात करने वाले हैं जयपुर रग्स की स्थापना करने वाले नंद किशोर चौधरी की, नंद किशोर चौधरी हाथ से बुने हुए कालीन के निर्माता है और इन्होंने जयपुर में अपने इस बिजनेस को जयपुर रग्स के नाम से स्थापित किया है।
इन्होंने अपने इस बिजनेस में कमजोर माने जाने वाली महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए कई बाधाओं को पार किया है ताकि वह महिलाएं बुनाई के कार्य से अच्छी कमाई कमा सके।
आज की कहानी की शुरुआत 3 साल पहले कमली के साथ होने वाली घटना से शुरू होती है जब कमली का पति तेजपाल सिंह उसे 4 बच्चों के साथ अकेला छोड़कर चला गया था फिर ना ही लौट कर आया और ना ही मुड़कर कभी देखा।
इस दौरान उसका पति घर में यह बोल कर गया था कि वह आजीविका की तलाश के लिए पंजाब जा रहा है परंतु इन 4 सालों में ना ही उसने घर पर कोई पैसे भेजे और ना ही घर वालों को कभी अपने पास बुलाया और ना ही कभी देखने आए।
दुर्भाग्यवश कमली की कहानी अकेली नहीं है ऐसी कई महिलाएं हैं, राजस्थान में महिलाओं की समस्याए अधिक है और यह महिलाएं खुद को हिंसा, उपेक्षा, पर्दा प्रथा, बाल विवाह, आदि कई प्राचीन प्रथाओं का शिकार खुद को पाती हैं।
महिलाओं को अपना अधीन करने में जाति सबसे अधिक पूर्ण भूमिका निभाती है, और यह ज्यादातर रायगढ़ और अन्य समुदाय सहित हशिया के समूह से संबंधित है। यह महिलाओं की जीवन की सच्चाई थी जिससे जयपुर रग्स के संस्थापक नंद किशोर भली भांति जानते थे।
यह है जयपुर रग्स के संस्थापक नंद किशोर
जयपुर रग्स के संस्थापक नंद किशोर बताते हैं कि जब मैंने जयपुर रग्स की स्थापना की तब मैंने अपने परिवार सहित कई लोगों के गुस्से को अपनी ओर आमंत्रित कर लिया था। नंद किशोर कहते हैं कि सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि मैं जिन बुनकारों के साथ कार्य करना चाहता था वह हमारे समाज में अछूत माने जाते थे।
किशोर बताते हैं कि यही समय था जब मैंने सबसे अधिक कठिनाई का सामना किया , कहते हैं कि मुझे मेरे घर पर जाने की भी अनुमति नहीं थी, इसके साथ ही साथ मेरे आस-पास के क्षेत्र में रहने वाले लोगों ने मुझे कॉलोनी से चल जाने के लिए कहा था।
किशोर बताते हैं कि लोग मुझसे हाथ तक नहीं मिलाते थे क्योंकि इनका मानना ऐसा था कि मैं अछूत लोगों के साथ कार्य करता था। किशोर बताते हैं कि उसी समय मुझे यह पता चला कि किसी व्यक्ति का व्यक्तित्व निर्धारण करने के लिए जाति कितनी अधिक महत्वपूर्ण है।
नंद किशोर चौधरी ने वर्ष 1978 में जयपुर रग्स की स्थापना की थी,जो हाथ से बुने हुए कालीनो को तैयार करता है और पूरे भारत में कालीन का सबसे बड़ा निर्यातक है। नंद किशोर ने महज 5000 रुपए में यह बिजनेस की शुरुआत की थी।
उन्होंने अपने पिता के पारंपरिक जूते के व्यवसाय को छोड़कर कालीन का बिजनेस शुरू करने का प्रयास किया और इस में लगने वाली रकम को उन्होंने अपने पिता से उधार लिया, और वह कहते हैं कि मैंने अपने सपने को साकार करने के लिए एक सरकारी बैंक में नौकरी भी की थी।
जयपुर रग्स की शुरुआती दौर में 9 कारीगरों के साथ बिजनेस का काम शुरू हुआ और किशोर नंद खुद भी बुनकारी का कार्य सीखने का प्रतिक्षण कारीगरों से लेने का प्रयास किया। जयपुर रग्स में बनाए गए कालीनओं का निर्यात भारतीय उद्याम के नाम से किया जाता था।
नंद किशोर ने महज 10 साल बाद अपने बिजनेस को अतिरिक्त बड़ा करने का प्रयास किया और जोधपुर, लक्ष्मणगढ़ और सुजानगढ़ कई कार्यक्रमों के साथ मिलकर कार्य किया।
यहीं से नंद किशोर ने अपने भाई के साथ मिलकर गुजरात के ग्रामीण कई कारीगरों के साथ 13 साल बिताएं। वह ग्रामीण इलाके में रहे और वहां रहने वाले व्यक्तियों की सारी परेशानियों एवं परिस्थितियों के साथ साझा किया।
किशोर कहते हैं कि वहां रहकर समुदाय के लोगों से घुलमिल गया था इस दौरान वहां के लोगों ने मुझे भाई साहब का नाम दे दिया था। नंद किशोर ने बिचौलियों को हटाने के लिए वलसाड में एक लघु व्यवसाय की स्थापना की,
और यही समय था जब एक ठेकेदार बंदूक लेकर मेरे पास आया और मुझे व्यापार को बंद करने के लिए कहा तब मुझे पता चल गया था कि मैं कुछ सही का कार्य कर रहा हूं।
यह समय था जब नंद किशोर की कंपनी भारत के कई ग्रामीण क्षेत्रों में बढ़ रही थी। इसके साथ ही साथ अब उनके कंपनी में उन कारीगरों की संख्या बढ कर 6000 से अधिक हो गई थी।
नंद किशोर कहते हैं कि यही समय था जब मेरे भाई ने इस व्यापार को छोड़ दिया तब मैंने इस व्यापार का नाम बदलकर जयपुर कारपेट कर दिया और यही समय था जब मैंने उत्तरी अमेरिका के साथ व्यापार करना शुरू किया।
यही वक्त था जब नंद किशोर कहते हैं कि मैंने ग्रामीण इलाकों में यह बिजनेस में तो काफी नाम कमाया परंतु जब वक्त व्यवसाय बिजनेस में उतरने का आया तब मुझे काफी कुछ सीखना बाकी था तब मैंने कई प्रतिशिक्षण लिए और वैश्विक व्यवसाय में कदम रखा।
इस प्रकार नंद किशोर बने कालीन व्यवसाय के गांधी
जब नंद किशोर चौधरी ने पहली बार अपनी कंपनी के लिए कारीगरों की भर्ती शुरू की तो, उन्हें कई प्रतिरोध का सामना करना पड़ा क्योंकि महिलाओं को कार्य करने की अनुमति नहीं थी। परंतु नंदकिशोर चौधरी ने कालीन उद्योग के विकास को इस प्रकार तैयार किया है कि उस में महिलाओं की महत्वपूर्ण भूमिका रही है।
आज नंदकिशोर द्वारा शुरू किया गया जयपुर कारपेट बिजनेस ना केवल भारत में बल्कि अन्य कई देशों में इनके कारपेट निर्यात होते हैं। और इनकी बिजनेस की महत्वपूर्ण भूमिका महिलाओं ने निभाई है क्योंकि अधिक बुनकर महिलाएं ही हैं।
नंदकिशोर कहते हैं कि एक वक्त था जब कारपेट बिजनेस को काफी बुरा माना जाता था, परंतु हमने ग्रामीण की सारी सोचो को एक साथ मिलाकर रखा और ठेकेदारों को पैसे ना दे कर सीधा बुनकरों को उनकी जमा पूंजी देने का निश्चय किया और आज भी यही कारण है कि हमारा यह कारपेट का बिजनेस इतने बड़े मुकाम तक पहुंच गया है।
नंदकिशोर द्वारा स्थापित किया गया कारपेट बिजनेस ना केवल उनके लिए लाभकारी हुआ अनेक अछूत महिलाएं जो कार्य करने के लिए अछूत मानी जाती थी नंदकिशोर ने उन्हें कार्य देखकर यह साबित कर दिया है कि महिलाएं अछूत नहीं है उन्हें भी कार्य करने का हक है और वह इस बुनाई के कार्य को कर कर अपनी आर्थिक स्थिति को मजबूत कर रही है।
नंदकिशोर चौधरी आज कारपेट बिजनेस में इतना अधिक नाम कमा लिया है कि उन्हें कारपेट बिजनेस का गांधी कहा जाता है। जानकारी के लिए आप सभी को बता दें कि जब नंद किशोर जी से यह पूछा गया कि उन्हें इस मुकाम पर पहुंचने के बाद कैसा लगता है तो उन्होंने बताया कि मेरे लिए गांधी का मतलब है सादगी।
आज नंदकिशोर ने अपने बिजनेस के द्वारा नाम तो कमाया ही है इसके साथ ही साथ अछूत महिलाओं के लिए जो रोजगार का तरीका खोज लिया है यह महिलाओं को उनकी आर्थिक स्थिति और आत्मबल एकत्रित करने में काफी मददगार है।
लेखिका : अमरजीत कौर
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