इसमें मेरा चिन्तन यह हैं कि जिन्दगी को पेचीदा ( Complicated ) किसने बनाया है ? इसके जिम्मेदार कौन हैं ? आदि – आदि इसका उतर होगा हम स्वयं क्योंकि हमने देखा – देखी में वह और में आदि अपनी जो मूल सभ्यता ,संस्कार, आचरण आदि है उसको दूर – दूर तक छोड़ दिया है।
इसका परिणाम जो ऊर्जा जीवन के सार्थक निर्माण में लगनी चाहिए वह यों तथाकथित आधुनिकता में खो रही है । हर बात में टेंनशन और अलग से हो रही है। जब से हमने समझ पकड़ी, अपनी गृहस्थी बसायी और बढ़ाया अपना परिवार उसी समय से इंसान की जिम्मेवारि इतनी बढ़ जाती है कि वो चाह कर भी अपने लिये कुछ समय अपने मन मुताबिक़ बीता नहीं सकता हैं।
एक सदी पहले हमारी आय कम थी , परिवार बड़ा होता था पर फिर भी परिवार में ख़ुशहाली रहती थी इसका कारण जीवन में संतोष था। ज्यों-ज्यों समय बीतता गया,शिक्षा का पैमाना बढ़ता गया।
शिक्षा बढ़ी तो लोगों की आय बढ़ी। नये-नये अविष्कार होने लगे।जिस चंद्रमा को हम धरती से देखते थे और कल्पना भी नहीं की थी कि इंसान एक दिन चंद्रमा पर पहुँच जायेगा।
नित्य नये अविष्कार और शिक्षा ने आय के कई आयाम खोल दिये। इंसान ने आर्थिक विकास तो बहुत किया और कर रहा है और आगे करेगा ही पर अपने बचपन वाले ख़ुशियों के दिन के लिये तरस रहा है।
आज संसार में कुछ व्यक्ति तो ऐसे हैं कि हम्हें उनकी सम्पत्ति को बिलियन आदि में बोलना पड़ता है। उनके जीवन का एक-एक मिनिट उसकी दिनचर्या में बंटा होता है। वो अपने हिसाब से एक मिनिट भी व्यतीत नहीं कर सकता हैं ।
आज के इंसान की इतनी जटिल जीवनशैली बनायी किसने ? उतर इंसान स्वयं ने। जब हमने ही इतनी जटिल जीवनशैली बना ली तो दोष किसे दें ?
तब हम्हें अपने बचपन के वो दिन याद आते हैं कि वो भी क्या दिन थे। ना कमाने की चिंता थी और ना कोई ज़िम्मेवारि। पर हमने जो अपनी लाइफ़ पेचीदा बना ली उसको सरल तभी बना सकते हैं जब मन में हो संतोष ।
प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़ )
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