बुद्धि आत्मा का दीपक है और अन्तर के सद्गुणों की सर्चलाईट रूपी सदबुद्धि है । गन्ने की गांठ में रस नहीं होता और आदमी के मन में गांठ हो तो मन पर वश नहीं होता। दिमाग की ग्रंथी मिटाने के लिए बुद्धि चाहिए और मन की ग्रंथी मिटाने के लिए बुद्धि से चिन्तन कर शुद्धि चाहिए ।
सफर जिंदगी का कभी हवा के रुख के साथ चलना ! कभी प्रतिस्रोत में बहना ! है ज़िन्दगी ! समय जैसा आता , विवेक से अपना निर्णय लेना , हैं बुद्धिमत्ता ! कभी उगता सूर्य होता ,कभी ढलती शाम ! नज़ारा एक जैसे लगता पर यथार्थ का आंकलन स्वयं को करना होता है ।
सतर्कता और बुद्धिमता सफलताके लिए जरूरी है। बुद्धि से सिंहावलोकन के बिना भी बात कुछ-कुछ अधूरी है। यह गणित पहले भी था,आज भी है और कल भी रहेगा सच मानिए ये सभी बातें विकास के पहिए की धूरी है।सोच-समझ कर , संभल-संभल कर बुद्धि से बढ़ायें कदम ,सतर्कता से ही हमारा जीवन सार्थक होता है ।
अभिज्ञान काम का तभी जब वो सही से जागरुकता का वरण करे क्योंकि सही बुद्धि ही ग़लत दिशा में उठे चरण रोक सकती हैं । बुद्धि से ज्ञान का घमंड सबसे बड़ी अज्ञानता है ,क्योंकि हर पल नए- नए अविष्कार होते रहते हैं और यह जरूरी नहीं है कि हमें सब का ज्ञान हो इसलिए जीवन में नित नई चीज सीखते ही रहना चाहिए।
कहते हैं ज्ञान बांटने से और बढ़ता है इसलिए बुद्धि का घमंड ना करके ज्ञान बांटते रहना चाहिए। इसलिये अभीष्ट है हर मानव इस असीम बुद्धि के ज्ञान भण्डार का अधिकाधिक उपयोग ही नहीं सदुपयोग करे , न केवल स्वयं के लिए अपितु मानवता समग्र के कल्याण में योगभूत बने।
प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़ )
यह भी पढ़ें :-
बहुत ही प्रभावशाली और शानदार काव्य लेख प्रस्तुति बहुत बेहतरीन तथा प्रेरणादायक कविता।