मानव का सबसे बड़ा शत्रु कौन ? इसका मेरे चिन्तन से उतर होगा की मैं मानव का सबसे बड़ा शत्रु हैं, जब हम इस दुनिया में आते है तो हमको स्नान कौन करवाता हैं ?
जब हम इस दुनिया से जाते है तो हमारे शरीर को शमशान तक कौन ले जाता हैं ? इसका एक ही उतर होगा कोई दूसरा व्यक्ति तो सोचने वाली बात यह हैं कि जब हम आते है , जाते है आदि तो सब कुछ ही औरों ही औरों पर निर्भर है तो अहं जीवन किस बात का करे।
अहंकार का कारण है अपने असली स्वरूप अर्थात “मैं” को न समझना, जैसे ही हम “मै”को उसके असली रूप में देख लेते हैं, हमारा अहंकार विल्कुल वैसे ही अदृश्य हो जायेगा, जैसे दीपक के जलने से अंधकार का कोई अता-पता नहीं रहता।
अतः हम सहनशीलता को बढ़ाते हुवें, संयमित जीवन यापन करतें हुवें, विवेक की सवारी करतें हुवें, अपनें अहंकार के पूरे परिवार को परास्त करें। घमंड’ और ‘पेट जब ये दोनों बढ़ते हैं तब ‘इन्सान’ चाह कर भी किसी को अपने गले नहीं लगा सकता हैं ।
जिस प्रकार नींबू के रस की एक बूंद हजारों लीटर दूध को बर्बाद कर देती है उसी प्रकार ‘मनुष्य’ का ‘अहंकार भी अच्छे से अच्छे संबंधों को बर्बाद कर देता है अतः अक्सर ऊँचायों को छूने पर इंसान अपनी वास्तविक पहचान भूल जाते हैं और जिस दिन अहंकार हावी होता है तब सिवाए पतन के और कुछ हासिल नहीं होता। तभी तो कहते है कि यह अहं किस बात पर।
प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़ )
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