हम इस बात ग़ुरूर करते हैं कि हम इतने वर्ष के हो गए पर हम यह भूल जाते हैं कि इनमें से आधे तो रातों को सोने में ही खो गए। शेष जो बच जाते हैं उसमें से घटा दीजिए जो बचपन और बुढ़ापे में गए। तदुपरांत कुछ योग-वियोग, तनाव, चिंताओं आदि में खो गए।
शेष जो रहते हैं, उनमें भी हम कहाँ शांति से जी पाते हैं। कुछ अकस्मात आई विपदाओं आदि में खो जाते हैं। वर्तमान में जीने वाला सदा सुखी रहता है | जिस क्षण उसे मरना है, या वह मर जाएगा लेकिन वह आज क्यों मरूं ?
यह जीने की सही से कला सीख जाए। अपमान, शोक, वियोग, हानि, असफलता आदि – आदि तमाम स्थितियां आती रहती हैं और जाती भी रहती है पर वास्तविकता में सही मायनों में जीना तभी हीं सार्थक है जब जीवन को कलात्मकता से जीया जाए।
कठिन से कठिन विकट स्थिति में विवेक पूर्वक और धैर्यपूर्वक निर्णय ले। छोड़ने लायक बात को जीवन में छोड़े, जानने लायक बात को जाने एवं ग्रहण करने वाली बात को ग्रहण करें (आत्मसात करें) ।
अतः अहं से बाहर निकलकर “में” “में” की जगह,” हम” और ज्यादा से ज्यादा “आप” शब्द का प्रयोग करते हुए, सदा विनम्रता, सरलता आदि को आत्मसात करते हुए, होठों पर सदा मुस्कान रखते हुए, किसी के जालसाजी, बहकावें में आने से बचाव करते हुए, किसी के प्रति घृणा करने से बचते हुए, हम ज्ञानार्जन करते हुए ज्ञान को अर्जित करते हुए, सभी के प्रति अपनी सच्ची ( रिश्ते , समाज , घर , आदि ) वफादारी निभाते हुए, सभी के प्रति सचेत रहतें हुए हँसी-खुशी अपनी जिंदगानी जीते रहें। अतः जीवन की वास्तविकता को हम समझें और व्यवहारिक बनें।
प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़ )
यह भी पढ़ें :-