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सबक : Sabak

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हम हमारे जीवन में पग – पग पर हर दृष्टिकोण से सबक़ ले सकते है । इंसान जिंदगी मे गलतियाँ करके इतना दुःखी नही होता, जितना की वो बार – बार उन गलतियों के बारे मे सोचकर होता है, जीत और हार हमारी सोच पर ही निर्भर करती है, मान लो तो हार होगी, ठान लो तो जीत होगी ।

अतः जो हो गया उसे सोचा नहीं करते, जो मिल गया उसे खोया नहीं करते, हासिल उन्ही को होती है मंज़िल, जो वक़्त और हालात पर रोया नहीं करते।

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भूल होना प्रकृति है , उसे मान लेना संस्कृति है और भूल को सुधार लेना प्रगति है, दर्द में भी जो हँसना चाहो तो हँस पाओगे , टूटे फूलों को भी पानी में डालो तो उनमें भी महक पाओगे।

ज़िंदगी किसी ठहराव में, कहीं रुकती नहीं , हिम्मत जो करोगे तो मंज़िल खुद-ब-खुद पाओगे, जीत और हार हमारी सोच पर ही निर्भर करती है ,मान लो तो हार होगी और ठान लो जीत होगी।

अतः अतीत की भूलों से सबक लेते हुए, भविष्य की चिंता से मुक्त होतें हुए वर्तमान में जीते हुए अपने सुनहरे भविष्य के लिए आनंदमय, सरळ, विनम्र एवं आध्यात्मिक जीवन जीने का प्रयास करें।

हम अप्रमत्त और एकाग्रचित होकर आत्मनिरीक्षण, आत्मपरीक्षण और आत्म समीक्षण करें कि हमसे कहाँ और क्या गलती हुई? कहाँ राग-द्वेष की खाई हम पर हावी हुई?

कहाँ हमारी सहिष्णुता,हमारी हिम्मत कमजोर पड़ने लगी।हम हरपल विवेक की छलनी का सदुपयोग और सदाचरण के द्वारा सरलमना होकर गल्तियों की पुनरावृत्ति न करते हुए उन्हें परिष्कृत करते हुए आत्मविशुद्धि करें, न कि गलती होने के डर से पुरुषार्थ करना छोड़ दें।

हर महान उपलब्धि की जननी पुरुषार्थ और गलतियां है।गलतियां हमें सबकसीखाती है,वहां तक ठीक है।बार बार की जाएं,उसे गलती नहीं कहते,प्रमाद कहते हैं,जो त्याज्य है हमारे लिए।

प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़ )

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