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उड़ीसा का यह नौजवान चावल की बेकार भूसी को Export कर के लाखों की कमाई कर रहा है

उड़ीसा का यह नवजवान चावल की बेकार भूसी को Export कर के लाखों की कमाई कर रहा है
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हर किसी की जिंदगी में चुनौतियां होती हैं। लेकिन इन्हीं चुनौतियों में अक्सर ही अवसर भी छुपे होते है। यह बात Bibhu Prasad Sahu पर बिल्कुल फिट बैठती है। विभु मूल रूप से उड़ीसा के कालाहांडी के रहने वाले हैं। पहले वह एक शिक्षक थे।

लेकिन 2007 में उन्होंने शिक्षक की नौकरी छोड़कर धान का व्यवसाय करना शुरू कर दिया फिर कुछ साल बाद उन्होंने 2014 में चावल मिल का व्यवसाय शुरू किया और 2 साल तक इस में काम किया।

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Rice Mill  से काफी ज्यादा मात्रा में भूसी निकलती है। ज्यादातर मिल वाले इसे जला देते हैं। हालांकि इससे पर्यावरण को बहुत ज्यादा नुकसान होता है। साथ ही मानव स्वास्थ्य पर भी इसका प्रतिकूल प्रभाव देखने को मिलता है।

इन समस्याओं से निपटने के लिए विभु विभिन्न स्टील कंपनियों को Rice Husk  का निर्यात करना शुरू कर दिया। आज इसी से उन्हें 2019 में 20 लाख की कमाई हुई थी।।

जैसा कि हम जानते हैं कि कालाहांडी उड़ीसा के क्षेत्र में चावल का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक क्षेत्र है। हर साल इस क्षेत्र में लगभग 50 लाख क्विंटल की धान की खेती की जाती है।

यहां पर आपको कई सारी पैरा ब्लोइंग कंपनियां भी देखने को मिल जाएंगी जो कि चावल का ट्रीटमेंट करती हैं। इससे बड़े पैमाने पर Rice Husk का उत्पादन भी होता है। Bibhu Prasad Sahu के चावल मिल से भी हर दिन करीब 3 टन की भूसी निकलती है।

आमतौर पर लोग इस Rice Husk को खुली जगह में फेंक देते हैं। हवा चलने से यह आसपास के क्षेत्रों में फैल जाती है जिससे लोगो को सांस लेने में समस्या होती है और आंखों से जुड़ी समस्याएं भी होती हैं।

मील क्षेत्र के मोहल्ले के लोग Bibhu Prasad Sahu से शिकायत करते थे, कि इससे स्वास्थ्य से जुड़ी परेशानी हो रही है। इसका कुछ निपटारा करो। बता दें कि बिभू Haripriya Agro Industries ( हरिप्रिया एग्रो इंडस्ट्रीज ) के मालिक हैं।

इस तरह चावल की भूसी को उपयोगी बनाया

( How He Make Rice Husk Useful ) : –

बिभू कहते हैं कि आसपास के लोगों के शिकायतों की वजह से वह Rice Husk को पैक कर के गोदाम में रखने लगे। लेकिन मील से इतना ज्यादा भूसी का उत्पादन होता था कि जल्दी उनके पास जगह की कमी हो गई।

तब उन्होंने इस पर थोड़ा रिसर्च करना शुरू किया। रिसर्च के दौरान उन्हें पता चला कि चावल की भूसी का इस्तेमाल स्टील उद्योग में एक थर्मल इंसुलेटर के रूप में हो सकता है क्योंकि इसमें 85% सिलिका होती है।

यह स्टील रिफ्रैक्टर में इस्तेमाल करने के लिए एक अच्छा विकल्प है। क्योंकि जब बॉयलर में चावल की भूसी का इस्तेमाल किया जाता है तो अधिक तापमान की वजह से प्रदूषण बेहद कम हो जाता है।

rice husk
rice husk

अपनी रिसर्च के दौरान बिभू ने एक स्टील कंपनी का दौरा भी किया और अपने सैंपल के साथ उनके सामने प्रस्ताव भी रखा और बताया कि जब कंपनी को प्रक्रिया के बारे में बताया तो उसने उस में अपनी रुचि दिखाई और चावल की भूसी को पाउडर के रूप में उपलब्ध कराने को कहा।

तब उन्होंने कहा कि यह कठिन काम है क्योंकि पाउडर हवा में तेजी से उड़ सकता है। काफी विचार विमर्श करने के बाद बिभू ने Rice Husk को गोली (पैलेट) के रूप में बदलकर निर्यात करने का फैसला किया।

हालांकि यह उनके सामने एक चुनौती के रूप में थी क्योंकि उन्हें नहीं पता था की गोली कैसे बनाएं। तब उन्होंने महाराष्ट्र, गुजरात, पश्चिम बंगाल, जैसे कई राज्यों के विशेषज्ञों को बुलाया और सुझाव मांगा। लेकिन बात बन नही पाई।

गोली बनाने की प्रक्रिया को समझने के लिए उन्होंने पोल्ट्री फॉर्म से संपर्क किया, लेकिन यहां पर भी काम नही बन पाया। फिर अगले कुछ महीनों तक उन्होंने अपने सारे संसाधनों को सिर्फ रिसर्च मे लगा दिया।

 एक साल में 20 लाख कमाया ( Earned 20 Lakhs In A Year ):-

विभु बताते हैं कि उनको लगा उनका का विचार प्रैक्टिकल नही है और वहां हार मान लेने वाले थे। लेकिन ठीक उसी समय उनके स्टाफ ने समाधान के लिए कुछ और समय मांगा और वह अपने गांव जाकर अपने साथ चार और लोगों को ले आया।

फिर उन्होंने कुछ प्रयोग किया और उसमें सफल हो गए। वह बताते हैं कि पहले गोली को सही आकार बनाने में उन्हें कुछ हफ्तों का समय लग गया।

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फिर बिभू ने फ्रांस, इटली, जर्मनी, दक्षिण कोरिया, ऑस्ट्रेलिया, ताइवान, यूनाइटेड किंग्डम की कंपनियों को ईमेल कर अपने पैलेट के बारे में बताया। उन्होंने अपने चावल की भूसी की पहली खेप 2019 में सऊदी अरब को निर्यात की थी।

कंपनी को उनका उत्पाद काफी अच्छा लगा क्योंकि पैलेट को काफी अच्छे से जलाया गया था, साथ ही यह काफी किफायती और उच्च गुणवत्ता वाली थी।

साल 2019 में पैलेट बेचकर बिभू को लगभग 20 लाख की कमाई हुई। इस तरह से विभु ने भूसी को “काले सोने” में बदल दिया था। वो कहते हैं कि कोरोना वायरस महामारी के दौरान उन्हें काफी नुकसान हुआ।

साल 2020 में जून और दिसंबर के महीने में ही वह निर्यात कर सके। हालांकि इससे उभरते हुए उम्मीद जता रहे हैं कि साल 2021 में उनका कारोबार बेहतर हो जाएगा।

प्रेरणा ( Inspiration From The Story ): –

इस कहानी से हमें यह प्रेरणा मिलती है कि अगर हमारे सामने कोई चुनौती आ रही है तो हमें उससे लड़कर उसका कोई न कोई समाधान निकालने की कोशिश करते रहना चाहिए। कोशिश करने से सफलता जरूर मिलती है और रास्ते धीरे-धीरे बनते चले जाते हैं।

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