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Lah ki kheti

10 डेसिमल खेत में शुरू की लाह की खेती, आज काम आ रहे हैं 70 से 80 लाख का मुनाफा

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आज हम बात करने वाले हैं देवेंद्रनाथ ठाकुर के बारे में, जानकारी के लिए आप सभी को बता दें कि देवेंद्रनाथ मूल रूप से रांची के ओरमांझी हसातु गांव के रहने वाले हैं ।

देवेंद्रनाथ ठाकुर ने महज 10 डेसीमल खेतों में पलाश के पेड़ लगाकर  लाह की खेती करना शुरू की थी , वर्तमान में देवेंद्रनाथ  यह की खेती से सालाना 70 से 80 लाख का मुनाफा कमा रहे हैं ।

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झारखंड की राजधानी से लगभग 30 किलोमीटर की दूरी पर ओरमांझी के हसातु गांव के रहने वाले देवेंद्रनाथ करीब डेढ़ सौ से भी अधिक पलाश के पेड़ों के साथ लाह की खेती कर रहे हैं , और लाखों की आमदनी एकत्रित कर रहे हैं ।

जानकारी के लिए आप सभी को बता दें कि आज क्षेत्र मे लाह की खेती काफी अधिक प्रचलित हो रही है साथ ही साथ लगभग 20 वर्ष पहले जब लाह की खेती का प्रचलन नहीं था तब देवेंद्र नाथ ठाकुर ने लाह संसाधन केंद्र नामकुम ( Indian lac research institute )  से 6 दिनों का प्रशिक्षण लेने के बाद लाह की खेती को करना शुरू किया था , आज यह लाह की खेती कई ग्रामीण किसानों के लिए आमदनी का साधन बन कर सामने आ रही है ।

देवेंद्र बताते हैं कि महज 7 एकड़ की भूमि में 10 डेसीमल की जगह में पलाश के पेड़ थे जहां से उन्होंने लाह की खेती की शुरुआत की थी ।

खेती के शुरुआत के दौरान उन्हें कुछ तो लाभ हासिल हुआ था परंतु इसके बाद उन्होंने जंगल से लाभ कमाने की मनसा को कम करते हुए अन्य ग्रामीण वासियों को अपने साथ जोड़ा और उन्हें लाह की खेती के बारे में प्रशिक्षित किया ।

आज लाह की खेती से कई ग्रामीण वासी अपनी आमदनी बड़ा पा रहे हैं साथ ही साथ लाह की खेती को आज काफी अधिक प्रोत्साहन भी मिल रहा है ।

सालाना कम आ रहे हैं 70 से 80 लाख का मुनाफा

बातचीत के दौरान देवेंद्र नाथ बताते हैं कि हसातु गांव के एक हिस्से में केवल 2329 पलाश के पेड़ हैं साथ ही साथ इन पेड़ों को संरक्षित भी किया गया है इन पेड़ों के अलावा रंगीन सेमिलता के पौधे पर कुसुमी लाह की खेती कर सभी किसान काफी अच्छा मुनाफा अर्जित कर रहे हैं ।

देवेंद्र कहते हैं कि किसान ना केवल पलाश के पेड़ों से लाह की खेती कर रहे हैं बल्कि साथ ही साथ यहां के पेड़ों को संरक्षित भी करने का कार्य कर रहे हैं वह कहते हैं कि पूरे गांव का सर्वे करने पर पता चला कि यहां पर सबसे अधिक पलाश के पेड़ मौजूद है जिनसे कई ग्रामीण किसान अपना घर चला रहे हैं ।

इस दौरान एक सामूहिक रूप से अंदाज लगाया जा सकता है कि यह किसान 70 से 80 लाख का मुनाफा अर्जित कर रहे हैं ।

बातचीत के दौरान देवेंद्र बताते हैं कि उन्होंने जब परीक्षण लेने के बाद 10 डेसीमल की जगह में पलाश के पेड़ से लाह की खेती शुरू की थी उस वक्त उन्होंने ऐसा अनुमान भी नहीं लगाया था कि आगे चलकर लाह की खेती इतनी अधिक प्रचलित हो जाएगी और देवेंद्र लाह की खेती करके इतना अधिक मुनाफा अर्जित कर पाएंगे।

वर्तमान लाह की खेती की प्रचलन से और साथ ही साथ लाह मांग के बढ़ने के कारण लाह की खेती से किसान काफी अधिक मुनाफा कमा पा रहे हैं साथ ही साथ देवेंद्र 70 से 80 लाख का मुनाफा अर्जित कर रहे हैं।

पेड़ की जड़ों से तैयार करते हैं ट्रेंच

बातचीत के दौरान देवेंद्र नाथ और जुगनू उरांव का कहना है कि शुरुआत में बरसात के दिनों में इस जंगल की मिट्टी काफी अधिक कटाव में बह जाती थी , मिट्टी के कटाव की समस्या उनके लिए सबसे अधिक कठिन परिस्थितियों को सामने ला रही थी।

इस दौरान देवेंद्रनाथ की मुलाकात  साइंटिस्ट परशुराम मिश्रा से हुई थी , उन्होंने ही जंगलों के पेड़ों को बारिश के तेज बहाव से बचाने के लिए और मिट्टी के कटाव को रोकने के लिए पेड़ों की जड़ों में ट्रेंच बनाने की सलाह दी थी ।

इस दौरान कुछ समय बाद देवेंद्रनाथ ने इस विधि पर अमल किया और अमल करने के बाद धीरे-धीरे जंगलों के पेड़ की जड़ों में ट्रांच का उपयोग करने के बाद बारिश के बहाव में मिट्टी का कटाव होना कम हो गया था , साथ ही साथ जल के जमाव से पेड़ों की वृद्धि में काफी अधिक बढ़ोतरी हो गई, आज यह 7 एकड़ का हरा भरा जंगल है ।

 

लेखिका : अमरजीत कौर

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