आइए जानते हैं महाराष्ट्र में आने वाली बाढ़ में 300 से अधिक लोगों की जान बचाने वाले 25 वर्ष के युवा हीरो स

Harsh Gawali ki prernadayak kahani

हर्ष गवली पुणे के रहने वाले हैं और पेशे से एक आईटीआई कर्मचारी है, और इसके साथ ही साथ प्राकृतिक आपदाओं के दौरान एक प्रशिक्षित बचाव ऑपरेटर भी है। उन्होंने महाराष्ट्र में वर्ष 2021 मैं आने वाली बाढ़ में अपने बचाव मिशन को सभी के साथ साझा किया था।

हर्ष गवली 30 जुलाई की विनाशकारी रात को पूरी तरह टूट गए जब उन्हें एक मां को सुरक्षित रूप से महाराष्ट्र के चिपलून अस्पताल से भेज दिया था, और उस महिला ने एक बच्चे को अभी-अभी जन्म दिया था बिजली की कटौती और बारिश  के कारण अस्पताल से उस महिला को  हर्ष को उसे उठाकर 200 किलोमीटर गहरे पानी से लेकर जाना पड़ा।

हालांकि हर्ष ने समर्थ दिखाकर उस महिला की तो जान बचा ली परंतु उसके नवजात शिशु को बचाने में असमर्थ रहा और इस वजह से वह काफी असहाय महसूस कर रहा था।

इस दुर्घटना ने हर्ष को पूरी तरह से झकझोर कर रख दिया परंतु इसके साथ ही साथ प्राकृतिक आपदाओं में लोगों के बचाव के लिए उनके जुनून को और अधिक मजबूत बना दिया।

जानकारी के लिए आप सभी को बता दें कि हर्ष महाराष्ट्र सिविल फोर्स का एक कैडेट है, हर्ष बचपन से ही भारतीय सेना में शामिल होने का सपना रखता था, इसलिए 25 वर्ष हर्ष ने प्राकृतिक आपदा से लोगों की जान बचाने के लिए वर्ष 2019 में स्वयंसेवक के रूप में बचाओ अभियान मिशन मैं शामिल हुए थे।

हर्ष एक आईटीआई कंपनी में कार्य करते हैं और जरूरत पड़ने पर हमेशा प्राकृतिक आपदा के समय लोगों की मदद करने के लिए तैयार रहते हैं, हाल में वह महाराष्ट्र के दो प्रमुख प्रलय का हिस्सा रहे हैं, उन्होंने दो ऑपरेशन में अपनी टास्क फोर्स का नेतृत्व किया और लगभग 300 से अधिक लोगों की जान बचाई थी।

खबरों से पता चला है कि हर्ष प्राकृतिक आपदा के स्वयंसेवक तो है ही इसके साथ ही साथ में एक पहलवान और एक मॉडल भी है। हर्ष का कहना है कि सुख सुविधाओं को छोड़कर कठिन मार्ग पर स्वयं सेवक के रूप में कार्य करना यह मेरा सपना है लोगों की जान बचाने से बढ़कर सुख क्या है मैं एक इंसान हूं और दूसरे इंसान की मदद करना ही मेरा धर्म है।

इस प्रकार करते हैं हम तैयारी

स्वयंसेवक के रूप में बचाव का कार्य हर्ष के लिए बचपन से पुणे के छावनी क्षेत्र में जानवरों के साथ अपने बड़े होने के साथ शुरू हुआ था। हर्ष कहते हैं कि मैं कई आवारा कुत्ते बिल्ली और सांप की देखभाल करता था।

और यही कारण है कि इस स्थिति ने मुझे गंभीर लोगों की मदद करने के लिए काफी गंभीर कर दिया और यही कारण था कि मैंने स्वयंसेवक के रूप में प्राकृतिक आपदा से बचाव के लिए गंभीर होकर सोचा और इसमें शामिल हो गया।

इसके अलावा हर्ष बताते हैं कि वह एक सैनिक श्रेणी के पास पले बढ़े हैं और सैनिक हमेशा फिट और अट्रैक्टिव रहते थे। इसके साथ ही साथ उन्होंने मुझे स्वस्थ और हमेशा फिट रहने के लिए प्रेरित किया और बचाव अभियान में शामिल होने के लिए यह मातदंड काफी आवश्यक है।

हर्ष कहते हैं कि नागरिक बल से लगभग उन्होंने 2 महीने का प्रशिक्षण लिया, यह एक गैर सरकारी संगठन था जो अक्सर राष्ट्रीय आपदा के समय सरकारी संगठनों एनडीआरएफ के साथ मिलकर कार्य करता था।

हर्ष बताते हैं कि शुरुआत में थोड़ी बहुत परेशानी हुई परंतु मेरे जुनून ने मुझे सब कुछ आसानी से सिखा दिया हर्ष कहते हैं कि मैंने यहां पर बचाओ तकनीक, सीपीआर, प्राथमिक उपचार करना ,बिजली के अभाव से उपकरणों की व्यवस्था करना, लोगों को डूबने से बचाने से लेकर मलबे से निकलने के सभी तरीके उन्होंने 2 महीने के प्रति प्रतिशिक्षण में सीखें।

हर्ष बताते हैं कि प्रशिक्षण में मानसिक और शारीरिक दोनों रूप से स्वस्थ रहना काफी आवश्यक है। वह बताते हैं कि जब भी प्राकृतिक आपदा आती है तो अंतिम में महत्वपूर्ण निर्णय लेना सबसे आवश्यक है क्योंकि जब भी हम किसी भी आपदा में लोगों की जान बचाने के लिए जाते हैं तो हम खुद की जान को जोखिम में डालते हैं और सबसे महत्वपूर्ण नागरिकों की जान बचाना उसके बाद खुद को जोखिम से बचाना होता है।

हर्ष कहते हैं कि कोल्हापुर में आने वाली प्राकृतिक आपदा में जब हमने कई नागरिकों की जान बचाई तब कुछ नागरिक अपने घर वापस भाग रहे थे अपनी जरूरी दस्तावेजों को बचाने के लिए, लोग अपने डूबते सामानों को देखकर काफी असहाय महसूस कर रहे थे परंतु यह प्राकृतिक आपदा से कुछ भी नहीं किया जा सकता था।

वह कहते हैं कि जब प्राकृतिक आपदा के दौरान लोगों में दहशत फैल जाती है तो लोगों को शांत करना काफी कठिन होता है तब इस दौरान हमें उनके साथ बातचीत करके सारी कठिनाइयों को शांत करना पड़ता है।

हर्ष बताते हैं कि हम लोगों की मदद तो करते ही हैं उन्हें प्राकृतिक आपदा से बचाते तो ही है इसके साथ ही साथ त्वचा रोग के बचाव के लिए हमें जूते पहनने की सलाह दी जाती। सबसे अधिक कठिन कार्य यह है कि हमारे पास जानने का कोई तरीका नहीं होता है कि पानी के नीचे क्या है और हम किस चीज पर पैर रखने वाले हैं।

चिपलून बाढ़ आपदा के दौरान हर्ष और उनकी टीम का सामना एक मगरमच्छ के साथ हुआ था जब वह एक मां और उसके तीन बच्चों को बचाने में लगे हुए थे तब अपनी छत से मगरमच्छ को देखकर एक नागरिक ने हमें सतर्क किया घतक जानवरों से निपटने हर्ष ने नागरिकों को बचाने के बाद खुद को बचाया था।

हर्ष कहते हैं कि बचाओ टीम के साथ कार्य करना काफी कठिन है क्योंकि घंटों तक पैर पानी में रहते हैं और पैर पूरी तरह से सुन हो जाते इस दौरान यह पता नहीं चलता है कि आस पास कोई मगरमच्छ या फिर कोई और जानवर है या आगे वाले व्यक्ति पर निर्भर करता है वह कहता है आगे तो हम आगे की ओर बढ़ते हैं।

हर्ष कहते हैं कि कोल्हापुर की बाढ़ के समय हमारी टीम का एक साथी पानी में कांच की बोतल पर पैर रखने के कारण काफी असहाय रूप से गंभीर हो गया था और उसे तुरंत ही अस्पताल पहुंचाना पड़ गया था।

हर्ष का कहना है कि ऐसी स्थितियों में मानसिक स्थिरता को बनाना काफी आवश्यक है, हर्ष कहते हैं हम लोगों की बचाओ के दौरान लोगों के सब और जानवरों के शव को पानी में जब तरते हुए देखते हैं तो यह हमारे लिए काफी दुखद दृश्य होता है।

हर्ष कहते हैं कि बाढ़ में एक दृश्य ऐसा होता है कि जब कार और बड़ी-बड़ी मशीनें तैरती हुई नजर आती है और लोगों के रोते हुए चेहरे देख कर मन में ऐसा देश बन जाता है जिससे कोई भी आम व्यक्ति सदमे में जा सकता है।

हर्ष बताते हैं कि भले ही कितने भी खराब परिस्थिति आ रहे परंतु मानवता को बनाते हुए हमने हमेशा ही सारी स्थितियों को विनम्रता रूप से संभालने का प्रयास किया है, सबसे अधिक महत्वपूर्ण यह है कि हम मानवता को सर्वश्रेष्ठ रूप से देखें और सब मिलकर एक दूसरे की सहायता करें

हर्ष के इस जज्बे को सलाम करते हैं और देश में जितने भी प्राकृतिक आपदा के स्वयंसेवक है सब आज हमारे लिए एक प्रेरणा के तौर पर नजर आ रहे हैं।

लेखिका : अमरजीत कौर

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