ADVERTISEMENT

दो हिस्सों में जिंदगी : Do Hisson mein Zindagi

Do Hisson mein Zindagi
ADVERTISEMENT

प्रायः प्रायः हर मानव की चाह होती है कि चिट भी मेरी हो पट भी मेरी हो । जो सम्भव कम होती है। कभी कहते है कि अभी उम्र ही क्या हुई है तुम्हारी और कभी कहते है कि अभी उम्र नहीं रही आख़िर मानव करे तो क्या करे।

इस सन्दर्भ में मेरा यही चिन्तन यही चिन्तन है कि व्यक्ति नहीं उसका व्यक्तित्व सुन्दर होना चाहिये । प्रातःकाल उठते ही कर्मपथ पर जाते समय दृढ़ निश्चय। अधिक-अधिक से रहना प्रसन्नचित्त।

ADVERTISEMENT

सभी से मित्रतापूर्ण एवं मधुर व्यवहार।दूसरों के कार्यों दोषों-ग़लतियों-असफलताओं की अपेक्षाकृत अधिक सहिष्णुता-सकारात्मक सोच एवं रचनात्मक रवैया। अपने कार्य व व्यवहार में ऐसा आभास की किसी भी कार्य में सफलता निश्चित।

किसी भी विपरीत परिस्थिति में भी शांत एवं बुद्धि-चातुर्यता भरा व्यवहार।दूसरों के प्रति सद्दव्यवहसर-नम्रता-सद्भावना। मानवता एवं दिव्य दिवाकर की शक्ती में पूर्ण विश्वास।

ADVERTISEMENT

अध्यात्म निष्ठा-आगम निष्ठा-गण निष्ठा-गुरु निष्ठा से हर मन का संताप मिटाना। मुक्ति द्वार के चार –सम्यक् ज्ञान-सम्यक् दर्शन-सम्यक् चारित्र-सम्यक् तप के समकित अभ्यास से संयम जीवन जीना। अपनी दक्षता एवं अर्हता से सभी का दिल जीतना।

जैसे जैसे व्यक्तित्व भी समय के साथ बदलता रहता हैं। अपने विचार ,शरीर की शक्ती,ऊर्जा में उतार-चढ़ाव यहाँ तक की ग्रहों के प्रभाव व कर्म भाग्य आदि भी बदलते हैं ।

व्यक्ति की बुद्धी ,कल्पना शक्ती , चिंता,उत्साह,समाजिक व्यवहार, सृजनशीलता ,प्रशासनिक क्षमता ,शारीरिक क्षमता आदि सभी लक्षण उसमें समाहित हो जाते हैं।

इसके सार में यही समझ में आया की महत्वपूर्ण एक मात्र व्यक्ति बनकर जीना नहीं है अपितु महत्वपूर्ण है एक व्यक्तित्व बनकर जीना जहाँ यह सब सुनना नहीं पड़े ।

प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़ )

यह भी पढ़ें :-

यात्रा हमारी सोच की : Yatra Hamari Soch ki

ADVERTISEMENT

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *