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महत्व दृष्टिकोण का : Mahatva Drishtikon ka

Mahatva Drishtikon ka
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सब चीज के दो पहलू होते है । सकारात्मक दृष्टिकोण और नकारात्मक दृष्टिकोण। जीवन एक उपवन हैं । उसको हमारा समुचित सींचन चाहिए।

अगर इसमें ज्यादा पानी डाल दिया तो कीचड़ और मच्छरों का वास हो जाएगा जो सुंदरता का नाश कर देंगे और अगर पानी देने में की कंजूसी तो उसका विकास रुक जाएगा।

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उपवन सरसब्ज हरा भरा सुगंधित तब ही रहेगा जब उसका वाजिब रख रखाव होगा । ज्यादा सुविधाओं से आलस्य प्रमाद बढ़ जाएगा और बिल्कुल सुविधा न देने से उत्साह घट जाएगा।

शरीर को पोषण उतना ही दे जिससे धर्म ध्यान कर सकें व साथ में सामाजिक दायित्वों का सही निभाव कर सकें । पारिवारिक परिवेश में भी न ज्यादा खींचे और न ही ढील देवे तो सब सदस्य अनुशासित रहेंगे व बन जाएंगे ।

संसार मे हर मनुष्य का अपना दृष्टिकोण होता है और वह उसे उसीके अनुरूप देखता भी है एक स्त्री को पिता अपनी पुत्री के रूप में देखता है वह उसे 20 वर्ष की आयु में भी बालिका ही दिखती है पुत्र चाहे कितने भी बड़े पद पर आसीन हो जाए माता-पिता के लिए तो वह अबोध बालक ही रहता है।

ऐसे ही स्त्री को भी भाई बहन की दृष्टि से देखता है तो मोहल्ले के लम्पट लड़के कुदृष्टि से देखते हैं तो वहीं जब विवाह के लिए लड़के वाले देखने आते है तो उन्हे वही बाला बहु के रूप में दिखाई देती है और तभी वे निर्णय कर पाते हैं।

ऐसे ही किसीआलोचक को हर कार्य मे कसर ही दिखाई देती है। आपका कार्य कितना भी बढ़िया क्यों ना हो दुनियां चाहे कितना भी सराहे लेकिन आलोचक उसमे कोई ना कोई कमी निकाल ही देता है ।

इसका दूसरा पहलू भी है यदि आप आलोचक के कहे अनुसार उसमे सुधार कर लेते हैं तो वो सोने पर सुहागा हो जाता है फिर आप बेधड़क होकर उस कार्य का प्रदर्शन कर सकते हैं क्योंकि आपने आलोचक के दृष्टिकोण से देखा है।

ठीक इसी तरह हमारा दृष्टिकोण किसी भी काम को सफल करने में भावनात्मक व मानसिक रूप से साथ हो जाए ऐसा कि शत-प्रतिशत अपनी शक्ति लग जाए उसमें तो सफलता की अलख तन में , मन में जग जायेगी और परिणाम सामने होगा क्योंकि किसी भी कार्य की सफलता के लिए केवल श्रम व साधन ही पर्याप्त नहीं है उस काम के प्रति हमारा नजरिया यानि दृष्टिकोण सकारात्मकता सहित व्याप्त हो यह आवश्यक है ।

प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़ )

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