जानकारी के लिए आप सभी को बता दें कि जालौन के रहने वाले अजीत प्रताप खुद का Seed processing plant लगाकर खुद मटर के बीजों की ग्रेडिंग करते हैं, अर्थात वह ग्रेडिंग एवं प्रोसेस किये हुए मटर के बीजों को देश के अलग-अलग राज्यों के साथ-साथ नेपाल , बांग्लादेश यूरोप जैसे कई देशों में निर्यात करते हैं।
जैसे की हम सभी जानते हैं कि एक व्यक्ति जो अच्छी पढ़ाई लिखाई करने के बाद अच्छी नौकरी का सपना देखता है इसी प्रकार हुआ महेवा ब्लाक में सरसई गांव के रहने वाले अजीत प्रताप को हासिल हुआ था ।
जानकारी के लिए आप सभी को बता दें कि अजीत प्रताप IIM इंदौर से अपने एमबीए की पढ़ाई पूरी करने के बाद जर्मनी के एक प्रतिष्ठित कंपनी में उनकी नौकरी लग गई , उन्होंने जर्मनी की इस प्रतिष्ठित कंपनी में बिजनेस हेड के पद पर कार्यरत होकर अपने करियर की शुरुआत की परंतु कुछ समय बाद ही इन्होंने अपनी नौकरी छोड़कर भारत आने का निश्चय कर लिया ।
बैज्ञानिक विधि से शुरू की खेती
अजीत बताते हैं कि जब उन्होंने जर्मनी में नौकरी करने के बाद वर्ष 2017 जब वह गांव वापस लौट कर आए तो उन्होंने देखा कि गांव की जमीन पथरीली और बंजर थी और यहां पर केवल थोड़ी बहुत अलसी की खेती की जाती थी ।
हालांकि मैंने वैज्ञानिक विधि से बंजर जमीन में मटर की खेती करनी शुरू की थी ।, उन्होंने बताया कि वह 25 एकड़ भूमि में मटर की खेती करते हैं और साथ ही साथ उनके पास दो प्रोडक्शन सीड यूनिट भी है , जिसके सहारे व मटर के बीजों की ग्रेडिंग करते हैं और उनका सालाना टर्नओवर 5 करोड़ है ।
15 हजार की लागत लगाकर की थी शुरुआत
अजीत प्रताप बताते हैं कि 1 एकड़ की मटर की खेती करने में महज 15 हजार की लागत लगती है , अर्थात 1 एकड़ की भूमि में 80 हजार का शुद्ध मुनाफा आसानी से कमाया जा सकता है।
जानकारी के लिए आप सभी को बता दें कि जालौन को मटर की खेती का गढ़ माना जाता है क्योंकि यहां हजारों किसान कई हेक्टेयर भूमि पर मटर की खेती करते हैं , अत्यधिक मटर की खेती अक्टूबर के महीने में की जाती है।
अजीत प्रताप ने अपनी जर्मनी की नौकरी छोड़कर गांव वापस लौटकर मटर की खेती कर एवं मटर के बीजों का उत्पादन करके काफी अधिक मुनाफा कमा रहे हैं ।
साथ ही साथ अजीत प्रताप सिंह किसानों को उत्तम मटर की प्रजाति लगाने की शिक्षा भी देते हैं और बताते हैं कि मटर के बीजों का उत्पादन किस प्रकार किया जाता है एवं इसका उपयोग कैसे किया जाता है अर्थात अपने खेतों में कई गांववासियों को रोजगार भी प्राप्त कर रहे हैं ।
अजीत प्रताप का कहना है कि भले ही अच्छे पढ़े लिखे हैं और जर्मनी में कार्य करके लौट चुके हैं परंतु उनका ऐसा मानना है कि जितनी कमाई वह अपनी जर्मनी की नौकरी से कमा लेते थे उतनी ही आज वह खेती करके भी कमा लेते हैं परंतु फर्क इतना है कि आज वह सुकून से अपनी मेहनत के बल पर पैसे कमा रहे हैं और नाम भी कमा रहे हैं साथ ही साथ अपनी फसल को देश के अन्य क्षेत्रों एवं राज्यों में निर्यात कर रहे हैं ।