एक ऐसी मां की कहानी जिससे बेटियों को पैदा करने के लिए पीटा गया परंतु आज प्रतिमाह एक लाख से अधिक कमाई करती हैं

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आज हम बात करने वाले हैं असम की रहने वाली एक ऐसी महिला के बारे मे जिसे बेटियों को जन्म देने के कारण काफी अधिक शोषित किया गया था, इस महिला का नाम है रुंजुन बेगम है, जानकारी के लिए आप सभी को बता दे की रुंजुन बेगम मूल रूप से असम की रहने वाली हैं और 16 वर्ष की उम्र में इनकी शादी हो गई थी ।

इसके कुछ समय बाद इन्होंने दो बेटियों को जन्म दिया था परंतु इनके ससुराल वालों ने बेटियों को जन्म देने के कारण इन पर काफी अधिक शोषण और अत्याचार किया परंतु आज उन्होंने अपनी परिस्थितियों को सुधारने के लिए खुद का एक व्यापार शुरू कर लिया है इस दौरान व आर्थिक रुप से स्वतंत्र तो हो ही रही है साथ ही साथ कई महिलाओं को सशक्त और आर्थिक रुप से स्वतंत्र होने में सहायता भी प्रदान कर रही हैं।

रुंजुन बेगम कहती है कि यह बात एक सर्द रात की है जब मेरे मन में ख्याल आया कि या तो मैं अपने ससुराल वालों को अपने पति का अत्याचार और शोषण सहती रहू या फिर उस रात अपनी नवजात  बेटियों को घर पर छोड़ कर गुवाहाटी के बस में सवार होकर इस जीवन को पूरी तरह से खत्म कर दू , इस वक्त रुंजुन बेगम 5 महीने की गर्भवती थी और इस परिस्थिति में उनके लिए अपनी आने वाली जीवन के लिए निर्णय लेना काफी कठिन था।

रुंजुन बेगम गुवाहाटी जैसे शहर में अपनी परिस्थितियों को सुधारने आई थी और अपनी परिस्थितियों को सुधारने के लिए उन्होंने कठिन मेहनत किया, और आज रुंजुन बेगम अपनी मेहनत और सफलता की लगन से अपना सिलाई का कारोबार चलाती है और घर में मालिक के दर्जे से उनकी 8 वर्ष की बेटे और उनके साथ कार्य करने वाली आठ महिलाएं जिन्हें वह सशक्त बनाने के लिए और उन्हें आर्थिक रूप से स्वतंत्रता दिलाने के लिए अपने साथ रखती हैं।

केवल इतना ही नहीं रुंजुन बेगम अपने सिलाई का कारोबार चलाती हैं इसके साथ ही साथ और भी महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए उन्हें सिलाई की सभी महत्वपूर्ण जानकारियां मुफ्त में उपलब्ध कराती हैं। जानकारी के लिए आप सभी को बता दें कि हाल ही में होने वाले असम मे एक घरेलू हिंसा आयोजित कार्यक्रम के दौरान असम के समाज कल्याण मंत्री अजंता नियोग ने 31 वर्षीय रुंजुन बेगम को सम्मानित किया है।

इस दौरान रुंजुन बेगम कहती है कि मैं इस पर विश्वास ही नहीं कर सकती कि मुझे समाज मंत्री द्वारा सम्मानित किया गया है परंतु आज मेरे और मेरे पिता के लिए काफी गर्व की बात है।

रुंजुन बेगम कहती है कि मुझे मेरे ससुराल वालों के द्वारा इस कदर प्रताड़ित किया गया था कि मैंने अपनी जान लेने की भी कोशिश की परंतु फिर मैंने अपनी बेटियों के लिए अपनी परिस्थितियों को बदलने का प्रयास किया और आज गुवाहाटी जैसे शहर में आकर अपना खुद का एक व्यवसाय स्थापित तो किया ही है आर्थिक रूप से स्वतंत्र तो बन गई हूं साथ ही साथ कई महिलाओं की आर्थिक रुप से स्वतंत्र बनने में मदद भी करती हूं।

अपनी बेटियों को छोड़ने के बाद मैं अपना जीवन बनाने के लिए शहर तो आ गई परंतु इस दौरान मैंने एक बेटे को जन्म दिया और आज मैं आर्थिक रूप से स्वतंत्र हु और अपने बेटे की रक्षा कर रही हूं। यह भी कहती है कि जब मैंने अपने बेटे को जन्म दिया तब इतना अधिक साहस नहीं था कि मैं अपनी स्थितियों को सुधार पाऊ परंतु आसपास के कई लोगों ने काफी अधिक सामर्थ दिखाया था।

रुंजुन बेगम बताती है कि  आज भी समाज में इस प्रकार की विशुद्धिया घुली हुई है कि बेटियों को आज भी समाज में तुच्छ समझा जाता है और उनके निर्णय को मान्य नहीं दिया जाता है, इसके विपरीत लोग लड़कों को उनके अधिकार और निर्णय प्राप्त करने का पूर्ण अधिकार देते हैं आज भी रूढ़ीवादी लोग लड़कियों और लड़कों के बीच में फासले का फर्क रखते हैं और उन्हें उस नजरिए से ही देखते हैं।

रुंजुन बेगम कहती है कि 16 वर्ष की उम्र में मेरी शादी हो गई थी परंतु उस वक्त मैंने दो बेटियों को जन्म दिया था परंतु बेटियों को जन्म देने के कारण ही मेरे ससुराल वालों ने मुझे काफी अधिक प्रताड़ित किया था परंतु एक समय ऐसा आया जब मन में ख्याल आया कि एक महिला होकर बेटी को जन्म देना किसी प्रकार का पाप नहीं है बस इसी कारणवश मैंने अपने स्थितियों को सुधारने के लिए अपने बीते जीवन को पूर्ण रूप से खत्म करने का प्रयास किया और एक नए रूप से अपने जीवन को शुरू करने का सामर्थ्य जुटाया।

वह कहती हैं कि आज मैं अपने सामर्थ्य के बल पर अपनी मेहनत और लगन के कारण अपना खुद का सिलाई का व्यवसाय चलाती हूं और अपने बेटे के साथ खुशी-खुशी रहती हूं आज ना ही किसी प्रकार की आर्थिक समस्याएं हैं बल्कि अपने इस बिजनेस के कारण में महीने का आसानी से एक लाख कमा लेती हूं, और मेरी तरह कई महिलाओं को आर्थिक रुप से स्वतंत्र बनाने के लिए उन्हें मुफ्त में सिलाई कढ़ाई की सभी जरूरतमंद ट्रेनिंग भी देती है।

इस प्रकार दर्द से भरी जिंदगी को पीछे छोड़ा

रुंजुन बेगम बताती है कि जिस वक्त में अपने जीवन की नई शुरुआत करने के लिए सर्द रात में गुवाहाटी की बस पर चढ़ी थी उस वक्त मन में यह ख्याल आया था कि यह आखरी दिन होगा जिस वक्त में अपने ससुराल वालों से प्रताड़ित हुई थी और मेरी आगे की जिंदगी में उनका शोषण नहीं होगा, वह कहती हैं कि मैंने आगे की स्थिति के बारे में सोचा और आखरी बार की पीड़ा को बर्दाश्त करके अपनी आगे की जिंदगी को संवार लिया है।

रुंजुन बेगम के ससुराल वाले उन्हें नवजात बेटी पैदा करने के कारण एक अकेले कमरे में बंद करके काफी अधिक प्रताड़ित करते थे, वह कहती है कि यह पहली बार था जब मैंने एक बेटी को जन्म दिया था परंतु ससुराल वालों का प्रताड़ना उस वक्त सबसे अधिक हो गया जब मैंने दूसरी बार एक बेटी को जन्म दिया, वह आगे बताते हैं कि वर्ष 2012 की बात थी जब मैं गर्भवती थी और उस दौरान मेरे ससुराल वालों ने गर्भपात करने के लिए मुझ पर प्रसारण किया ताकि फिर से बेटी का जन्म ना हो ।

इस दौरान मैंने अपनी आगे की जिंदगी को संवारने के लिए और ससुराल वालों के प्रताड़ना से मुक्ति पाने के लिए सर्द रात में गुवाहाटी की बस पर चढ़कर अपने नए जीवन की यात्रा को शुरू किया इस दौरान मुझे यह पता नहीं था कि तीसरी बार मेरे एक बेटा जन्म लेगा परंतु आज मैं अपने इस बेटे के साथ काफी खुशहाल जीवन व्यतीत कर रही हूं और अपने व्यवसाय को काफी अधिक बढ़ा रही हूं।

वह कहती है कि आज मेरा सिलाई का यह व्यवसाय काफी अधिक चल रहा है और महीने का एक लाख से अधिक आसानी से मुनाफा कमा लेती है वह कहती है कि वह अन्य महिलाओं को सशक्त होने के लिए और उनकी आर्थिक रूप से स्वतंत्र होने में सहायता करती है।

 

लेखिका : अमरजीत कौर

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